जोरू का गुलाम
*अरुण साथी*
साथी ने पत्नी जी से पूछा
"बंदरी
जिसे पाकर तुम
अपने जीवन को
बेकार समझती हो,
नाकारा, नल्ला
नासपीटा, कालमुँहा
कहके जिससे
साल भर झगड़ती हो,
उसी मुंहझौंसे के लिए
तुम निर्जला व्रत क्यूँ करती हो..?
बंदरी
खिसियाई,
खिंखियाई
फिर लजाते हुए
फरमाई
"तुम मानों न मानो
पर मैं तुमको बहुत
प्यार करती हूँ,
और
जोरू की गुलामी करते रहो
बस इसीलिए तो व्रत करती हूँ...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें