09 नवंबर 2023

यह, वह नीतीश कुमार नहीं हैं ...

 यह, वह नीतीश कुमार नहीं हैं ...


 2005 से पहले और उसके बाद नीतीश कुमार की पहचान शांतचित, सौम्यतापूर्ण, तर्कपूर्ण, तथ्यों के साथ   बातों को रखने की थी। उस दौर से निकलकर जब बिहार नीतीश कुमार के सोशल इंजीनियरिंग के दौर में प्रवेश किया तो बिहार में बदलाव के आश्चर्यचकित नतीजे देखने को मिले। उस दौर में नीतीश कुमार के सोशल इंजीनियर होने में कमोबेश सभी जातियों में उनके स्वीकार्यता थी। इसके लिए बिहार में सड़कों का जाल बिछाना, बिजली की व्यवस्था करना, बेटियों की शिक्षा और बेटियों के लिए आरक्षण और नौकरी नीतीश कुमार के ऐतिहासिक कामों में शामिल है।


परंतु पिछले कुछ महीनों से नीतीश कुमार के वक्तव्य, व्यवहार और फिर विधानमंडल में स्त्री को लेकर दिए गए आपत्तिजनक टिप्पणी से यह तो निश्चित हो गया  कि यह, वह नितेश कुमार नहीं है । ऐसा क्यों और कैसे हुआ है, यह व्यक्तिगत और राजनीतिक विषय है।

परंतु केंद्र की राजनीति में विपक्ष को एकजुट करके बिहार के मुख्यमंत्री ने केंद्र के नरेंद्र मोदी सरकार को चुनौती की जिस सीमा रेखा पर लाकर खड़ा किया और वहां से आगे बढ़े सफर में अचानक से नीतीश कुमार के मनो दशा में आए बदलाव सभी के लिए दुखी करने वाला है।


परंतु अचानक से विधानमंडल में उनके द्वारा बेहद ही अपमानजनक तरीके से बेटियों के लिए की गई टिप्पणी उनके सारे किये धरे पर पानी फेर देने जैसा रहा। या कहा जो सकता है कि नीतीश कुमार ने एक झटके में सब कुछ खो दया। 

यह निश्चित रूप से पूरे बिहार को शर्मसार होने का एक बड़ा कारण भी बन गया। परंतु इस सबके बीच बिहार में जातिवादी कार्ड के तहत जातियों की गणना, आर्थिक स्थिति की गणना और फिर आरक्षण को बढ़ाकर 65% करने का राजनीतिक खेल। कुल मिलाकर राजनीति के शतरंज पर शह-मत और घोड़े के ढाई चाल का ही खेल है। बिहार में 1लाख 20 हजार शिक्षकों की नियुक्ति करके निश्चित रूप से नीतीश कुमार ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगे एक बड़ी चुनौती रखी है।

इस बहाली में पारदर्शिता, निष्पक्ष परीक्षा का संचालन, परिणाम में पारदर्शिता और फिर नियुक्ति से लेकर सभी जगह उत्साहपूर्ण माहौल में पारदर्शिता पूर्ण व्यवहार देश के लिए एक मिसाल बना। परंतु विधानमंडल में दिए गए वक्तव्य से निश्चित रूप से मेरे साथ ही पूरा बिहार है शर्मसार हुआ । हालांकि उन्होंने माफी मांगी परंतु माफी मांगने के भाव में संवेदना की कमी थी।

 बिहार किस ओर जाएगा यह कह पाना निश्चित तौर पर  असंभव है। राजनीतक संभावनाओं के अपार दरवाजे खुलने वाले हैं। राजनीति में जदयू का मतलब नीतीश कुमार है । और जब नीतीश कुमार कमजोर हुए हैं तब बिहार  की सत्ता, सामाजिक संरचना, बिहार की राजनीति, अनिश्चित और कमजोर होगी , इतना तो निश्चित है।

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