जिंदगी के चार दशक के सफ़र में आज भी मैं किसे
अपना गुरु कहूँ, तय नहीं है । एक निहायत ही गरीब परिवार का
बच्चा सरकारी स्कूल में ही पढ़ सकता है। सो, सरकारी स्कूल
में ही पढ़ाई की । मैं कभी भी बढ़िया विद्यार्थी नहीं रहा, आज भी नहीं । बस
पढ़ने की आदत रही है । खूब पढ़ने की ।
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मेरी पढ़ाई लिखाई अपने फुआ के यहाँ बभनबीघा में
हुयी । मध्य विद्यालय बभनबीघा के एक भी गुरु जी याद नहीं है, खास
। गुरु जी को हमलोग उनके गांव के नाम से जानते थे । औधे वाले,
विरपुरवाले,
कोसरवाले,
इत्यादि । स्कूल केवल बैठने और खेलने की जगह थी, बस
। गीता सर, ललित सर ने कुछ सिखाया ।
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फिर महात्मा गांधी आदर्श उच्च विद्यालय,
बभनबीघा
पहुंच गया । अब तक अंग्रेजी नहीं जनता था । ज़ेडएच सर थे वहां । शायद, जाहिद सर । ट्रान्सलेशन को टांसन
पढ़ाते थे । कुछो समझ नहीं आता था । रमेश बाबू, बहुत पीटते थे ।
डरे से पेंट में मूत देते थे। कच्चा करांची रखते थे । कामदेव माटसा, पढ़ाते काम, बोलते ज्यादा थे । बन के गिद्दर,
जइहें
किधर । उनका डायलॉग था । हाँ, शनिवार को परेड तय, वहां सीखा एक-एक
कसरत आज भी याद है । काहे की छड़ी ले के कामदेव सर ठरि रहते थे ।
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दशवाँ में जाने के बाद फूफा के छोटे भ्राता ने
जब चैलेंज किया तो पढ़ने की ललक जगी और स्वाध्याय में जुट गया । अहले सुबह की पढ़ाई
को सर्बोत्तम मान, भीड़ गया । चोरी से परीक्षा दे मैट्रिक पास कर
गया । फ़ास्ट डिवीजन । पहुँच गया एसकेआर कॉलेज । पहला दिन, पहली घंटी ।
जीवन को एक नया मोड़ दे दिया ।
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प्रो0 मो0 रिजमी सर का क्लास था और उनकी
अमिन शयानी सी मीठी आवाज आज भी कानों में गूंजती है । उन्होंने हमें प्रेरित किया
। खासकर कमजोर बच्चों को । कहा कि "जो बच्चे कमजोर है वो बस इतना करें की कुछ
घंटे तेज बच्चे से अधिक पढ़े । जैसे तेज बच्चा 14 घंटे पढ़ाई करता
है तो आप 16 करिये । निश्चित सफलता मिलेगी ।" उनका
दिया यह मूल मन्त्र मेरे जीवन का एक बड़ा परिवर्तन कर गया । जीवविज्ञान मेरा प्यारा
विषय बन गया । स्वाध्याय मेरा जीवन । बाद में देव बाबू ने फूल-पत्ती पढाई तो लगा
जौसे किसी बगिया में हों । जीवंत चित्रण । बोर्ड पे जब डायग्राम बनाते तो फूल खिल
जाते ।
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अंग्रेजी और फिजिक्स में मैं बेहद कमजोर था ।
सो ट्यूशन चाहिए । आर्थिक कमी के बाबजूद पढ़ने गया । अंग्रेजी के लिए महावीर चौक पे
जेपी सर थे (शायद), सुना
है अभी बिहारशरीफ में बहुत फेमस है, उन्होंने जब अंग्रेजी सिखाई तो लगा ही
नहीं की मैं कमजोर विद्यार्थी था । कुछ ही महीनों में मेरी पकड़ बन गयी । अपने बैच
का सबसे तेज़ गिना जाने लगा ।
फिजिक्स के लिए मेहुस कॉलेज के रामशंकर सर थे ।
महावीर चौक पे ही पढ़ाते थे । देवघर जाने के रास्ते मिलने वाले रामपुर के निवासी ।
फिजिक्स क्या पढ़ाई जैसे खिस्सा सुना रहे हो । एक दम रोचक बना दिया । उनके द्वारा
बताया गया “डीजल” का एक एक बात आज तक याद है ।
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कभी अच्छा विद्यार्थी भले न रहा पर किताबें
पढ़ने के शौक ने मुझे आदमी तो बना ही दिया । बाद में कम्प्यूटर भी सीखा तो खुद से
ही । वह 1994 का साल था । बस चलाते चलाते सिख गया ।
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अंत में यही लगता है कि जिस दिन किसी अन्तः से
प्रेरणा जग गयी की उसे पढ़ना है उसी दिन वह पढ़ लेगा । नियमित स्वाध्याय सबसे सार्थक
विकल्प है । और पुस्तक ही सर्वश्रेष्ठ गुरु है ।
बाकि आज भी गणित हमरा कुछो बुझे ले नै आबो हो औ
हिंदी के टांग तोड़े में माहिर हियो....जैसे तैसे...गाड़ी चल रहलो हें...जहाँ तक
पहुंचे...
औ हाँ, बढ़िया बढ़िया लिखे के आदत त प्रेम पत्र
लिखला से ही सिख गेलियो । थीन पेपर पर अक्षर बना के और शेरो-शायरी के साथ बहुत्ते
प्रेम पत्र लिखे है भाय...से आज भी लिखे ले कुछ-कुछ आ जा हो....बकि बकलोल तो हम आज
भी हैयिये हियो...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (06-09-2015) को "मुझे चिंता या भीख की आवश्यकता नहीं-मैं शिक्षक हूँ " (चर्चा अंक-2090) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी तथा शिक्षक-दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर व सार्थक रचना ..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...