सांप की ही तरह
आदमी भी छोड़ता है काचूर ...
कभी धन-सम्पदा
कभी मान-प्रतिष्ठा
कभी कभी तथाकथित
विद्वता का...पारदर्शी काचूर ...
काचूर छोड़
सांप देह से उतार देता है
अपने अस्तित्व का एक हिस्सा....
और आदमी
ओढ़े रखता है
अपने अंहकार को
काचूर की तरह....
सुना है कचुराल सांप
डंसने से बचता है
पर कचुराल आदमी
डंसता रहता है
अपना-पराया
सबको....
आदमी भी छोड़ता है काचूर ...
कभी धन-सम्पदा
कभी मान-प्रतिष्ठा
कभी कभी तथाकथित
विद्वता का...पारदर्शी काचूर ...
काचूर छोड़
सांप देह से उतार देता है
अपने अस्तित्व का एक हिस्सा....
और आदमी
ओढ़े रखता है
अपने अंहकार को
काचूर की तरह....
सुना है कचुराल सांप
डंसने से बचता है
पर कचुराल आदमी
डंसता रहता है
अपना-पराया
सबको....
बहुत सुंदर भाव पूर्ण रचना ....!
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नई पोस्ट-: चुनाव आया...
इन्सान की तो पूछो ही मत. इसके तो हज़ारों रूप हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (02-112-2013) को "कुछ तो मजबूरी होगी" (चर्चा मंचःअंक-1449)
पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बिल्कुल सच .....
जवाब देंहटाएंकटु सत्य पर बेहतरीन प्रस्तुति...
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