25 जून 2020

अभी अभी लगे आपातकाल का एक यथार्थवादी चिंतन



अरूण साथी, (व्यंग्य रचना)

आज, अभी अभी आपातकाल की घोषणा हो गई। इस सदी में आपातकाल की कल्पना नहीं की गई थी। परंतु अचानक से इसकी सूचना सभी समाचार चैनलों, सोशल मीडिया इत्यादि पर देखने को मिला। अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर बड़े-बड़े तस्वीरों के साथ आपातकाल लागू किए जाने की खबरों को विस्तारित रूप से प्रकाशित किया गया था। धो दी, विथ डिफरेंस। 24 * 7 समाचार चैनलों के आग उगलक वाचक आपातकाल लगाए जाने की घोषणा के साथ साथ जयकारे लगा रहे थे। वैसे ही जैसे भोज का नगाड़ा, भोज खाने के बाद जयकारा करता है। या कि मैरेज हॉल के पिछवाड़े पत्तल स्थल पर भैं भैं की आवाज ।

चैनलों के आग उगलक वाचक आपातकाल के फायदे विशेष विषय पर डिबेट कराने लगे। उसमें सभी सत्ता पक्ष के लोगों को बुला लिया गया। जमकर डिबेट हुई। सभी ने देश में आपातकाल लगाए जाने की वजह से देश का कायाकल्प हो जाने की बात कही। हथियारों की खरीद। किसानों की खुशहाली। युवाओं के रोजगार। महिलाओं की तरक्की। सभी कुछ तो लोकतंत्र की वजह से ही रूका था। हां एक दो बकलोली करने वाले देशद्रोही चैनलों को लॉकडाउन कर दिया गया।


डिबेट में खुलकर यह बात सामने आई कि 70 सालों में विपक्ष ने  देश को लूटा, बर्बाद किया।  विपक्ष वर्तमान में भी सरकार को कोई विकास के काम करने नहीं दे रही थी। दुश्मन देश की बोली बोली जा रही थी। इसके लिए आपातकाल लगाने से बेहतर कोई विकल्प नहीं था। समाचार पत्रों के सभी  24 पन्ने आपातकाल के महिमामंडन में मंडित नजर आई। संपादकीय पन्नों पर आपातकाल के गुण ऐसे गाए गए जैसे आपातकाल न हुआ स्वर्ग लोक में हो गया।

उधर सोशल मीडिया पर भी आपातकाल के ही जयकारे लग रहे थे। एक वंदनीय ने तो स्पष्ट कह दिया कि लोकतंत्र जनहित की व्यवस्था नहीं है। आपातकाल जैसे महत्वपूर्ण व्यवस्था से ही देश आगे बढ़ कर दुश्मनों को जवाब देगा। वही सोशल मीडिया में आपातकाल आवश्यक है हिट करने लगा। कुछ कुछ अहमक किस्म के लोगों ने आपातकाल की निंदा कर दी थी। उसकी खबर कहीं देखने को नहीं मिली। उड़ती चिडिंया ने बताया कि वैसे देशद्रोही लोगों को काला पानी भेज दिया गया है।

खैर, इस आपातकालीन खबर में इधर-उधर विचर ही रहा था कि पत्नी की डांट जोरों से पड़ी, क्या टर्र टर्र करते रहते है। राम नाम लिजिए। चौंक कर उठ गया। ओहो, सपना देख रहा था। शुक्र है

नोट- इसमें किसी का नाम, गांव, काम, धाम, जाम, शाम, वाम, दाम, लाम, मने कुच्छो नै देलियों हें। हां भाय, डर से औ की। इहे से दिल पर नै लिहा। हल्का हल्का रहिया। डर तो लगबे करो हो। मेरा देश बदल रहा है। मनमानी चल रहा है।

6 टिप्‍पणियां:

  1. घबराइए नहीं अभी 4 साल और बाकी है और सरकारी नारा या यूं कहें सत्ता पक्ष का नारा "मोदी है तो मुमकिन है" तो बस इतना समझ लो मेरे यार यहाँ अभी कुछ भी संभव है

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  2. 2050 के बाद वापिस हो जायेगा आपतकाल चिन्ता की बात नहीं है।

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    Kill addiction dawa

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