अथ श्री श्वान कथा
यह एक मौलिक और सरभौमिक विचारधारा है। असल में कुछ खास प्रजाति के लोगों में श्वान पालने की प्रवृत्ति होती है। यह आसान भी नहीं होता। श्वान को लाड़ प्यार, भोजन भात, विचारधारा और धर्म की खुराक नियमित देनी होती है।
और हां, श्वान के गले में पट्टा भी बहुत जरूरी है। तभी तो मालिक होने का अहसास होता रहेगा। पट्टे का रंग सफेद, लाल, हरा, नीला, पीला, भगवा, कुछ भी हो सकता है।
अब श्वान के गुणों की व्याख्या भी जरूरी है। वैचारिक और धार्मिक खुराक से श्वान को आदमी बना सकते है और आदमी को श्वान भी!
तब फिर श्वान के लिए इशारा ही काफी होता है। भौंकना, उठना, बैठना, सोना, जागना, खाना, पीना, हगना, मूतना सब...!
श्वान का एक गुण यह भी होता है कि वह खुद को अपने इलाके का (धर्म, साहित्य, समाज, राजनीति) शेर समझता है।
आज अंतरजाल के युग में भौंकने वाले श्वान की बहुलता है। श्वान पालक भी इसे ही सर्वाधिक पसंद करते है।
हा हा
जवाब देंहटाएं