31 अक्टूबर 2025

दुलारचंद यादव हत्याकांड और मोकामा में बाहुबलियों का वर्चस्व

दुलारचंद यादव हत्याकांड और मोकामा में बाहुबलियों का वर्चस्व 

चुनाव प्रचार के दौरान दुलारचंद यादव की हत्या से एक बारगी बिहार में सुकून की सांस ले रहे लोगों को डरा दिया। इस हत्याकांड में जदयू प्रत्याशी और बाहुबली अनंत सिंह सहित उनके समर्थक नामजद किए गए। यहां से बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी भी राजद से उम्मीदवार है।
टाल के बाहुबली राजद के नेता दुलारचंद यादव की दिन दहाड़े हत्या हो गई। 
वे कल तक राजद सरकार बनाने का संकल्प दुहरा रहे थे। अचानक जन सुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के साथ आ गए। पीयूष बांका निवासी है। दिल्ली से पढ़ लिख कर राजनीति में बदलवा की मंशा से सक्रिय हुए। और इसके लिए राजनीति के वही सबसे घिनौने विकल्प में से एक , जातिवाद को ही चुना। उन्होंने मोकामा को इसीलिए चुना, क्योंकि यहां उनके स्वजातीय (धानुक) की बहुलता है। 

उधर, दुलारचंद यादव का दबदबा टाल में हमेशा रहा है। क्षेत्र में उनका नाम ही काफी था। वहीं यह हत्याकांड अब राजनीति रंग लेगा। इस बीच कई वीडियो सामने आए। पहला, घटना से तुरंत बाद पीयूष प्रियदर्शी लाइव आकर अनंत सिंह समर्थकों पर काफिले में तोड़फोड़ का आरोप लगाया। वहीं अनंत सिंह समर्थकों का भी वीडियो आया जिसमें पीयूष प्रियदर्शी के समर्थकों पर हमला का आरोप लगाया गया। 

अब इसमें कई कोन है। इसमें पुलिस का पहला बयान स्पष्ट है। कैसे, क्या हुआ। बताया है। वहीं मोकामा निवासी पूर्व डीजीपी के पुत्र अमृताश आनंद ने कई सवाल उठाए है। इशारा इसके राजनीतिक लाभ लेने का है। कहा है कि सोच कर देखिए, इससे किसे लाभ होगा..!

अब यह हत्याकांड बिहार चुनाव का मुद्दा बनेगा। और जनता इसमें उलझ कर जातीय सौहार्द को तोड़ेगी। 

पर इसमें सोचने वाली कुछ बातें है। पहला तो यह, कि कैसे जनसुराज का एक प्रत्याशी टाल के कुख्यात का साथ लेकर राजनीति में बदलाव के शंखनाद को झुठला दिया। दूसरा, यह कि वही अनंत सिंह कि पत्नी अभी राजद से विधायक है। उसी को जिताने के लिए दुलारचंद यादव ने पांच साल पहले परिश्रम किया। और तीसरा, वही सूरजभान सिंह है जो कल तक नीतीश कुमार और बीजेपी के समर्थक थे। गुणगान करते थे। लालू यादव के प्रबल विरोधी। आज हृदय परिवर्तन हो गया। 

मतलब यह कि नेताओं का स्वार्थ जहां साधेगा, उनका हृदय परिवर्तित हो ही जाएगा। और जनता, बेचारी। जातीय भावना में ऐसे बहती है, जैसे बाढ़ के पानी में दरख़्त। 

अब बिहार बदला है। परिस्थितियां भी बदली है। अब मोबाइल से साक्ष्य जुटाना आसान हुआ हैं । 

अब, बगैर राजनैतिक हस्तक्षेप के बिहार पुलिस को इसमें गंभीरता से अनुसंधान करके,  अपराधी को दबोचना चाहिए। त्वरित न्याय मिले, इसके लिए स्पीडी ट्रायल हो।  और यदि यह सब नहीं होता दिखता है तो फिर जंगलराज और सुशासन में फर्क करना संभव नहीं होगा..

25 अक्टूबर 2025

महिलाओं पर नीतीश कुमार को और नीतीश कुमार पर बिहार को भरोसा

महिलाओं पर नीतीश कुमार को और नीतीश कुमार पर बिहार को भरोसा

बिहार में सभी जगह नीतीश कुमार चुनाव लड़ रहे है। सभी विपक्षी नीतीश कुमार को हराने में लगे है। ऐसे एहसास सोशल मीडिया से अलग होकर बिहार को देखने वाले देख रहे है। कल बरबीघा के श्री कृष्ण रामरुचि कॉलेज के मैदान में जब अपने भविष्य के लिए दौड़ लगा रहे जेन जी से मिला तो और समझने का मौका मिला। 
मुंडे मुंडे मतिरभिन्ने। यही सिद्धांत है। और होना ही चाहिए। इसी मैदान में जब पहली बार वोट करने वाली  बेटियों में नीतीश कुमार के योगदान को गिनाया तो आश्चर्यचकित होना पड़ गया। एक, दो बेटियों ने दूसरे को मौका देने की बात रही पर उसने भी मिले सहयोग और संबल को याद किया।

यहां यह भी समझने का मौका मिला कि तेजस्वी के सभी परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने के वादे पर स्वयं उनके समर्थक को ही भरोसा नहीं है। कहा, यह चुनावी वादे है..!

उधर, जो प्रमुख चीज बिहार चुनाव में दिख रहा है वह देश की राजनीति में बड़े बदलाव के सशक्त संकेत है। इसका श्रेय भी नीतीश कुमार  को है। आज बिहार में नीतीश कुमार ने पुनः महिलाओं पर भरोसा किया है। यह भरोसा आजमाया हुआ है। यह टूटता नहीं है। यह उस समाज के लिए शुभ संकेत है जिसे लगता है कि भरोसा नहीं टूटना चाहिए। ऐसे में पितृसत्तात्मक समाज को चिंतन करना चाहिए। जिस तरह अपने लाभ के लिए वे समाज हित को ताखे पर रख राजनीति को छल, प्रपंच का पर्याय बना दिया उसे पुनः सुचिता के रूप में पुनर्स्थापित करना असंभव है। और इसका नुकसान पुरुष समाज को हो रहा। होना भी चाहिए। बिहार इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। 


अब, आधी आबादी की बात । पितृसत्ता द्वारा आज भी तिरस्कृत आधी आबादी मुखर हो रही। जनतंत्र में भरोसे का प्रतीक बनी है। 

 हालांकि सोशल मीडिया पर उनकी राजनीतिक उपस्थिति नगण्य है। राजनीतिक हिस्सेदारी भी किसी ने उतना नहीं दिया। तब, बिहार की राजनीति में सत्ता का निर्णय महिलाओं के लिए लिये जा रहे। कल नीतीश कुमार इसके लिए  युगपुरुष कहे जाएंगे, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।

बिहार में शराब बंदी आधी आबादी की मांग थी। उसे पूरा किया गया। महिलाएं आज भी शराब बंदी के साथ है। 

नीतीश सरकार ने पंचायत आरक्षण, सरकारी नौकरी में आरक्षण, बेटियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहन जैसे कई युगांतरकारी योजनाओं से बदलाव की नींव रखी। यह आज मजबूत महल के रूप में मुखर है। 

तब बिहार में विपक्ष आपसी नूराकुश्ती में सक्रिय है। और उधर नीतीश कुमार को सीएम बनाया जाएगा या नहीं, यह सवाल सभी में मन में तैर रहा है। बीजेपी किंतु, परंतु में जवाब दे रही। हालांकि बहुत कम सीट रहने पर बनाया तो था। यह भी अमित शाह ने कह दिया। अब कुछ दिन ही शेष है। 


परिणाम जनता तय करेगी पर नया बिहार सबकुछ बोल रहा है, गांव में एक मजदूर का यह तंज कि, "एतना सब कैला के बादो पुच्छो हो जी कि के जिततई.... तब तो खोबारी हो...!!!"

समझिए...बस इतना ही। बाकी सब ठीक है...

अंजीर के पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.....!!!

अंजीर के पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.....!!!


यह मैं नहीं कर रहा, नीचे जो तस्वीर में सूचना है, उसमें यही लिखा हुआ है। यह सूचना पटना के अति भव्य मेदांता अस्पताल में लगाया गया है । इसमें कई तरह की बातें लिखी गई है । यह भी लिखा गया है कि कल्पवृक्ष स्वास्थ प्रद होता है। और यह भी लिखा गया है कि रिसर्च में यह बात सामने आ गई है कि दवा से अधिक काम दुआ करता है...

पूंजीवाद के इस जकड़न में आम आदमी को अब मरना होगा। 

अब बड़े-बड़े अस्पतालों में लाखों रुपए खर्च होते हैं। 
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य का खर्च लाखों गुना बढ़ गया है। सरकारी अस्पतालों में भीड़ इतनी है कि आम आदमी भी इमरजेंसी में वहां तड़प तड़प कर मर जाएगा । और भव्य अस्पतालों में रुपए इतने खर्च होते हैं कि आम आदमी, यहां भी तड़प तड़प कर मर जाएगा...!

अब, इतने बड़े  अस्पताल में इसके संचालकों, बड़े-बड़े डिग्री धारकों को इतना भी ज्ञान नहीं है कि भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति पीपल के पेड़ के नीचे हुआ था....! बाकी सब ठीक है....

19 अक्टूबर 2025

बिहार: बाहुबल, जातिवाद, परिवारवाद, धनकुबेर सब कुछ सामान्य है...

बिहार: बाहुबल, जातिवाद, परिवारवाद, धनकुबेर सब कुछ सामान्य है...
आसन्न बिहार विधान सभा चुनाव गठबंधन की राजनीति में अपने सबसे निम्नतम स्तर पर है। दोनों गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर जो नौटंकी हुई, उसे पूरे देश ने देखा। बिहार के इस चुनाव में दोनों गठबंधनों में बाहुबली , परिवारवाद, जातिवाद और धनकुबेरों का बोलबाला हुआ। इस सब में, सबसे भारी जातिवाद का उभार अपने चरम पर दिखा। हम सोशल मीडिया पर भले जातिवाद से ऊपर विकास, रोजगार आदि को रखते है, पर वास्तविकता से इसका कोई सरोकार नहीं। सबसे पहले बाहुबल का। तो इससे किसी गठबंधन ने परहेज नहीं किया। जदयू ने अनंत सिंह, हुलास पाण्डेय को प्रश्रय दिया, तो बीजेपी ने अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी को पुनः उतार,  छद्मवाद का सहारा लिया। राजद के तेजस्वी  अशोक महतो के साथ तस्वीर साझा कर उनकी पत्नी अनीता देवी को टिकट देकर बाहुबल पर भरोसा किया और यहां कांग्रेस के प्रत्याशी के विरुद्ध भी जाकर खड़े हुए। मुन्ना शुक्ला, राजबल्लभ यादव सहित, इसकी सूची लंबी है। 

इस बार परिवारवाद भी चरम पर रहा। परिवार की पार्टी होने का सबसे प्रबल आरोप लालू यादव पर लगता है। पर इस बार परिवार बाद की सबसे निम्न तस्वीरें देखने को मिली। जीतन राम मांझी ने अपनी बहु, समधन को, तो उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी को टिकट देते हुए तस्वीरें साझा करके परिवार को राजनीति का सबसे कड़वा सच बता कर इसे स्वीकार करने का संदेश दे दिया। 

इसी श्रेणी में प्रशांत किशोर भी रहे। उनके टिकट का वितरण करते हुए आर सी पी सिंह ने अपनी बेटी को टिकट दिया।  राजद में तो पिता, माता, पुत्र, पुत्री ही पार्टी है। इसके कई उदाहरण है। चिराग पासवान इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण, सार्वकालिक है। 

अब जातिवाद।  इसके लिए बिहार बदनाम है। यह सही भी है।  अभी चौपाल और चौराहे जातिवादी विमर्श में है। विकास, नौकरी, रोजगार की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनती जा रही।  कम ज्यादा, इसमें सभी शामिल है। राष्ट्रीय पार्टी अप्रत्यक्ष तो क्षेत्रीय पार्टी प्रत्यक्ष रूप से जातिवाद का शंखनाद करती है। चिराग पासवान, मुकेश साहनी, जीतन राम, उपेंद्र कुशवाहा इसी की बानगी बने। चिराग और मुकेश ने को मोलभाव किया, वह चरम थी।  जातिवादी का खेल ऐसा की जो नेता अपनी जाति के लिए भी कुछ नहीं किया। पांच साल मस्ती की।  उसके प्रति भी जातिवादी लोग सहानुभूति रखने लगते हैं। 


यह जातिवाद का ही खेल है कि समाज के हित को किनारे कर, नेता अपना हित साधने के लिए जातिवाद का सहारा लेते हैं और आम जान उसमें फंस जाते है। 

इसका सबसे बढ़िया उदाहरण यही है कि गरीबों के आधार पर मिले आरक्षण का विरोध केवल और केवल राष्ट्रीय जनता दल ने सदन में किया। आज कुछ लोग अपना टिकट पा कर समाज के बड़े हित को किनारे रखने के लिए तैयार हो गए। 

अब इस सबके लिए, हम नेताओं को दोष देकर अपनी पीठ थपथपा लेंगे। पर यह झूठ है। सच यह है कि हम सब इस गुनाह में शामिल है। दरअसल, नेता, बाहुबली या कोई अपराधी अपने दोष को ढकने के जब जातिवादी छतरी लगता है तो हम सब इसके ओट से मोहित हो जाते है। जबकि, वे सब अपने हितार्थ यह सब करता है। सच यह भी है हर बाहुबली, अपने हित साधने में अपने स्वजातीय का लहू बहाया है। स्त्रियों को आबरू लूटी है। और, वह जाति के नाम पर नायक बन जाता है। खासकर, नई पीढ़ी, सोशल मीडिया संजाल में उलझ ऐसे जयकार करते है, जैसे वही ईश्वर हो। और इसका फायद बाहुबली उठाता है। धनबल की बात करें तो सभी पार्टियों में धन बल कैसे प्राथमिकता में रही, यह किसी से छुपा मुद्दा नहीं है।  बस, बाकी सब ठीक है।

02 अक्टूबर 2025

यात्रीगण कृपया ध्यान दें..!

यात्रीगण कृपया ध्यान दें..!

नवादा से चलकर, शेखपुरा होते हुए, बरबीघा के रास्ते पटना जाने वाली यात्री रेलगाड़ी अपने निर्धारित समय से पूरे पाँच घंटे विलंब से चल रही है।
इस असुविधा के लिए किसी को भी खेद नहीं है।

रेलगाड़ी समय पर चले, ऐसा कोई वादा नहीं किया गया था। समय सारणी नाम की चीज़ हमारे लिए सिर्फ दिखावे की होती है। इस लाइन पर पहली बार रेलगाड़ी चली है, तो उसे भी अपनी मनमर्जी चलाने का पूरा हक़ है।

अभी तक लोग रेल चलने पर उछल-उछलकर खुशी मना रहे थे। चेतावनी है—ज्यादा मत उछलिए! ज्यादा इतराने से सबको जलन होती है, और मुझे भी वही हुआ है।

पहली बार जब चालक दल गाड़ी लेकर आया तो ऐसा स्वागत हुआ मानो बारात चढ़ आई हो। अब सोचिए, इतनी खुशी किसी को बर्दाश्त होती है क्या?

इसीलिए तो देखिए—समय पर चलकर हम अपनी पहचान खोना नहीं चाहते।
भारतीय रेल की असली पहचान यही है कि चाहे सुपरफास्ट हो या पैसेंजर, समय से न चलना ही हमारा धर्म है।

तो समझ लीजिए... मैं यात्री रेलगाड़ी हूं।
समय सारणी से मेरा कोई रिश्ता नहीं है।


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नोट: यह व्यंग्य है। इसे गंभीरता से लेने वाला स्वयं नुकसान उठाएगा।
हंसिए, मुस्कुराइए और सफ़र का मज़ा लीजिए।

मैं बिहार शरीफ का वॉच टावर हूँ..!

मैं बिहार शरीफ का वॉच टावर हूँ..!
मुझे इस तरह चमकता देखकर तुम्हारे कलेजे पर साँप लोट रहा है न! साँप लोटना भी चाहिए...!
तुम आदमी लोग बिना माथे के हो, बिल्कुल पैदल..! है न...?

देखो तो, मुझे कितना बदनाम किया तुमने..!
हाथ में एक मोबाइल रूपी यंत्र क्या आ गया, सबके चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगाने लगे..!

लगता है जैसे आदमी का जन्म ही दूसरों का चरित्र हनन करने के लिए हुआ हो।

बोलो तो, मेरे बारे में क्या-क्या नहीं कहा गया...
कहा गया कि घड़ी उल्टा समय बताती है!
कहा गया कि चालीस लाख की लागत लगी है..!

और देखो, सबने कैसे विश्वास कर लिया।
बिहार के एक-से-एक "वन-डमरू यूट्यूबर", पैदल माथा वाले, सब चिल्लाते रहे...!

जुल्म हो गया! मैं, चुपचाप खड़ा रहा। अडिग खड़ा रहा।
और मैंने साबित किया—सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं..!

आज मैं चमक रहा हूँ! दमक रहा हूँ..!
और वही लोग, जिन्होंने मुझे बदनाम किया, आज मेरी रंगीन तस्वीर को चमका रहे हैं।

हे आदमी! किसी भी बात पर भरोसा करने से पहले उसे परख लो...
किसी को यूँ ही बदनाम मत करो... समझे...?

हालाँकि... समझोगे तो नहीं ही... खैर..! @arun sathi

लंकापति और राष्ट्रपिता संवाद

लंकापति और राष्ट्रपिता संवाद

एक युग के बाद लंकापति का पुतला दहन और राष्ट्रपिता की जयंती एक साथ आया है। दोनों मिले। दोनों ने एक दूसरे को पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया। लंकापति ने सोशल मीडिया पर तस्वीर साझा किया। पोस्ट में लिखा, अनौपचारिक और अ–शिष्टाचार मुलाकात। तरह तरह की टिपण्णी आई। एक ने हत्यारे का पिस्तौल का चित्र लगा कर लिखा, अहिंसा परमो धर्मः..!
लंका पति ने जब टिपण्णी देखी तो आह्लादित हो गया। वे अपने चिरपरिचित राक्षसी अंदाज में अट्टहास किया। और राष्ट्रपिता को चिढ़ाते हुए कहा, 

"देख लिए न ! अहिंसा परमो धर्मः का परिणाम भी हिंसा पर ही जाकर खत्म हुआ। अब तो आप अपना यह मंत्र वापस ले लीजिए..!"

राष्ट्रपिता मंद मंद मुस्कुराते रहे। लंकापति अब भड़क गया। 
L
"देखिए, महान बनने के लिए आपने यही सब किया है। सब मनगढ़ंत बातें लिख दी। जिसका जीवन से कोई सरोकार नहीं।"
राष्ट्रपिता फिर मुस्कुराए। लंकापति आग बबूला हो गया। 
"देखिए, आप इसीलिए न मुस्कुरा रहे कि प्रतिवर्ष विजयादशमी को मेरा पुतला जलाकर लोग उत्सव मनाते है। पर आपको भी तो लोगों ने नहीं छोड़ा है। याद कीजिए, एक बार मेरी जगह आपकी तस्वीर लगा कर कार्टून बनाया था। भूल गए क्या..!"

"शांत हो जाओ लंकापति..! अब भी तुम स्वर्णमहल को भूले नहीं हो। आसमान में सीढ़ी लगाने का अहंकार आज भी तुझमें है।

 सुनो, हम अहिंसा में विश्वास करते है, तुम हिंसा में..! हम असहमति रखने वाले को भी सम्मान देते है, तुम असहमति रखने वाले को अपमान देते हो। हम बचाने वालों के साथ खड़े होते हैं, तुम मारने वालों के साथ खड़े होते हो..!" बस

लंकापति और राष्ट्रपिता संवाद

लंकापति और राष्ट्रपिता संवाद

एक युग के बाद लंकापति का पुतला दहन और राष्ट्रपिता की जयंती एक साथ आया है। दोनों मिले। दोनों ने एक दूसरे को पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया। लंकापति ने सोशल मीडिया पर तस्वीर साझा किया। पोस्ट में लिखा, अनौपचारिक और अ–शिष्टाचार मुलाकात। तरह तरह की टिपण्णी आई। एक ने हत्यारे का पिस्तौल का चित्र लगा कर लिखा, अहिंसा परमो धर्मः..!
लंका पति ने जब टिपण्णी देखी तो आह्लादित हो गया। वे अपने चिरपरिचित राक्षसी अंदाज में अट्टहास किया। और राष्ट्रपिता को चिढ़ाते हुए कहा, 

"देख लिए न ! अहिंसा परमो धर्मः का परिणाम भी हिंसा पर ही जाकर खत्म हुआ। अब तो आप अपना यह मंत्र वापस ले लीजिए..!"

राष्ट्रपिता मंद मंद मुस्कुराते रहे। लंकापति अब भड़क गया। 
L
"देखिए, महान बनने के लिए आपने यही सब किया है। सब मनगढ़ंत बातें लिख दी। जिसका जीवन से कोई सरोकार नहीं।"
राष्ट्रपिता फिर मुस्कुराए। लंकापति आग बबूला हो गया। 
"देखिए, आप इसीलिए न मुस्कुरा रहे कि प्रतिवर्ष विजयादशमी को मेरा पुतला जलाकर लोग उत्सव मनाते है। पर आपको भी तो लोगों ने नहीं छोड़ा है। याद कीजिए, एक बार मेरी जगह आपकी तस्वीर लगा कर कार्टून बनाया था। भूल गए क्या..!"

"शांत हो जाओ लंकापति..! अब भी तुम स्वर्णमहल को भूले नहीं हो। आसमान में सीढ़ी लगाने का अहंकार आज भी तुझमें है।

 सुनो, हम अहिंसा में विश्वास करते है, तुम हिंसा में..! हम असहमति रखने वाले को भी सम्मान देते है, तुम असहमति रखने वाले को अपमान देते हो। हम बचाने वालों के साथ खड़े होते हैं, तुम मारने वालों के साथ खड़े होते हो..!" बस

01 अक्टूबर 2025

वोट चोर गद्दी छोड़ और लोकतंत्र जिंदाबाद

वोट चोर गद्दी छोड़ और लोकतंत्र जिंदाबाद 

बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण में वोट चोरी का जो छद्म प्रचार राहुल गांधी और उनके हितपोषक क्रांतिकारी यूट्यूबरों ने किया, उसे अभी भी उनके अनुयायियों के द्वारा सही ही माना जा रहा है। और इससे चुनाव आयोग की कठघरे में खड़ा हो गया।
पर सच में, सच इससे विपरीत है। कई बार इसे उठाया है। आज फिर।  

यह तस्वीर अंतिम मतदाता सूची प्रकाशन के बैठक की है। इसमें सभी राजनैतिक दलों के साथ जिलाधिकारी सह जिला निर्वाची पदाधिकारी आरिफ अहसन बैठक करके सभी जानकारी देते है। कितने नाम काटे, क्यों कटे, कितने जुटे..!
इसमें कांग्रेस के जिलाध्यक्ष प्रभात चंद्रवंशी, राजद के जिलाध्यक्ष संजय सिंह, जदयू जिला उपाध्यक्ष ब्रह्मदेव महतो सहित वामपंथी और अन्य दलों के नेता शामिल हुए। सभी को एक एक बंडल अंतिम मतदाता सूची का दे दिया गया। देख लीजिए। क्या सही, क्या गलत..! लोकतंत्र इसी से जिंदाबाद है। जिंदाबाद रहेगा।

पुनरीक्षण शुरू होने के बाद जब प्रारूप का प्रकाशन हुआ तो उसे भी दिया गया था। और बोला गया था कि इसमें आपत्ति हो तो साक्ष्य के साथ आवेदन दीजिएगा, सुधर जाएगा। और मेरे जिले में 26256 नाम कटे तो दावा आपत्ति के बाद 7981 नाम जुट गए। बस, यही प्रक्रिया है। एकदम पारदर्शी। 


अब सभी पार्टियों का सभी बूथ पर बूथ लेवल एजेंट होते है। सब नाम चुनाव आयोग में दिया गया। सभी पार्टी ने तो ऐसा नहीं किया। पर बड़ी पार्टियों का है। पर कांग्रेस का कम है। क्यों कि इसके लिए पार्टी का एकदम जमीनी स्तर पर पैठ होना अनिवार्य है। जो अभी बिहार में कांग्रेस का नहीं है। इसने तो तीन दशकों से अपने पैर पर लालू यादव रूपी कुल्हाड़ी अपने मार ली है। अब जख्म धीरे धीरे भरेगा। ईश्वर सुधार के लक्षण तो दिख रहे है।

 खैर, वोट चोर, गद्दी छोड़। नारा में राजद भी शामिल हुआ। होना भी चाहिए। जब विकास की बहती धारा में कोई मुद्दा मिले ही नहीं, तो कुछ मुद्दा गढ़ दिया जाना ही राजनीति के लिए श्रेष्ठकर होता है। वही हुआ। और एक बात और, मतदाता सूची में अभी भी गड़बड़ी मिलेगी। क्योंकि BLO हम में से ही कोई है। और हम तो वही है...एक बिहारी सब पर भारी...बाकी सब ठीक है...