27 सितंबर 2018

बिकल्पहीन सवर्ण आंदोलन और स्वघोषित नेता

बिकल्पहीन सवर्ण आंदोलन और स्वघोषित नेता!

अरुण साथी

सवर्ण आंदोलन आज देश भर में जगह जगह अपनी उपस्थिति दर्शा रहा है। नतीजा, देश में सवर्णों की आर्थिक बदहाली, दलित एक्ट के दुरुपयोग और पूंजीपतियों के श्रेणी वाले दलित के आरक्षण छोड़ने की बातें बीच बहस में है।

सवर्णों में दो तबका इस बीच इस बहस में शामिल है। एक तबका नौजवानों की है। ये पुतला फूंक रहे है। पटना में आंदोलन कर रहे है। लाठी खा रहे है। इनमें कई खेमे है। सभी के अपने अपने लीडर। सभी खेमा अपने अपने लीडर को सबसे बढ़िया बता रहा।

नौजवानों के इस तबके को लगता है देश में उनके साथ अन्याय हुआ है। उसी के कंधे पे अब सारी जिम्मेदारी है। बूढ़े लोगों ने देश और समाज को डूबा दिया है। हमारा शोषण हो रहा है। हम इस दुनिया को बदल देंगे। इसी कड़ी में ये नौजवान अपनी गर्म खून के उबाल को सोशल मीडिया में निकाल रहे है। नतीजा समाज के नाम पे ही समाज के लोगों को माँ बहन की जा रही। नेताओं मंत्रियों को भी बख्सा नहीं जा रहा। परिणामतः एक तबका जिसे लगता है कि वह ज्यादा परिपक्व है। खामोश हो गया।

यही है दूसरा तबका। इसे बीजेपी समर्थक भी कह सकते है। इस तबके को  लगता है लालू यादव ज्यादा खतरनाक है बनिस्पत नीतीश कुमार और बीजेपी के। इस तरह आंदोलन और नोटा से लालू यादव की वापसी होगी। ठीक उसी तरह जैसे आनंद मोहन ने वोटकटवा की भूमिका निभाई और लालू यादव का रास्ता साफ आज फिर सवर्ण के नाम पे हो रहा है। यह तबका सोशल मीडिया पे कुछ छुपछुपा के कुछ कुछ लिख भी रहे और गाली सुन रहे है। निष्कर्ष कुछ नहीं दिखता।

लालू यादव का खौफ

बिहार के लालू यादव के खौफ का माहौल आजतक है। बीजेपी और जदयू के लोग कहने लगे कि उपाय क्या है, किसे वोट देगा! कहाँ जाएगा!

बिकल्पहीन राजनीति

तब सवर्णों के किशोरावस्था अथवा नौजवान वाले तबके को नोटा एक बिकल्प दिखाई दे रहे है। यह वैसे ही है जैसे शुतुरमुर्ग तूफान आने पे अपना सर बालू में छुपा के समझता है कि तूफान नहीं आया। नोटा का लाभ भी लालू यादव या महागठबंधन को मिलना है। देश मे कांग्रेस को। पर उस लाभ कोई जिक्र तक नहीं करेगा।

संगठन एक क्यों नहीं

हाँ, एक सवाल स्वघोषित सवर्ण नेताओं से आप सभी जयकारा लगाने वाले करके देखिए। कहिये की समाज हित की बात है तो छोटे छोटे संगठन एक होकर बिकल्प दीजिये। अपने अपने अध्यक्ष जैसे पद को त्याग दीजिये। देखिये समाज हित होगा तो नेता तैयार हो जाएंगे और स्वहित होगा तो तर्क देंगे..बस इस फर्क को समझ लीजिए तब कुछ निर्णय लीजिये..निश्चित ही यह आसन नहीं है..!!

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