जो लोग प्रर्यायवाची अपशब्दों
की तरह
सेकुलर कहके
डराना चाहते है
यह कविता उनके लिए है.....
सुनो
सीरिया, पेरिस, पेशावर
मुम्बई, गोधरा-गुजरात
में जिन्होंने
मौत का ताण्डव किया
वो भी थे
तुम्हारी ही तरह
धर्मान्ध......
तुम्हारी ही तरह
उन्हें भी लगता है
खामोश कर दो
काफीरों को..
पर सुनो
सभी धर्मों से समभाव
मेरा है स्वभाव
इसलिए
शार्लों एब्दो
वालों की ही तरह मैं भी
मरने वालों की सूची में
अपना नाम पसन्द करूंगा....
मारने वालों की सूची में
तुम्हारा नाम
तुम्हें मुबारक हो......
की तरह
सेकुलर कहके
डराना चाहते है
यह कविता उनके लिए है.....
सुनो
सीरिया, पेरिस, पेशावर
मुम्बई, गोधरा-गुजरात
में जिन्होंने
मौत का ताण्डव किया
वो भी थे
तुम्हारी ही तरह
धर्मान्ध......
तुम्हारी ही तरह
उन्हें भी लगता है
खामोश कर दो
काफीरों को..
पर सुनो
सभी धर्मों से समभाव
मेरा है स्वभाव
इसलिए
शार्लों एब्दो
वालों की ही तरह मैं भी
मरने वालों की सूची में
अपना नाम पसन्द करूंगा....
मारने वालों की सूची में
तुम्हारा नाम
तुम्हें मुबारक हो......
सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-01-2015) को "बहार की उम्मीद...." (चर्चा-1855) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सटीक व सार्थक सामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसंत -नेता उवाच !
क्या हो गया है हमें?
बेहद उम्दा सोच के साथ लिखी गई कविता
जवाब देंहटाएं