बिहार में मानव श्रृंखला पे जातीय असर
बरबीघा में जातीय नफरत मत फैलाओ
शेखपुरा/बिहार
बिहार में दहेज प्रथा और बाल विवाह के विरोध में बनने वाले मानव श्रृंखला को असफल करने के लिए जातीय नफरत फैलाने की गंभीर कोशिश की जा रही है। हद तो यह है कि यह कोशिश मुखिया पति जैसे सार्वजनिक जीवन में जुड़े रहने वाले जनप्रतिनिधियों के द्वारा किया जा रहा है। ऐसा ही एक मामला बरबीघा प्रखंड विकास पदाधिकारी के द्वारा बनाए गए WhatsApp ग्रुप में देखने को मिला। इस ग्रुप में मालदह पंचायत के मुखिया पति मधु कुमार ने मानव श्रृंखला में पिछड़े और दलित लोगों के शामिल होने पर एतराज जताते हुए लिखा कि पिछड़े और दलित जाति की बहू-बेटी ही मानव श्रृंखला में क्यों निकलती है?अगड़ी जाति की बहू-बेटी नहीं निकलती? मधु कुमार ने जातियों का नाम भी स्पष्ट रूप से लिखा।
यह बरबीघा की पवित्र धरती का अपमान है। पिछले साल बने मानव श्रृंखला में सभी जाति के लोगों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया और कहीं जातिवाद नहीं दिखा। इस साल भी सभी जाति के लोग इसमें शामिल होने के लिए उत्साहित हैं क्योंकि बाल विवाह और दहेज प्रथा का असर सभी जातियों पर व्यापक रूप से पर रहा है।
बरबीघा जन्म भूमि है बिहार केसरी डॉ श्रीकृष्ण सिंह की जिन्होंने देवघर मंदिर में पंडों का विरोध झेल दलितों का प्रवेश करा कर यह सिद्ध किया कि जातीय विद्वेष से समाज का सशक्तिकरण नहीं हो सकता।
और तो और स्वजातीय जमींदारों के विरुद्ध ही उन्होंने जमीनदारी प्रथा का सख्त कानून लाकर इसी सशक्तिकरण का प्रमाण भी दिया। कई मनीषी बरबीघा में जातीय विद्वेष को दूर करने का सतत प्रयास करते रहे जिसमें लाला बाबू, रामधारी सिंह दिनकर प्रमुख हैं। बावजूद इसके आज बरबीघा की धरती पर जातीय विष फैलाने का काम किया जा रहा है। यह घोर निंदनीय और समाज को तोड़ने वाला कदम है। समाज के बुद्धिजीवी, समाजसेवी और जागरुक लोगों को मुखर होकर इसका विरोध करना चाहिए। परंतु सरकारी लाभ उठाने वाले तो छोड़ दीजिए समाज के कथित प्रतिनिधि भी खामोश हैं जो बहुत ही चिंता का कारण है।
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