29 जनवरी 2022

यात्रा वृतांत: काशी कॉरिडोर और योगी मोदी

काशी कॉरिडोर 

अंदर मोबाइल कैमरा ले जाने की मनाही है। काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास पूजा सामग्री विक्रेता दुकानदार अन्य जगहों के पूजन सामग्री बिक्री के दुकानदारों की तरह ही थे। धर्म के प्रखर धंधेबाज। या कहिये बसूलीबाज।

 भारी-भरकम झोला देखा नहीं की पूजन सामग्री की कीमत दोगुना कर देते हैं। सभी के एजेंट चेहरे पढ़ने में माहिर होते हैं । तो उनके भी एजेंट ने चेहरा पढ़ लिया। दुकान में बहुत इज्जत के साथ बैठाया। बैग रखवाया। जूते खुलवाए। खूब सम्मान से बात की।

 इस सबके बाद लाकर में मोबाइल बैग इत्यादि रख दिया।  बस 2 मिनट के बाद ही चेहरे के हाव-भाव और तेवर बदल गए। एक टोकरी प्रसाद हाथ में थमा या और 501 का है। दोनों प्राणी के हाथ में दो टोकरी । दोनों हक्का-बक्का । जरा सा मुकुंदाना, एक गेंदा फूल का माला, यही सब। ऊपर से एक ₹10 वाला प्लास्टिक के मोतियों का माला।
मैंने कहा भैया यह तो बहुत मंहगी है। तो क्या, लेना तो पड़ेगा। प्रसाद के बिना पूजा कैसे। मैंने कहा कि थोड़ी थोड़ी सस्ती वाली दे दो। फिर मोतियों की माला निकाल लिया। और ₹200 कीमत कम हो गया। आंखें लाल पीली कर ली। जैसे निगल ही जाएगा। मन ही मन कह रहा हो। जैसे औकात नहीं तो क्यों आ जाते हो काशी।
 बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद लेने। बहुत हुज्जत के बाद 251 की एक टोकरी कीमत तय हुई । फिर मंदिर में प्रवेश के लिए गया। सुरक्षा के काफी सख्त इंतजाम। भीड़ बहुत कम । अंदर प्रवेश करने के बाद कुछ ही देर लाइन में लगने पर बाबा विश्वनाथ के दर्शन हुए। जल चढ़ाया। फिर काशी कॉरिडोर की नक्काशी, कलाकारी, सौंदर्य देखने में लग गया।


 इस सब देखने के बाद कुछ देर के लिए ध्यान में वही बैठ गया। शांतिपूर्ण अनुभूति। निकलने से पूर्व एक पर्यटकों की टोली आई। आपस में बातचीत के दौरान वे लोग बोल रहे थे । पहले के समय में जो काम राजा महाराजा करते थे। वही काम मोदी योगी कर रहे हैं। इससे बेहतर क्या हो सकता है। वही एक जानकार ने बताया कि पहले सौ-दो सौ लोगों को ही परेशानी होती है। अब पांच हजार लोग यहां आराम से आ सकते हैं।

मैं पर्यटकों के बीच कुछ देर के लिए बैठा। लोग आपस में बातचीत कर रहे थे कि कैसे मुगल आक्रांताओं ने मंदिर को कई बार तोड़ दिया। नामोनिशान मिटाया । फिर राजा महाराजा अपने स्तर से मंदिर का निर्माण करवाए। मंदिर के ऊपरी भाग पर सोने के लिए पतर काफी आकर्षक दिख रहे थे। बगल को ज्ञानबापी मस्जिद भी बहुत कुछ कह रही थी।





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