कुम्हार और ईश्वर
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मिट्टी गूंध
चाक पे चढ़ाया
उसे धुमाया
सधे हाथ से
अंदर से सहारा दे
बाहर से दबाया
कुम्हार ने दीया बनाया।।
फिर उसे
आग में पकाया
और बाजार ले आया।।
वही दीया
कोई मज़ार पे
कोई मंदिर में
कोई चमार घर
कोई बाभन घर जला..
***
हे कुम्हार
कहीं तुम ईश्वर तो नहीं...
ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को गोवर्धन पूजन के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, गोवर्धन पूजन की हार्दिक शुभकामनाएं - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आभार
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-11-2015) को "पञ्च दिवसीय पर्व समूह दीपावली व उसका महत्त्व" (चर्चा अंक-2160) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंआभार
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