नेशनल डॉग डे : रॉकी मेरा नाम
अभी पता चला आज नेशनल डॉग डे है। आज मेरा भी एक साथी डॉग है। इसे कुत्ता कहना और सुनना कतई नागवार लगता है। एक अलग अपनापा है । रॉकी, यही नाम है। कहा जाता है कि दुनिया में मनुष्य का पहला मित्र कुत्ता ही हुआ और यह भी कहा जाता है कि युधिष्ठिर के साथ महाभारत के अंत में केवल कुत्ता ही स्वर्ग गया। इसके प्रेम को दूर से महसूस कर पाना असंभव है।
यह दिसंबर 2019 में अचानक बच्चों की जिद्द पर घर आ गया। मित्र सुधांशु कांति कश्यप के जीजा जी के पटना डेरा से ।
30 दिन के आसपास का बच्चा था। मां का निधन हो गया था। पूरे परिवार ने लाड प्यार से पाला। दरअसल वह दौर परिवार के लिए असीम वेदना का दौर था। खुशी लेकर आया रॉकी पूरे परिवार को अवसाद के उस दौर से निकाल दिया।
उसी दौर में रॉकी खुशी बन कर आया और परिवार का हिस्सा बन गया । पूरे परिवार को एक खिलौना मिल गया । धीरे-धीरे मेरा भी मन ऐसा जीत लिया कि अब मन ही मन हम दोनों बात कर लेते हैं।
खुशी में खुश , दुख में उदास। रॉकी है। यह कहने को बहुत कुछ है। बहुत समय लगेगा। बस यह के दरवाजे पर स्कूटर से पहुंचने के पहले ही रॉकी मेरे आने को अपनी संवेदना से महसूस कर खुशी से झूमने लगता है। नाराज होने पर मासूमियत से पंजा बढ़ा कर प्यार जताता है। मोबाइल चलाने पर बार-बार रोककर सहलाने के लिए कहता है। कभी-कभी गोदी में उछल कर गले लग जाता है । पांव के पास अक्सर आकर लेट जाता है। बाकी फिर कभी...
बहुत संवेदनशील होता है जानवर।
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