विवाहेतर संबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जब यह फैसला दिया कि अब यह अपराध की श्रेणी में नहीं रहेगा तो एकबारगी पितृसत्तात्मक समाज में खलबली मच गई। जैसे यह उसकी मर्दानगी पे चोट हो। ज्यादा तर पुरुष, स्त्री को व्यभिचारिणी बता कर इसे प्रचारित करने लगे। कुछ महिलाएं भी पितृसत्तात्मक गुलामी की वजह से सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देने लगी।
क्या था धारा 497
158 साल पुराने धारा 497 स्त्री के अधिकारों का हनन करती थी। जिसने पत्नी को पति द्वारा अपनी जागीर समझे जाने का अधिकार था। मतलब कि पत्नी यदि स्वेच्छा से किसी गैर मर्द से संबंध रखती है तो पत्नी के पति को अधिकार था कि वह मुकदमा करे जिसमे संबंध रखने वाले गैरमर्द को पांच साल की सजा का प्रवधान था। जबकि पति यदि किसी गैर स्त्री से संबंध रखती है तो स्त्री (पत्नी) को कोई अधिकार नहीं दिया गया। पत्नी न तो अपने व्यभिचारी पति पे मुकदमा कर सकती है और न ही गैर स्त्री पे।इसमे स्त्री के अधिकार के हनन की बात साफ थी।
खैर। अब जरा हकीकत पे गौर करें। घरों ने चलने वाले टीवी सीरियल पे जब विवाहेत्तर संबंध को अतिआधुनिक रूप सज्जा के साथ पेश किया जाता है और घरों की महिलाएं उस सीरियल को देखने की दीवानगी रखती है तब यह महज एक मनोरंजन होता है। परंतु हम भूल जाते है कि सिनेमा, साहित्य समाज का आईना होता है। उसी आईने में हम अपनी तस्वीर देखकर मजे लेते है।
अब जरा इधर देखिये। जहां पाँच पुरुष बैठे नहीं कि स्त्री वहां चर्चा में आ ही जाती है। कौन किस स्त्री से फंसा हुआ है। किसकी स्त्री कितनी अधिक कामुक है। कौन सी स्त्री फेसबुक पे सेक्सी लग रही। किस स्त्री ने इन बॉक्स में चैट किया। आदि इत्यादि। और बहन, बेटी, पत्नी यदि रोजगार, नौकरी, राजनीति, सामाजिक कामों से घर से बाहर कदम रखी नहीं कि वह वेश्या हो जाती है। कामुक समाज उसके स्त्री के स्तित्व को खारिज कर उसके देह को नापने लगता है। झूठ सच के किस्से गढ़ दिए जाते है। और बुजुर्ग से बुजुर्ग लोग गांव की दालान पे बैठ के कौन स्त्री कहाँ मजे ले रही इसी तरह के कहानी में मशगूल देखे जाते है। यहां तक कि कौन कौन अपनी बहू की बांहों में आनंदातिरेक है। यह कहानी भी खूब चलती है।
स्त्री ही वेश्यावृत्ति करती है पुरुष को तो अधिकार है।
इसी तरह की मानसिकता समाज की है। अभी हाल में ही मेरे इलाके के एक गांव में एक युवती के अपने प्रेमी से कामरत वीडियो वायरल हो गया। आजतक के रिपोर्टर के माध्यम से यह जानकारी मिली तो खबर के पीछे लग गया। मामला सामने जो आया वह चौंकाने वाला था। स्वेच्छा से प्रेमी युगल ने कामरत वीडियो बनाई। युवती को ब्लैकमेल कर भोगने की नीयत से गांव के ही कुछ युवकों ने उसके प्रेमी को पकड़ कर खूब पीटा और उसके मोबाइल छीन कर उससे मेमोरी कार्ड निकाल लिया। जब युवती ने ब्लैकमेल होना स्वीकार नहीं किया तो गांव के युवकों ने ही वीडियो को वायरल कर दिया।
मजे की बात यह कि खबर की पड़ताल के दौरान पचास से साठ साल के बूढ़ों ने भी अपने मोबाइल में यह वीडियो होने अथवा किसी अन्य से देखने की बात कबूल की। यह समाज का स्याहपक्ष है।सच है। गंदगी है। कबतक हम इसपे पर्दा डाल के छुपा रखेंगे।
विवाहेतर संबंध की हकीकत
विवाहेतर संबंध के कई पक्ष आपको अपने आसपास मिल जाएंगे। कई मामलों में पुरुषों द्वारा अपनी पत्नी और परिवार को त्याग कर गैर की पत्नी के साथ रहने की बात सामने आती यही तो कई मामले में स्त्री के द्वारा पति को त्याग कर गैर पति के साथ रहने की।
मतलब, विवाहेतर संबंध एक स्वेच्छिक, शारीरीक और आत्मिक संबंध है। इसे सामाजिक मान्यता नहीं है। कह सकते है कि यह एक सामाजिक बुराई है। फिर इसका हल सामाजिक स्तर पे ही निकलेगा। हालांकि तलाक के मामले में कानून कारगर है।
खैर, सुप्रीम कोर्ट में बैठे लोग को आप चाहे जितना मूढ़ मति कह लीजिए पर वहां फैसला भावनाओं में नहीं लिया जाता वहां फैसले मानवीय मूल्यों के साथ साथ समानता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और मौलिक अधिकारों के आधार पे होते है...।
बाकी तो सोशल मीडिया में ट्रायल भी होबे करते अउ सजा भी फांसी से कम नै! गन्हि महत्मा की जे जे!!
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