28 सितंबर 2014

समुन्द्र

(यह कविता मैंने गोवा के बागमोलो बीच पर 11 जुलाई 2014 को समुन्द्र किनारे बैठ कर लिखी थी। साथ में अपनी तस्वीर भी चस्पा कर दिया..)

1

समुन्द्र की छाती है
अथाह, अनन्त, अगम, अपार
इसलिए तो
बैठ कर इसके पास
बतिया रहा हूं
अपने सुख-दुख....

2

भरोसा है मुझे
कि यह मेरे दुख को
समेट लेगा
अपनी गहराई में
न कि आदमी की तरह
करेगा उपहास...

3

इसकी ऊँची और विराट लहरें
हैसला देती है मुझे,
कहती है कि
सतत संधर्ष से
यह पहाड़ को भी बदल देती है
रेत में...



2 टिप्‍पणियां:

  1. सबको अपनी ओर खींचे ..... बहुत सुंदर रचना

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  2. बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
    बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई

    Recent Post ..उनकी ख्वाहिश थी उन्हें माँ कहने वाले ढेर सारे होते
    http://sanjaybhaskar.blogspot.in/2014/09/blog-post_28.html#links

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