हंगामा है क्यों बरपा, चूहों ने जो पी ली है!
(अरुण साथी, बरबीघा, बिहार/ व्यंग्य)
अजीब अहमक लोग है। कहाँ तो शास्त्रों और धर्मग्रंथों में आत्मस्वीकृति को सबसे बड़ा धर्म और महानतम कार्य बताया गया है और कहाँ बिहार में शराबबंदी के बाद जप्त किये गए नौ लाख लीटर शराब को चूहों के पीने की आत्मस्वीकृति के बाद बिहार पुलिस की आलोचना हो रही है। हद है भाई। कन्फेस करने के बाद तो पाप खत्म हो जाता है। इस बात के लिए तो बिहार पुलिस को नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए। बिहार पुलिस ने तो पहली तथा आखरी बार यह स्वीकार कर लिया कि उसकी प्रजाति क्या है!
खैर, अपुन का क्या जाता है। फिर भी भैया रामखेलाबन बहुत नाराज है। पूछने पे कहता है कि हम लोग भी बहुत खत्म आदमी हैं। पहले तो बिहार पुलिस की तुलना चूहे से करते थे और अब बिहार पुलिस ने यह स्वीकार कर ली है, तब भी लोग गरिया रहें हैं।
अब कोई इसका अनुसंधान करे तब तो यह बात सामने आएगी कि चूहे दोपाये और वर्दीधारी हैं । भाई जो शराब जप्त हुई है आखिर उसे बर्बाद ही तो करना था। अब यदि दोपाये चूहों ने ही उसे बर्बाद कर दी है तब आपको क्यों आपत्ति हो रही है! बकलोल आदमी।।
हालांकि इसकी जांच एफबीआई से कराने पर ही इस बात का खुलासा हो सकेगा की दोपाये वर्दीधारी चूहों ने इस कारनामों को कैसे अंजाम दिया।
"माले मुफ्त दिले बेरहम" या "मंगनी के चंदन, घस मेरे नंदन"। अब जब थाने का मालखाना ही शराब का गोदाम हो तो भला बताइए कितना बर्दाश्त करेगा कोई। पहले तो सौ कार्टून बरामद की और पच्चास काटून का ही जप्ती सूची बना। आधा गटक नारायण। कौन सा शराब माफिया इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से कराने जाएगा! उस पर भी जप्ती सूची वाले शराब को नीचे से फोड़ कर शराब निकाल लिया और ढक्कन खोल कर आधी शराब निकाली और आधी में पानी भरकर रख दिया। इस तरह के नायाब कारनामों को केवल एफबीआई वाले ही पता लगा सकते हैं। भारतीय जांच एजेंसी की अनुसंधान क्षमता पर शक भला किसको होगा! बच्चा-बच्चा जानता है कि पैसा फेंको तमाशा देखो।
सीआईडी या सीबीआई से जांच कराने पर तो यह रिपोर्ट भी आ सकती है कि चौपाये चूहे ने ही ऐसा कारनामा किया है। रिपोर्ट में यह भी होगा कि जब आदमी चारा खा सकता है तो चूहे शराब क्यों नहीं पी सकते? चूहों को गिरफ्तार कर उसका मेडिकल रिपोर्ट भी बनाया जा सकता है जिसमें यह साबित हो जाएगा कि एक चूहे प्रत्येक दिन कई लीटर शराब पी सकते हैं और शीशे की बोतल फोड़ भी सकते हैं, ढक्कन को खोलकर शराब पीने के बाद ढक्कन लगा भी सकते हैं! भाई चूहे गणेश जी की सवारी है, खेल है का...!
अब देखिए, चूहों की इन प्रजातियों के द्वारा आजादी से अब तक देश का खून पिया जा रहा है तब तो हम हंगामा नहीं करते अब शराब पी है तो हंगामा क्यों बरपा हो रहा है!! भाई शराब है ही पीने के लिए, पी गए!
एक बात यह भी कहना है कि शराबबंदी भले बिहार में हो पर हर गांव और हर गली में बिकने वाली शराब में सबसे बड़ा योगदान दोपाये चूहों का ही है। अब बिहार के मुखिया भले इस बात को नहीं माने पर शराबबंदी यदि उनको करवानी है तो सबसे पहले दोपाये वर्दीधारी वाले चूहों पर ही अंकुश लगाने की जरूरत है पर ऐसा तो वे करते नहीं हैं फिर भी फाइलों पर शराबबंदी तो चल ही रही है, चलती ही रहेगी! आखिर इंटरनेशनल लेवल पर अपने चेहरे को चमकाने का फेरनलवली तरीका जो यही है...!!! बोल हरि...
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