उन्मादी और हिंसक है हम
हम उन्मादी है। मथुरा में यही दिखा। एक सनकी और उन्मादी के पीछे हम भी उन्मादी होकर खड़े हो गए। कभी कोई आशाराम, कभी कोई नित्यानद, कभी कोई रामपाल, कभी कोई रामदेव, कभी कोई केजरीवाल, कभी कोई मोदी...के पीछे हम उन्मादित होकर चल देते है।
अपनी आँख, कान बंद रखते है। हमारे उन्माद को वे हवा देते है। कभी राष्ट्रबाद के नाम पे, कभी सेकुलरिज्म के नाम पे, कभी धर्म के नाम पे...और मथुरा में एक सनकी सुभाष चंद्र बोस के नाम पे हमें अफीम दी और हम जान ले लिए और जान दे दिए...
यह हमारे अंदर की हिंसा की मुखरता है। हिंसा हमारे अंदर है और वह किसी भी बहाने से बाहर आता है।
अशिक्षा, बेरोजगारी , अंधभक्ति जैसे दुर्गुण होने की वजह से लोग इन लोगों के पीछे हो जाते हैं , और ये लोग उनको उन्मादी बना देते हैं ,हालांकि रामफल,रामबृक्ष , आसाराम जैसे लोगों का खुद का अपना ज्ञान कुछ भी नहीं होता लेकिन सपने दिखा कर लोगों को मोह लेते हैं , इस हेतु हमारे अपने में चेतना होनी जरुरी है , साथी रोजगार का होना जरुरी है , बेरोजगार , निठल्ले लोग इन के झांसे में जल्दी आ जाते हैं
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बिछड़े सभी बारी बारी ... " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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