बिहार: बाहुबल, जातिवाद, परिवारवाद, धनकुबेर सब कुछ सामान्य है...
आसन्न बिहार विधान सभा चुनाव गठबंधन की राजनीति में अपने सबसे निम्नतम स्तर पर है। दोनों गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर जो नौटंकी हुई, उसे पूरे देश ने देखा। बिहार के इस चुनाव में दोनों गठबंधनों में बाहुबली , परिवारवाद, जातिवाद और धनकुबेरों का बोलबाला हुआ। इस सब में, सबसे भारी जातिवाद का उभार अपने चरम पर दिखा। हम सोशल मीडिया पर भले जातिवाद से ऊपर विकास, रोजगार आदि को रखते है, पर वास्तविकता से इसका कोई सरोकार नहीं। सबसे पहले बाहुबल का। तो इससे किसी गठबंधन ने परहेज नहीं किया। जदयू ने अनंत सिंह, हुलास पाण्डेय को प्रश्रय दिया, तो बीजेपी ने अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी को पुनः उतार, छद्मवाद का सहारा लिया। राजद के तेजस्वी अशोक महतो के साथ तस्वीर साझा कर उनकी पत्नी अनीता देवी को टिकट देकर बाहुबल पर भरोसा किया और यहां कांग्रेस के प्रत्याशी के विरुद्ध भी जाकर खड़े हुए। मुन्ना शुक्ला, राजबल्लभ यादव सहित, इसकी सूची लंबी है।
इस बार परिवारवाद भी चरम पर रहा। परिवार की पार्टी होने का सबसे प्रबल आरोप लालू यादव पर लगता है। पर इस बार परिवार बाद की सबसे निम्न तस्वीरें देखने को मिली। जीतन राम मांझी ने अपनी बहु, समधन को, तो उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी को टिकट देते हुए तस्वीरें साझा करके परिवार को राजनीति का सबसे कड़वा सच बता कर इसे स्वीकार करने का संदेश दे दिया।
इसी श्रेणी में प्रशांत किशोर भी रहे। उनके टिकट का वितरण करते हुए आर सी पी सिंह ने अपनी बेटी को टिकट दिया। राजद में तो पिता, माता, पुत्र, पुत्री ही पार्टी है। इसके कई उदाहरण है। चिराग पासवान इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण, सार्वकालिक है।
अब जातिवाद। इसके लिए बिहार बदनाम है। यह सही भी है। अभी चौपाल और चौराहे जातिवादी विमर्श में है। विकास, नौकरी, रोजगार की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनती जा रही। कम ज्यादा, इसमें सभी शामिल है। राष्ट्रीय पार्टी अप्रत्यक्ष तो क्षेत्रीय पार्टी प्रत्यक्ष रूप से जातिवाद का शंखनाद करती है। चिराग पासवान, मुकेश साहनी, जीतन राम, उपेंद्र कुशवाहा इसी की बानगी बने। चिराग और मुकेश ने को मोलभाव किया, वह चरम थी। जातिवादी का खेल ऐसा की जो नेता अपनी जाति के लिए भी कुछ नहीं किया। पांच साल मस्ती की। उसके प्रति भी जातिवादी लोग सहानुभूति रखने लगते हैं।
यह जातिवाद का ही खेल है कि समाज के हित को किनारे कर, नेता अपना हित साधने के लिए जातिवाद का सहारा लेते हैं और आम जान उसमें फंस जाते है।
इसका सबसे बढ़िया उदाहरण यही है कि गरीबों के आधार पर मिले आरक्षण का विरोध केवल और केवल राष्ट्रीय जनता दल ने सदन में किया। आज कुछ लोग अपना टिकट पा कर समाज के बड़े हित को किनारे रखने के लिए तैयार हो गए।
अब इस सबके लिए, हम नेताओं को दोष देकर अपनी पीठ थपथपा लेंगे। पर यह झूठ है। सच यह है कि हम सब इस गुनाह में शामिल है। दरअसल, नेता, बाहुबली या कोई अपराधी अपने दोष को ढकने के जब जातिवादी छतरी लगता है तो हम सब इसके ओट से मोहित हो जाते है। जबकि, वे सब अपने हितार्थ यह सब करता है। सच यह भी है हर बाहुबली, अपने हित साधने में अपने स्वजातीय का लहू बहाया है। स्त्रियों को आबरू लूटी है। और, वह जाति के नाम पर नायक बन जाता है। खासकर, नई पीढ़ी, सोशल मीडिया संजाल में उलझ ऐसे जयकार करते है, जैसे वही ईश्वर हो। और इसका फायद बाहुबली उठाता है। धनबल की बात करें तो सभी पार्टियों में धन बल कैसे प्राथमिकता में रही, यह किसी से छुपा मुद्दा नहीं है। बस, बाकी सब ठीक है।
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