बिहार के नालन्दा जिले में इन दिनों बाढ़ राहत के नाम पर आम आदमी की बर्बरता देखने को मिल रही है। आप जिले से होकर यदि गुजर रहे है तो हो सकता है कि लोगों ने सड़क जाम कर रखी हो और आप परेशानी में पड़ जाएं। यह सब हो रहा है रहा है बाढ़ राशि में मची लूट की वजह से।
दरअसल नालन्दा जिला पुर्व सीएम नीतीश कुमार जी का गृह जिला है और इसे बाढ़ प्रभावित क्षेत्र धोषित कर दिया गया। ऐसा नहीं है कि बाढ़ केवल इसी जिले में आई पर लाभ के लिए इसे ही चुना जाना वर्तमान राजनीति की एक विडम्बना को ही दर्शाता है।
बाढ़ राहत बांटने की मांग को लेकर सरमेरा ब्लाॅक के सरकारी अनाज गोदाम को जब किसानों ने लूट लिया तो इसी समय अन्दर ही अन्दर यह छूट दे दी गई कि यहां सभी को बाढ़ राहत दे दी जाए। इसके तहत दो हजार नकद और सौ किलो अनाज दिये जा रहे हैं। इस राहत को लेकर अब लोग सड़कों पर उतर कर हंगामा बरपा रखा है। कहीं अनाज का गोदाम लूटा जा रहा है तो मुखिया और सरकारी कर्मी के साथ मारपीट हो रही है।
सरमेरा में सरकारी अनाज लूटते लोग..
दरअसल यह सब हो इस लिए रहा है कि अब आम आदमी को भी सरकारी मुफ्तखोरी की आदत लग गई है। हमारी अदूरदर्शी सरकारें आम आदमी इंदिरा आवास, वृद्धा पेंशन, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, साईकिल योजना, पोशाक योजना, छात्रवृति के नाम प्रति वर्ष सरकारी रूपये खिलाने की आदी बना चुकी है जिससे आम आदमी में जागरूकता तो आई नहीं उलटे सरकारी छूट के लूट की भूख बढ़ गई।
आम आदमी का यह घिनौना चेहरा फूड सिक्योरिटी बिल के तहत मिलने वाले अनाज में भी देखने को मिला जहां गरीबों को मिलने वाला अनाज व्यवस्था देष की वजह गरीबों में नाम शामिल करा का अमीर ले जा रहे है। उनको तो जरा भी शर्म नहीं आती और वे स्कारपीओ से अनाज लेने के लिए सरकारी दुकानों पर पहूंच कर हमारी सरकारी व्यवस्था का मजाक उड़ाते रहे है।
अब जायज या नाजायाज जैसे भी हो लोग सरकारी लूट में शामिल होना चाहते है, हो रहे है। नतीजा अभी तो अनाज गोदाम को लूटा जा रहा है आगे सरकारी महकमों को नोंच खंसोट दिया जाएगा, देखते रहिए..
सरकारों द्वारा मुफ्त या नाम मात्र के मूल्य यथा दो रूपये किलो अनाज बाँटना, लेपटोप,साइकल बाँटना तथा अन्य चीजे घर बैठे बाँटना ये सब कांग्रेस द्वारा जन हित के नाम पर शुरू किये गए कार्य हैं,जिन्हें बाद में क्षेत्रीय दलों की सरकारों ने अच्छी तरह सींच कर पला पोसा है। असल में यह वह अफीम है जिसे खा कर आदमी निकम्मा पड़ा रहता है आज गॉवों में चल रही नरेगा भी इसी का संशोधित रूप है खाद्य सुरक्षा योजना भी केवल वोट लेनेके लिए शुरू होनी थी,ताकि लोग घर बैठे रहे व चुनाव के समय इस दल को वोट दे दें पैसा जनता का था जो कड़ी मेंहनत कर कमाती है और टैक्स भी भी भर्ती है ,जितना निकम्मा इन सरकारों ने लोगों को बनाया और कोई नहीं बना सकता भला कौन आठ घंटे काम पर जाये जब घर बैठे रोटी, दवा पानी व निवास की सुविधा मिले?रोजगार के अवसर न दे कर,निकम्मे पन का नशा हमारी सरकारों ने ही बांटा है व बाँट रही है, कोई भी सरकार जो ये सुविधाएँ बंद करेगी सत्ता से बाहर चली जाएगी
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