वर्तमान समय में राजनीति गंदगी का प्रर्याय बन चुकी थी। जब भी सभ्य जनों के बीच राजनीति की बातें शुरू होती थी तो वहीं कई लोग एकबारगी नाक-मुंह सिकोड़कर राजनीति पर बात नहीं करने की सलाह देते थे। राजनीति अच्छे लोगों के लिए नहीं रह गई। तब इसमें चोर-उच्चके, बेइमान लोग अपनी पकड़ बना ली। हत्या, अपहरण कर पैसे जमा करो और चुनाव लड़ कर सफेदपोश बन जाओ। आम अदमी पार्टी ने आज अच्छे लोगों को राजनीति में आने का साहस दिया। गरीब आदमी, समाजसेवी भी देश की सेवा आज हाथ बंटाने का साहस कर सकता है। आचार्य ओशो ने कहा था कि ‘‘कोई भी स्थान खाली नहीं रहती है। उसे भर जाना प्राकृतिक सच है। राजनीति में आज गंदे लोग इसलिए है कि उसमें अच्छे लोग नहीं जा रहे।’’ इसी को आज चरितार्थ होता हुआ देख अच्छा लग रहा है।
खांसता हुआ केजरीबाल एक आम आदमी की ही तरह लपुझंगा टाइप लगते है। उनके बोलने में अंहकार की भाषा नहीं होती है। उनको देख कर नेता टाइप बाला डर भी नहीं लगता है। न ही उनमें राहुल सरीख रौब है जहां आम आदमी जाने से सहम जाए। बस इसी बात से सभी नेताओं की नींद उड़ गई।
आज किसी भी मीडिया विमर्श में भाजपा, कांग्रेस एक साथ आप के नेताओं पर टूट पड़ते है। ठीक उसी प्रकार जैसे कौओ का झुंड उनके बीच आ गए कोयल पर टूट पड़ता है। पर टूट पड़ने से कुछ नहीं होने वाला। दिल्ली चुनाव से पूर्व दोनों पार्टियां आप का उपहास कर रही थी। परिणाम के बाद बोलती बंद हो गई।
आज सभी पार्टियों को इससे सबक लेने की जरूरत है। न सिर्फ मुख्य दोनों दलों को बल्कि क्षत्रिये और वाम दलों को भी। कथनी और करनी की असमानताओं के बीच आज वाम दल कहीं नजर नहीं आते। मीडिया विमर्श में भी चैनल वाले भी अब उनको जगह नहीं देते? यह वाम विचार धारा के बिलुप्त होने के खतरों की ओर संकेत करता है। वाम दल भी उन्हीं विचारधारा शुन्य पार्टियों की तरह छद्म सेकुलरवाद को लेकर गठबंधन की राजनीति करने लगी और राजनीति बयान बाजी भी। आज जमाना सोशल मीडिया का है। किसी भी बात को दबाया नहीं जा सकता, सो कथनी और करनी की असमानता नहीं चलने वाली।
इसी प्रकार क्षेत्रिय दल और कांग्रेस भी जिसप्रकार राजनीति को जमींदारी की वंशबाद राह ढकेल दिया और जनता उसके लिए रैयत हो गई और छद्म सेकुलर का नाटक दोनों दलों के द्वारा मिलजुल कर मंचित किया जाना लगा तो आम आदमी ने उसका भी जबाब दे दिया। वहीं देश को दो ध्रुविये राजनीति से आज निकलने का रास्त भी मिल गया है।
वहीं युवाओं ने अपने उपर लगे लफुआ होने के कलंक हो धो लिया है। आम तौर पर युवाओं पर देश और समाज के प्रति असंवेदनशील होने का आरोप लगता रहा है। आम आदमी पार्टी को मुकाम पर पहूंचा कर युवाओं ने अपनी संवेदनशीलता का परिचय दिया है।
जो भी हो, आज सभी राजनीति दल चक्रव्युह रच कर एक साथ केजरीबाल को फंसाने मे लगे है। अन्ना को भी इसका हिस्सा उसी प्रकार बना दिया जिसप्रकार भीष्म पितामह को। एक बारगी सभी पार्टियां और मीडिया चिल्ला रही है कि आप सरकार क्यों नहीं बना रही। जैसे ही किसी के साथ मिल सरकार बनाएगें तो चिल्लाना शुरू होगा, नंगा हुआ केजरीबाल का चेहरा..
यही तो राजनीति है, देखना हो गया कि इस चक्रव्युह को केजरीबाल और उनकी पार्टी कैसे तोड़ती है?
केजरीबाल और उनकी पार्टी सरकार बनाकर अपने किये वायदे निभाएं ...!
जवाब देंहटाएं============================================
RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.