11 अगस्त 2021

हिन्दू धर्म में बाँस और वंश का सरोकार

#बांस और #वंश

हिंदू धर्मावलंबियों के लिए प्राकृतिक पूजा त्योहार, शादी विवाह से लेकर श्राद्ध तक में दुनिया के सभी धर्मावलंबियों के लिए अनुकरणीय है।

शादी विवाह में गांव में आज भी विवाह से पहले आम के बगीचे में जाकर योग मांगना। उसके अलावा कई विधान है जो प्राकृतिक के इर्द-गिर्द घूमते हैं। जिसमें पेड़ पौधे, कुआं, तालाब शामिल है।

इसी तरह शादी विवाह के बाद बांस की बसेड़ी और वंश का संयोग भी देखने को मिलता है।

दूल्हे का मौरी से लेकर शादी विवाह में लगा हल्दी और अन्य शादी विवाह में गैर जरूरी सामान शादी के बाद बांस के बसेड़ी में जाकर महिलाएं रख आती हैं। जाते हुए महिलाएं भी गीत गाती हुई जाती हैं और लौटते हुए भी गीत गाते लौटती हैं।

 प्राकृतिक पूजा के तौर पर यह माना जाता है कि बांस का वंश वृद्धि में सर्वाधिक सहयोग है और यह कामना लोग करते हैं कि जिस तरह बांस का वंश बढ़ता है वैसे ही परिवार का बढ़े। गांव में बांस का दातुन करना आज भी प्रतिबंधित है। इसका मुख्य कारण वंश वृद्धि बांस की तरह होने की कामना है। इसी तरह की एक तस्वीर संलग्न है।

6 टिप्‍पणियां:

  1. महत्वपूर्ण बातें और जानकारी भरा लेखन।

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  2. " यह कामना लोग करते हैं कि जिस तरह बांस का वंश बढ़ता है वैसे ही परिवार का बढ़े। " - अब "परिवार नियोजन" के युग में भी लोग ऐसी कामना करते होंगे !? .. अचरज है।
    " गांव में बांस का दातुन करना आज भी प्रतिबंधित है। " - पर अगरबत्तियों के निर्माण में उपयोग किये गए, बाँस को लोग धड़ल्ले से जलाते हैं दिन रात, आस्था के नाम पर .. शायद ...
    " हिंदू धर्मावलंबियों के लिए प्राकृतिक पूजा त्योहार, शादी विवाह से लेकर श्राद्ध तक में दुनिया के सभी धर्मावलंबियों के लिए अनुकरणीय है। " - क़ुदरत की कभी भी ऐसी मेहरबानी ना हो, कि विश्व के लगभग 14-15 % आबादी वाले हिंदू धर्मावलंबियों के प्राकृतिक पूजा, त्योहार या शादी विवाह का विश्व में शेष लोग अनुकरण करें, वर्ना प्राकृतिक पूजा के नाम पर थेम्स, नील, अमेजन जैसी नदियों की भी हालात हमारी गंगा-जमुना की तरह मैली हो जाएगी और शादी विवाह के अनुकरण से भी दहेज़ दानव लील जाएगा उनके भी समाज को और वो भी दहेज़ के डर से कन्या भ्रूण हत्या का सिलसिला चालू कर देंगें .. शायद ...

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