प्रकाश झा की बहुचर्चित सिनेमा राजनीति को बहुतों ने सराहा और रेटिंग देने वालों ने पांच में से चार रेटिंग दी और जाल में फंस कर राजनीति देखने की उत्कंठा जागी पर मेरे कस्बाई जिले के सभी सिनेमाघरों की औकात नई सिनेमा लगाने की नहीं है इसलिए राजनीति देखने के लिए बगलगीर नालान्दा जिले के बिहारशरीफ जिसकी दूरी 30 किमी. है, जाकर सिनेमा देखने की योजना बनाई। एक तरफ राजनीति देखने की इच्छा और दूसरी तरफ भीषण गर्मी दोस्तों ने मोटरसाईकिल से जाने से इंकार कर दिया और तब एक दोस्त की स्कूल वाहन टाटा बिंगर से बिहार शरीफ राजनीति देखने के लिए गया पर निराश होकर लौटा। निराश इसलिए की राजनीति में वर्तमान राजनीति का घालमेल तो बहुत है पर सीधा सीधा महाभारत की कहानी को प्रकाश झा जैसे मंझे हुए निर्देशक उठा कर रख देगे,ं भरोसा नहीं हुआ। हमलोग पांच दोस्त सिनेमा देखने गये पर किसी ने इसे नहीं सराहा। कुन्ती की कहानी से आरम्भ राजनीति में कृष्ण-नाना पाटेकर, दुर्योधन-मनोज वाजपेई, कर्ण-अजय देवगन, और अजूZन -रणवीर कपूर की कहानी को इसतरह से घालमेल कर दिया गया कि मेरे जैसे दशZक भी घबड़ा गये। कुन्ती और कर्ण का संबाद और धृत्राष्ट की विवशता और लालच सबकुछ महाभारत जैसा आन्त में तो मुझे प्रकाश झा जैसे अनुभवी निर्देशकी की बुद्धि पर उस समय तरस आ गया जब कर्ण और अजूZन के महाभारत के सबंाद को रख दिया गया। अजय देवगन अर्थाण कर्ण निहथ्था है और रणवीर कपूर अर्थात अजूZन कहता है कि नहथ्थे पर वाण नहीं सॉरी गोली कैसे चलाए तब कृष्ण बने नाना पाटेकर उन्हें समझाते है और कर्ण मारा जाता है।
पता नहीं प्रकाश झा ने बिहार की राजनीति से क्या सीखा पर वेवह नौजवानों को मुख्यमन्त्री कुर्सी पर बैठाने की राजनीति, बेवजह सुरज जैसे कुश्ती पहलवानों की बड़ा लीडर बनाने की राजनीति,वेवजह हत्या की राजनीति मुझे जरा भी पसन्द नही आई और कुल दोस्तों का सिनेमा देखने का खर्चा में से मेरा हिस्सा 129 बेकार चला गया।
अपनी-अपनी सोच...अपना-अपना नजरिया है
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