आज कल सोशल मीडिया पे अजीब-गजीब प्राणी विचरण करने लगे है। कुछ तो जैसे दूसरी दुनिया के एलियन हो! कुछ जूलियन असांजे और जग्गा जासूस! कुछ की तो प्रजाति का पता उनके मूँह खोलने से होता है और कुछ की प्रजाति तब सामने आती है जब उनका हाजमा खराब हो जाता है। हद तो यह कि खराब हाजमे की वजह से उनकी दुर्गन्ध सोशल मीडिया पे फ़ैल जाती है। दुर्गन्ध की वजह से कुछ तो आँख पे कपड़ा रख के निकल लेते है और कुछ तो वहीँ उल्टी कर देते है।
खैर, जहाँ तक दुर्गन्ध फ़ैलाने की बात है तो यह भी एक बीमारी है। अब देखिये, आप कहीं महफ़िल में बैठे है और कोई गंध छोड़ देता है! परेशानी यह नहीं है कि वह दुर्गन्ध फैला रहा है। परेशानी यह है कि उनको कब्ज की बीमारी है और वे दवाई भी नहीं लेना पसंद करते है। या उनको कोई शुभचिंतक कब्ज हर, कायम चूर्ण, पेट सफा गिफ्ट नहीं करता। खैर, लोगों का क्या है, नाक पे रुमाल रखकर निकल लेंगे, भाई बाद में यह बीमारी गंभीर और लाइलाज हो जायेगी तब क्या करोगे...।
उधर देखिये, एक बीमारी और है। हाजमा ख़राब होने की। इसी धरती पे कुछ प्राणी है जिनको धी नहीं पचता! अब इसमें उनकी क्या गलती है, घी की गंध से भी वे दुर्गन्ध छोड़ने लगते है। यदि घी खा लें तो वे छेर के रख देते है। इससे दिक्कत कुछ भी नहीं है। बस यह दुर्गन्ध सोशल मीडिया पे फ़ैल जाती है और उल्टी हो जाता है।
अरे हाँ, कुछ प्रजाति ऐसे भी है जिनको उजाला पसंद नहीं है। उजाला मने नील टिनोपाल नहीं, रौशनी। मने की उनको अँधेरे में ही दिखता है। दीया जला नहीं कि वे अंधे हो जाते है। उनको तकलीफ होती है। स्वभाविक है वे दीया का विरोधी होंगे।
प्रजाति से याद आया, आस्तीन का सांप भी एक प्रजाति ही है। और असांजे से याद आया, भाई चेहरा छुपा के थूक काहे फेंकते हैं अपने शहर में अब कौन कोई दादा या छोटे सरदार है जो आपको डर लगता है। बहादुरी ही दिखानी है तो सामने से आईये...बाकी आपकी महानता, विद्वता आदि पे किसी को शक नहीं है...!
खैर, बीमारी है तो उसका ईलाज भी होगा ही। है ही। कब्ज, हाजमा ख़राब, रतौंधी..सबका ईलाज संभव है। भाई विज्ञान तरक्की भले कर गया हो पर आपके बीमारी का ईलाज तो केवल बाबा जी के पास ही है। देशी योगा। बाबा जी बता रहे थे, कुत्तसान, उलूकासन योग इसमें बहुत प्रभावी है।
हाँ, यदि नमोमोनिया या केजरिमोनिया नामक बीमारी है तो इसका इलाज अभी तक ईजाद नहीं हुआ है। बाबा राम देवता को इसमें बहुत स्कोप नजर आ रहा है, उनके चेले चपाटी इसके लिए शोध कर रहे है, कोई न कोई जड़ी-बूटी या आसान खोज ही लेंगे। इसके मरीज बहुत हैं, सो मुनाफा भी बहुत होगा। वैसे कुत्तभुकबा आसान इस तरह की बीमारी में कुछ फायदा करता है, ऐसा रामखेलाबन काका कह रहे थे। आजमा के देखिये, शायद असर हो जाये...तब तक दुर्गन्ध फैलाते रहिये...और बाकी लोग नाक पे रुमाल रखके निकल लेंगे...जय हो
(Twitter @arunsathi , facebook arun.sathi )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें