अरुण साथी
वाराणसी में एक फिल्म की शूटिंग के दौरान एक किशोर के द्वारा नाना पाटेकर के करीब आकर सेल्फी लेने का प्रयास किया गया। जिसके बाद नाना पाटेकर ने उस किशोर को हल्का सा एक थप्पड़ जड़ दिया । फिर उसे वहां से हटा दिया गया । बुधवार को सोशल मीडिया पर यह वीडियो इतना तेजी से वायरल हुआ की एक बार में ही सिनेमा जगत का वह कद्दावर हीरो, जिसका नाम ही काफी होता है, खलनायक की तरह प्रस्तुत कर दिया गया ।
सोशल मीडिया पर सक्रीय कोई भी यदि वाह-वाही पाकर खुद को हीरो समझने लगे, तो यह उसकी ना समझी होगी। वही लोग जरा सी गलती पर खलनायक बनाने में देर नहीं करते, ऐसा चरित्र इसका है।
सोशल मीडिया का चाल, चरित्र और चेहरा बहुत ही नकारात्मक है। नाना पाटेकर एक उदाहरण हो सकते हैं। ऐसे कई उदाहरण भरे हुए हैं। एक उदाहरण इंस्टाग्राम की फेम गुनगुन गुप्ता भी है।
सोशल मीडिया पर चाल चरित्र और चेहरा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के माध्यम से भी दिखा। जब उन्होंने विधानसभा में नारी सम्मान को लेकर आपत्तिजनक वक्तव्य दिए तो उसे कई लोगों ने सेक्स एजुकेशन से जोड़कर अपना-अपना ज्ञान बांटना शुरू कर दिया। जबकि पूरे वक्तव्य में सेक्स एजुकेशन जैसी कोई बात नहीं थी। उसकी प्रस्तुति तो निश्चित रूप से निंदनीय थी।
इस सबके बीच नाना पाटेकर का वीडियो भी सामने आया। जिसमें उन्होंने कहा कि उनके फिल्म के दौरान एक रिहर्सल में इस तरह का दृश्य था और उनको लगा कि वही शूटिंग हो रही है। उन्होंने एक चपत लगा दिया।
खैर, पहली बार इस वीडियो को देखते ही यह समझना चाहिए कि नाना पाटेकर एक बुजुर्ग हैं और वहां सेल्फी लेने आया एक किशोर को यदि उन्होंने एक चपत लगा भी दिया तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं हो गई ।
बुजुर्ग ऐसे भी थोड़ा चिड़चिड़ा होते हैं और नाना पाटेकर तो खड़ूस है ही । परंतु वह दिल के अच्छे हैं। सामान्य जीवन जीते हैं । आम लोगों की मदद करते हैं। सबके लिए खड़े होते हैं। परंतु वही नाना पाटेकर जब एक गलती करते हैं तो पढ़े-लिखे विद्वान महारथी से लेकर नई पीढ़ी के भड़काऊ बड़बोले युवा तक, हाय तौबा करने लगे। ये वही लोग थे जिनके द्वारा किसी को चपत लगा देना साधारण सी बात थी।
एक कुंवारी गर्भवती महिला को पत्थर मारने की जब बात आई तो ईसा मसीह ने कहा कि पहले पत्थर वही मारे जो पापी नहीं हो, सोशल मीडिया पर यह बात बिल्कुल नहीं होता। जो जितना बड़ा पापी होता है, वह सबसे पहले पत्थर मारना शुरू कर देता है।
अपने अंदर की हीनता, ग्लानि, भड़ास निकालने का मंच तो सोशल मीडिया है ही। सोशल मीडिया में सबसे दुखद नकारात्मक पहलू यही है कि जिसे हम कल हीरो मानते हैं और हीरो बनाते हैं उसकी वाह वाह करते हैं। उसे उसकी एक छोटी सी गलती के लिए खलनायक मनाने में जरा सा भी परहेज नहीं करते । उसकी सच्चाई जानने का भी प्रयास नहीं करते । उसकी मजबूरी जानने का भी प्रयास नहीं करते। मतलब कि हमारे अंदर असहिष्णुता कूट-कूट कर भर गया है । सोशल मीडिया पर घृणा और हीनता के यह भावना इतनी तेजी से फैलता है कि हर कोई उसे फैलाने में ही भागीदार बन जाता है ।
सोशल मीडिया में आग लगने के बाद उसकी चिंगारी को और हवा देने का प्रयास ही होता है। यह एक खतरनाक दौर है। बिल्कुल जुंबी की तरह। इस दौर से अछूता कोई नहीं है। परंतु सोशल मीडिया पर रहने वाले लोगों से इतना तो निवेदन जरूर रहेगा की कौवा यदि आपका कान लेकर भाग गया तो दूसरे के कहने पर भरोसा मत करिए, थोड़ी देर रुकिए और अपने कान को देखिए और यदि सही हो तब ही हाय हाय करिए, धन्यवाद।
सटीक
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