राजनीति हमेशा से दोहरी और विरोधाभासी की चरित्र की होती है। बिहार में भाजपा के नेताओं पर लाठी चार्ज की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर है। भाजपा के समर्थक इस लाठी चार्ज को तानाशाही से जोड़कर हंगामा कर रहे हैं तो महागठबंधन के समर्थक लाठी में तेल लगाकर सबक सिखाने के जुमले भी तेजी से वायरल कर रहे हैं।
इस सबके बीच कुछ सच भी होता है जो आम लोग अपनी समझ लगाकर उसे देख सकते हैं। जैसे की भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी के द्वारा शनिवार को कहा गया की 10 लाख नौकरी स्थाई रूप से जब तक नहीं दिया जाएगा आंदोलन जारी रहेगा। दुर्भाग्य से 15 साल तक भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार के साथ सत्ता में रही है और इसी में नियोजन का प्रसाद वितरण भी हुआ है।
फिर भारतीय जनता पार्टी किस मुंह से स्थाई नौकरी की बात करती है। यह सवाल आम जन के मन में अवश्य उठता होगा परंतु बात राजनीति की है सो अपने अपने खेमे के हिसाब से किसी भी चीज का प्रसार होता है।
लाठी के प्रसार को लेकर भी यही हो रहा है । बीजेपी के नेताओं पर भी जमकर लाठी चार्ज हुआ और इसके भी तस्वीर प्रसारित हो रहे हैं। वही बिहार में जितने भी आंदोलनकारी छात्र, युवा, शिक्षक ने पटना में आंदोलन किया सभी पर लाठियां बरसाई गई और उन समय में भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार थी। सवाल यही उठता है कि हम करें तो रासलीला तुम करो तो कैरेक्टर ढीला।
इस सबके बीच लाठी चार्ज को कतई सही नहीं ठहर जा सकता । इसी आंदोलन में एक भाजपा नेता की जान भी चली गई। अब इसको अपने अपने हिसाब से बेचने की तैयारी भी हो रही है। सत्ता पक्ष जिसे झूठ और विपक्ष सही ठहरा रहा, परंतु आंदोलन के अधिकार को छीनना किसी भी रूप से सही नहीं है। बिहार में शिक्षक बहाली में डोमिसाइल को खत्म करना निश्चित रूप से गलत है। इस बहाली में शिक्षकों को पुनः परीक्षा के लिए स्वतंत्र करना निश्चित रूप से गलत है। बिहार में वर्षों बाद शिक्षक बहाली को बीपीएससी के माध्यम से लिया जाना निश्चित रूप से सराहनीय भी है।
कुएँ कुएँ भंग पडी है यहां का हो या वहां का |
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