अरूण साथी
मैं आम आदमी हूँ..... कहने को तो मैं प्रजातंत्र का राजा हूं पर मुझे हरम में रखा गया। मुझे देख कर पुलिस उसी प्रकार टूट पड़ती जैसे किसी गली कोई नया कुत्ता आने पर अन्य कुत्ते टूट पड़ते।
मेरा गुस्सा राजाओं महाराजाओं को आज तक नहीं दिखे। मेरा गुस्सा तब भी नहीं दिखा जब फेसबुक, ट्वीटर, ब्लॉग सहित अन्य सोशल मीडिया पर अपने गुस्से को रखने लगा। यहां भी राजा-महाराओं के चहेते मुझपर झंझुआ कर टूट पड़ते? मेरा गुस्सा उस समय भी तुमको नहीं दिखा जब जनलोकपाल के लिए एक बुढ़ा को कई दिनों तक अनशन पर छोड़ दिया गया। संसद में बैठ कर हंसी-ठठ्ठा किया। और तो और पुलिस ने रात के अंधेरे में लाठियों से मेरे बजूद को लहूलहून कर दिया। मेरा गुस्सा उस समय भी नहीं दिखा जब योग गुरू को अनशन करने पर विवश होना पड़ा। वहीं पुलिस जो मेरी रखवाली के लिए थी मेरे उपर लाठियों से प्रहार कर मेरी औकात बता दी। योग गुरू को भागकर जान बचानी चाही और उन्होने गिरफ्तार कर लिया।
मैं वही आम आदमी हूँ जिनकी बहन-बेटियों के साथ राक्षस रूपी गिद्धों ने बोटी-बोटी चलती बस में नोच डाली। जब विरोध करने के लिए सड़क पर उतड़ा तो हाय, तुमने मेरा मजाक उड़ाया। लाठियां बरसायी। बेटियों को घर से निकालने पर तंज किए। बेटियों के कपड़े पर तंज किए।
मैं वही आम आदमी हूं जिसके नौकर ही उससे नौकरों से बदतर व्यवहार करते है। मैं वही आम आदमी हूं जो जेब कट जाने से लेकर आबरू लुट जाने तक पर भी पुलिस-थाने नहीं जाना चाहता। जायें भी क्यों? वहां मेरे साथ क्या किया जाता है वह मैं लिख भी नहीं सकता। ओह ओह....
मैं वहीं आम आदमी हूं जिसे सचिवालय से लेकर ब्लॉक ऑफिस से हडका हड़का कर भगा दिया जाता है। मुझे पीने का पानी और बिजली के लिए चिरौरी करनी पड़ती है। अस्पतालों में दवा के आभाव में मैं तड़प तड़प कर मर जाता हूं? अच्छे स्कूलों में मेरे बच्चे पढ़ नहीं सकते?
मैं वहीं आम आमदी हूं जिसे तुमने हमेशा हिन्दू-मुस्लमान में बांटा, जात-पात में बांटा? वोट के लिए दंगों में मैं ही मरा? भगवान के लिए मैं ही मरा? तुम्हारा अटटहास मेरे कानों में गुंजती रही। यूं तो मैं नरक में रहता हूं पर तुमने मुझे नरक में भी ठेला-ठेली करने पर विवश कर दिया।
थैंक्स केजरीबाल, तुमने मुझे मुझसे मिला दिया.....
बहुत उम्दा आलेख ...!
जवाब देंहटाएंRecent post -: सूनापन कितना खलता है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (29-12-13) को शक़ ना करो....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1476 में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सटीक विश्लेषण.
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