08 सितंबर 2016

मेहतर मिशिर

मेहतर मिशिर (लघु कथा)

स्कूल के प्राचार्य अनुग्रह बाबु बहुत चिंतित थे। चिंता का कारण मेहतर की मनमानी थी। शौचालय की सफाई के लिए वे मुंह मांगी रकम देते थे पर लेमुआ डोम की मनमानी थमने का नाम नहीं ले। एक तो मनमानी रकम और ऊपर से उसके दारू पीकर आने से स्कूल पर पड़ता प्रतिकूल असर। लेमुआ शौचालय साफ़ करने आता तो देशी दारू से उसका मुँह डक-डक गमकता। बच्चे दूर भाग जाते।
आज फिर लेमुआ आया है। हमेशा की तरह डगमग करता हुआ कार्यालय में प्रवेश कर गया। बिना किसी पूर्व सूचना के। गार्ड ने रोकने की कोशिश की तो उसे ढकेल दिया। भद्दी गलियां दी। प्रचार्य के कक्ष में सभ्रांत अभिभावक बैठे थे। लेमुआ ने लगभग गरजते हुए कहा
"हेडमास्टर साहेब, आदमी होके गू-मैला साफ़ करो हियै तबहियो पैसा देबे में नखरा करो हो..! आझ से चार हजार महीना लगतो। मंजूर हो त ठीक, नै तो जय सियाराम।"
अनुग्रह बाबु को शर्मसार होना पड़ा। उन्होंने झट पैसा दे दिया। मामला शांत हुआ। ऑफिस से निकलते वक्त अनुग्रह बाबु बुदबुदाते हुए निकले। "क्या करें समझ में नहीं आता। एक तो स्कूल मैनेजमेंट का तनाव, ऊपर से ई लेमुआ..। पागल करके छोड़ेगा..!"
***
गार्ड रामबालक मिश्र सबकुछ देख रहे थे।  चौबीस घंटे उनकी ड्यूटी थी। दिन में स्कूल गेट पे आने जाने वाले बच्चों को संभालो, अभिभावक को झेलो और कोई उचक्का आ गया तो उससे उलझो। रात में स्कूल से कुछ चोरी न हो जाये इस चिंता में रतजग्गा करो। कहीं खट-खुट हुआ नहीं की नींद खुल गयी। इतने पर भी वेतन पैंतीस सौ महीना। यह लेमुआ घंटा-आध घंटा का चार हजार। ऊपर से पर्वी अलग। मिश्रा जी रात भर सो न सके। घर में जवान बेटी कुँवारी बैठी है। ग्रेजुएट बेटा नौकरी के पीछे पागल है। उसके सब यार-दोस्त की नौकरी हो गयी, उसकी नहीं होती। एक दिन मिश्रा जी धिक्कारे- "पढ़ला लिखला से की फायदा। पोथी-पतरा बांचो तो सेर-आसेर अनाजो मिलत।"
वह भभक गया। "पोथिये-पतरा के तो सजा मिल रहल हें। सौ में नब्बे लाबो त नौकरी नै, औ चालीस लाबे बला के नौकरी। कौन जनम के पाप हल की पंडित के घर पैदा होलूं।"
दो रातों से मिश्रा जी को नींद नहीं आयी। अंत में निर्णय ले लिया।
बहुत दिनों से लेमुआ नहीं आ रहा था। अनुग्रह बाबु चिंतित थे कि एक दिन मिशिर जी आ धमके।
"हुजूर शौचालय साफ़ करे के पैसा चाही।"
"हाँ, ठीक है। पर लेमुआ तो आ नहीं रहा।"
"हुजूर, लेमुआ नहीं, हम साफ़ करो हियै।"
"अरे ई क्या? इतना बड़ा पाप मेरे माथा पर। हे भगवान।"
"हुजूर, पेट के आग सबसे बड़गो पाप होबो है। औ पेट के आग बुझाबे खातिर जे काम कैल जाय ऊ जदि पाप होत हल त भगवान् केकरो पेट नै देता हल..!!!"

(सच्ची घटना पे आधारित/*अरुण साथी/रिपोर्टर/बरबीघा/बिहार*)

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