14 अप्रैल 2020

पीड़ित आत्माओं रुदाली गायन शुरू करें

(व्यंग्यात्मक प्रस्तुति)

यह क्या किये मोदी जी। 3 मई क्यों..? 30 अप्रैल क्यों नहीं। यह तो मनमानी है। घोर कलयुग। तानाशाही है। मनमानी है। कोई कौन होता है। बिना जनता से पूछे कुछ भी बढ़ाने वाला। ई मोदी जी को कोई कुछ कहता क्यों नहीं । भारत को बचाना है। बस झूठ झूठ। 

दोस्तों ऐसे ऐसे कमेंट अब आयेगें। सोशल मीडिया पे पीड़ित आत्माओं के द्वारा फिर रुदाली गायन किया जाएगा। हमेशा करते है। अब भी करेंगे। इसी रुदाली गायन के चक्कर मे मरकजी ने जो किया उससे अपनी तो खैर छोड़िए, देश की जान संकट में डाल दिया। मोदी ने कहा है तो नहीं मानेंगे.!!


  कुतर्क भी रुदाली टीम का अजीब अजीब है। 30 प्रतिशल मरकजी है तो 70 कौन..? यह सब बदनाम करने की साजिश है। नतीजा। नफरत और बढ़ी। अनपढ़ की छोड़िए। पढ़ा लिखा कुतर्क गढ़ रहा। काश की ये तर्क गढ़ते। समाज और देश की बेहतरी के। खैर। पुरानी कहावत है। दीवार से सिर टकराने से अपना ही नुकसान है। एक और कहावत है। भैंस के आगे बीन बजाए बैठे भैंस पगुराय...अब ये भैंसे पागुर कर रहे है तो कोई कर भी क्या सकता है। बस रुदाली गायन के सिद्धहस्त महारथियों को फिर एक अवसर मिल गया। गायन शुरू करिये। 

उधर भक्त शिरोमणि भी तीन मई को लेकर हिसाब किताब शुरू कर चुके होंगे। तुम तीन में तेरह कौन। देशद्रोह है यह। 3 मई का योग सूर्य और शनि के साथ मंगल, केतु और गुरु को एक त्रिकोण से मिलकर मंगलकारी बनाने के लिए यह हुआ। तुम क्या जानों। अहमक।

लोकतंत्र जो है। और आज ही बाबा साहेब की जयंती भी है। नमन उनको। और यह देखिये कि बाबा साहेब को अपनी राजनीतिक पिपासा में जय भीम बना के प्रस्तुत करने वाले रुदाली गायक ही है। गाने दीजिये। जय जय कहिये।

5 टिप्‍पणियां:

  1. भैंस के आगे बिन बजाए,भैंस करे पगुराय।
    आलोचनात्मक व्यंग्य में सबको समान मौका दिए
    वाकई गजब है ये

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-04-2020) को   "मुस्लिम समाज को सकारात्मक सोच की आवश्यकता"   ( चर्चा अंक-3672)    पर भी होगी। -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
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    कोरोना को घर में लॉकडाउन होकर ही हराया जा सकता है इसलिए आप सब लोग अपने और अपनों के लिए घर में ही रहें।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
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    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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