एक युग के बाद लंकापति का पुतला दहन और राष्ट्रपिता की जयंती एक साथ आया है। दोनों मिले। दोनों ने एक दूसरे को पुष्प गुच्छ देकर स्वागत किया। लंकापति ने सोशल मीडिया पर तस्वीर साझा किया। पोस्ट में लिखा, अनौपचारिक और अ–शिष्टाचार मुलाकात। तरह तरह की टिपण्णी आई। एक ने हत्यारे का पिस्तौल का चित्र लगा कर लिखा, अहिंसा परमो धर्मः..!
लंका पति ने जब टिपण्णी देखी तो आह्लादित हो गया। वे अपने चिरपरिचित राक्षसी अंदाज में अट्टहास किया। और राष्ट्रपिता को चिढ़ाते हुए कहा,
"देख लिए न ! अहिंसा परमो धर्मः का परिणाम भी हिंसा पर ही जाकर खत्म हुआ। अब तो आप अपना यह मंत्र वापस ले लीजिए..!"
राष्ट्रपिता मंद मंद मुस्कुराते रहे। लंकापति अब भड़क गया।
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"देखिए, महान बनने के लिए आपने यही सब किया है। सब मनगढ़ंत बातें लिख दी। जिसका जीवन से कोई सरोकार नहीं।"
राष्ट्रपिता फिर मुस्कुराए। लंकापति आग बबूला हो गया।
"देखिए, आप इसीलिए न मुस्कुरा रहे कि प्रतिवर्ष विजयादशमी को मेरा पुतला जलाकर लोग उत्सव मनाते है। पर आपको भी तो लोगों ने नहीं छोड़ा है। याद कीजिए, एक बार मेरी जगह आपकी तस्वीर लगा कर कार्टून बनाया था। भूल गए क्या..!"
"शांत हो जाओ लंकापति..! अब भी तुम स्वर्णमहल को भूले नहीं हो। आसमान में सीढ़ी लगाने का अहंकार आज भी तुझमें है।
सुनो, हम अहिंसा में विश्वास करते है, तुम हिंसा में..! हम असहमति रखने वाले को भी सम्मान देते है, तुम असहमति रखने वाले को अपमान देते हो। हम बचाने वालों के साथ खड़े होते हैं, तुम मारने वालों के साथ खड़े होते हो..!" बस
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