04 जनवरी 2025

जयंती विशेष: देशभक्ति बेचने से इनकार करने वाले लाला बाबू को नमन

जयंती विशेष: देशभक्ति बेचने से इनकार करने वाले लाला बाबू को नमन

अरुण साथी, वरिष्ठ पत्रकार

आज स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी, शिक्षाविद और समाजसेवी श्रीकृष्ण मोहन प्यारे सिंह उर्फ लाला बाबू की जयंती है। उन्होंने अपने त्याग, सादगी और देशप्रेम से एक ऐसी मिसाल कायम की, जिसे आज भी याद किया जाता है। लाला बाबू ने स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन यह कहते हुए ठुकरा दी थी, "देशभक्ति बेचने की चीज नहीं है। मैंने जेल में यंत्रणाएं इसलिए नहीं सही कि इसका दाम वसूलूं।"
महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी लाला बाबू ने गांधीवाद को अपने जीवन में उतारकर सादगी और जनसेवा को अपना धर्म बना लिया। वे निस्वार्थ भाव से अनगिनत छात्रों को पढ़ाई के लिए प्रतिमाह आर्थिक सहायता देते थे। जब किसी ने उन्हें ट्रस्ट बनाकर इस कार्य को संगठित करने की सलाह दी, तो उन्होंने कहा, "मैं उपकार की दुकान खोलकर यश बटोरना नहीं चाहता। मुझे अपने तरीके से जीने दीजिए।"
शैक्षणिक और सामाजिक योगदान

लाला बाबू ने बरबीघा का श्रीकृष्ण रामरूची कॉलेज समेत पूरे बिहार में कई विद्यालयों और अस्पतालों की स्थापना की। उनके दिल में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के प्रति विशेष लगाव था। वे कहते थे, "मेरे मरने के बाद मेरी लाश फेंक दी जाए, मुझे दुख नहीं होगा। लेकिन मेरी ये प्यारी संस्थाएं अगर लड़खड़ाएंगी, तो मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।"
उन्होंने अपनी संपत्ति अपने भाई को दान कर दी और राज्यसभा सदस्य रहते हुए भी सादगी का जीवन जिया। उनके अंतिम दिनों की मुफलिसी के किस्से सुनकर आज भी लोगों की आंखें भर आती हैं।

"बरबीघा का दधीचि" कहे जाते है 

लाला बाबू को "बरबीघा का दधीचि" की उपाधि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने दी थी। दिनकर जी ने लिखा कि लाला बाबू में अभूतपूर्व त्याग और धैर्य था। वे कहते थे, "मैं चाहता हूं कि मेरी छाती फट जाए और लोग मेरे दर्द को देख सकें।" दिनकर जी ने लिखा है कि बिहार केसरी उनके परम आराध्य थे किंतु उन्होंने जब लाला बाबू को अकारण कष्ट पहुंचाया तब भी लाला बाबू का आनन मलिन नहीं हुआ।

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स्वतंत्रता आंदोलन में पांच बार गए जेल

लाला बाबू का जन्म 4 जनवरी 1901 को बिहार के शेखपुरा जिले के तेउस गांव में हुआ। 1911 में बीएन कॉलेजिएट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद बीएन कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन गांधी जी के आह्वान पर पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। 1930 में 5 महीने, 1932 में 6 महीने, 1941 में 4 महीने, 1942 में 6 महीने और 1943 में 1 साल 5 महीने तक जेल में रहे।

बरबीघा के पहले विधायक

लाला बाबू 1952-1957 तक बरबीघा के पहले विधायक रहे। 1957-1958 में राज्यसभा के सदस्य और 1958 से 12 वर्षों तक बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे। उन्होंने बिहार और भागलपुर विश्वविद्यालयों के सीनेट और सिंडिकेट में भी अपनी सेवाएं दीं।

मृत्यु और विरासत

लाला बाबू का निधन 9 फरवरी 1978 को हुआ। उनका जीवन त्याग और सेवा का प्रतीक था। उनकी जयंती पर पूरा देश उनके योगदान को याद कर श्रद्धांजलि अर्पित करता है।


27 दिसंबर 2024

मौन रहकर गरीब और मध्य वर्ग का मन मोहन वाले का चला जाना..

मौन रहकर गरीब और मध्य वर्ग का मन मोहन वाले का चला जाना..

प्रखर अर्थशास्त्री, गरीबों और मध्य वर्ग के उद्धारक, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को कई लोग कई तरह से याद कर रहे। मेरे जैसा गांव में रहने वाले आम आदमी के लिए मनमोहन सिंह को याद करना अलग है। मैं देश की अर्थव्यवस्था, जीडीपी इत्यादि बिल्कुल नहीं समझता। जमीन पर जुड़ी बातों को समझता हूं।


सौ बात की एक बात। मनमोहन सिंह देश में निम्न और माध्यम वर्ग के उत्थान से लिए काम किया। मौन रहकर, काम करते हुए मन को मोह लिया।

बात 2008/09 की रही होगी। मैंने बाजार में एक बड़ा बदलाव देखा। यह बदलाव गरीब मजदूर के हाथ में पांच–पांच सौ का नोट सहज दिखने लगा। वही नोट बाजार में आने लगे। मेरे लिए यह आश्चर्यजनक बात थी। मैं गरीबी से जुड़ी बातों को बारीकी से देख पाता हूं । फिर एक  बार इसे फेसबुक पर लिखा था।

बाद के दिनों में खोजबीन में यह बात आई कि यह महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना की देन है। फिर एक न्यूज चैनल के एक बहस, मुझे याद है। एक अर्थशास्त्री ने तर्क दिया। मनरेगा योजना में गड़बड़ी की संभावना थी फिर भी इसे लागू किया।

मनमोहन सिंह का मानना था कि भारत को मजबूत करने के लिए गांव और गरीब के हाथ में पैसा भेजना जरूरी है। इसमें पैसा गांव के लोग के पास ही रहेगा। वही हुआ।

कई बदलाव मील का पत्थर साबित हुआ है। वे बोलते भले कम थे, किया बहुत ज्यादा। मजबूती के कदम उठाया।

60 हजार करोड़ किसानों का कर्ज माफ करना साहसिक कार्य था। सूचना का अधिकार ऐसा ही साहसिक कार्य है। इसी ने उनकी सरकार के कई घोटाले उजागर किए। फिर भी RTI कानून को कमजोर नहीं किया। आज इस कानून के धार को भोथरा कर दिया गया।

शिक्षा का अधिकार। भोजन का अधिकार दिया। गांवों की स्वास्थ्य व्यवस्था में बड़ा बदलाव लाया। एंबुलेंस से लेकर बहुत कुछ। यह क्रांति भी मनमोहन सिंह की देन है।

समाचारों से जुड़े रहने की वजह से इसपर कई रिपोर्ट किया।

अब घरों में प्रसव दर में भारी कमी आई। अब गरीब माता भी बहुत अच्छी व्यवस्था में सरकारी अस्पताल में अपने बच्चे को जन्म देती है।

गर्भवती को एंबुलेंस के अस्पताल लाया जाता। गंभीर स्थिति में सरकारी अस्पताल में भी सिजेरियन प्रसव कराया जाता है। मेरे बरबीघा जैसे सरकारी अस्पताल में अब हर महीना पांच से सात सिजेरियन डिलीवर हो रहा। जिले के सदर अस्पताल दो दर्जन से अधिक। यह सब तब, जब कई आशा, ममता और नर्स कर्मी मरीज को निजी नर्सिंग होम में लालच में आकर भेज देती है।

सरकारी अस्पताल में गरीब का प्रसव होने पर मोटी राशि मिलती है। बच्चों का नियमित टीकाकरण होता है। जिसपर निजी अस्पताल में 50 हजार से अधिक खर्च होते।बिहार जैसे गरीब प्रदेश में माता, शिशु मृत्यु दर भरी कम हुआ। परिवार नियोजन बढ़ा।

शिक्षा का अधिकार मनमोहन सिंह की देन है। अब गरीब से गरीब बच्चे स्कूल जा रहे। खोज खोज कर अभियान चलता है। जरा सा संपन्न भी निजी स्कूल में बच्चों को भेजते है।

भोजन का अधिकार भी मनमोहन सिंह की देन है। आज जन वितरण से निःशुल्क मिलने वाले अनाज की श्री गणेश मनमोहन सिंह ने ही किया।

मनमोहन सिंह के आर्थिक उदारीकरण को ही आज के मजबूत भारत का आधारशिला माना जाता है।

अब समझिए। आज देश के बड़े बदलाव में आधार कार्ड की अहम भूमिका है। यह आधार कार्ड मनमोहन सिंह की ही देन है।

26 नवंबर 2024

नाचता गाता धर्म और ध्यान

#नाचता_हुआ_धर्म #गाता हुआ #ध्यान

ध्यान को सर्वश्रेष्ठ साधन माना गया है। आचार्य रजनीश ने नाचने को भी ध्यान से जोड़ा और उनके ध्यान करने का सबसे बेहतर तरीका यही है। 
गांव घर में सभी जगह यह ध्यान गांव के लोग सदियों से करते आ रहे हैं । हिंदू और सनातन धर्म की शायद सबसे बड़ी मजबूती यही है। आज भी गांव में मंगलवार को भजन कीर्तन का आयोजन होता है और गांव के लोग सुध बुध खोकर भजन में तल्लीन हो जाते हैं। साल में एक दो बार हरे राम कीर्तन का आयोजन भी इसी ध्यान मार्ग का एक माध्यम है। ऐसी ही एक तस्वीर विष्णु धाम की है। जहां एक बुजुर्ग कीर्तन करते हुए ध्यान मग्न दिखाई दे रहे हैं। पहले पूजा पाठ में भी कीर्तन मंडली को ही बुलाया जाता था। मृत्यु के बाद भी कीर्तन मंडली का गायन की परंपरा थी। हालांकि अब धीरे-धीरे यह खत्म हो रहा।
 बाकी, शास्त्रों का अध्ययन मेरे पास नहीं है। ना ही मैं सनातन धर्म का मर्मज्ञ हूं। व्यवहारिक गांव घर में जो देखता हूं उसको लेकर यह समझ मेरी है।

15 नवंबर 2024

देवता कहलाना आसान नहीं है, सामा चकेवा कथा का मर्म, अरुण साथी..की कलम से..


देवता कहलाना आसान नहीं है, सामा चकेवा कथा का मर्म, अरुण साथी..की कलम से..


मिथिला के क्षेत्र में सड़कों पर सामा चकेवा की मिट्टी की मूर्तियों को बिकता देख रुक गया। हमारे मगध में सामा चकेवा पर्व का चलन नहीं है। या कहीं होगा, तो नहीं पता। 
हमलोग शारदा सिन्हा के गीत, साम चकेवा खेलव हे...चुगला करे चुगली.... बिलैया करे म्याऊँ...से इसे सुना। 


रुक कर जानकारी ली तो सामा चकेवा बहन के प्रति भाई के अगाध प्रेम का त्योहार है।

हालांकि कई जगह अधकचरा जानकारी भी इसी आभाषी दुनिया ने सामा चकेवा के बारे है। 
खैर, आम तौर पर यही है। पर यह इतना ही नहीं है। यह चुगला के चुगली (निंदा) के दुष्परिणाम और इसकी चपेट में भगवान कृष्ण के भी आ जाने और अपनी पुत्री को पंछी बनने का श्राप दे देने की पौराणिक कथा है। स्कंद पुराण में इसका जिक्र है।

कथानुसार, सामा बहुत सुशील और दयालु थी। इसी से वह एक ऋषि की सेवा करने उसके आश्रम जाती थी। 

इसी बीच एक निंदा करने वाला चुगला ने राजा कृष्ण को भरी सभा में क्षमा याचना के साथ सामा को ऋषि आश्रम में जाने को लेकर चरित्रहीन बता दिया। इस झूठे आरोप में वह कृष्ण भी आ गए, जो प्रेम रूप में ही पूज्य है।

 उन्होंने बगैर सत्य का पता लगाए अपनी पुत्री की पंछी बनने का श्राप दे दिया। सामा पंछी बन बृंदावन में विचरने लगी। 

कहीं कहीं यह भी उल्लेख है कि सामा के पति ने उसका साथ दिया। वह भी पंछी बन, उसके साथ हो लिया। 
खैर, इस बीच सामा के भाई चकेवा को जब यह पता चला तो वह बहन को श्राप मुक्त कराने का संकल्प लिया। कठोर तपस्या की। सामा की श्राप मुक्त कराया। 

मिथिला में यही सामा चकेवा का पर्व है। इसमें बहन उपवास करती है। गीत गाती है। आनंद मानती है। 

कार्तिक पूर्णिमा को सामा चकेवा की प्रतिमा का विसर्जन होता है। यह कठोर कथा है। भगवान कृष्ण भी निंदा करने वालों से प्रभावित होकर या समाज से डरकर अपनी पुत्री को श्रापित कर दिया। समाज में सतयुग में राम, द्वापर में कृष्ण से लेकर कलयुग तक निंदा और उसका प्रभाव समान है। कई युग बीते पर निंदा और आलोचना का कुप्रभाव नहीं बदला। 

सामा–चकेवा

युग युगांतर से
यही हुआ, हो रहा

भरी सभा में
किसी ने सीता को
तो किसी ने सामा को
चरित्रहीन कह दिया...
सीता अग्नि परीक्षा दी
सामा श्रापित हो गई...

आज भी कोई निकृष्ट 
जब किसी के चरित्र
पर सवाल उठाता है
तो देवता कहलाने
हम सामा को 
श्रापित कर देते है..

आखिर देवता कहलाना
न कल आसान था,
न आज आसान है..
है कि नहीं...








12 नवंबर 2024

कुकुअत , खुजली वाला पौधा

#कुकुअत खुजली वाला पौधा 

अपने तरफ इसका यही नाम है। अपने गांव में यह प्रचुर मात्रा में है। यह एक लत वाली विन्स है। गूगल ने इसका नाम Mucuna pruriens (L.) DC. (Velvet bean) किवांच, कवाछ बताया है। 
कुकुअत का दुरुपयोग बचपन में बदमाश बाराती खुजली कराने के लिए किया है। इसके फली के रोएं के संपर्क में आने से भयंकर खुजली होती है। 

खैर, इसकी लता, पत्ते को बचपन से पहचानता हूं। पर पहली बार इसके फूल दिखे। काला रंग है। गुच्छे में। खूबसूरत। इसके कली, इसके फूल और इसकी फली, सभी तस्वीर खींची और सभी के लिए यहां प्रस्तुत किया। 
एक बात और। इसका नया नाम कवाछ पता चला। फिर माय की याद आ गई। जब बचपन में बदमाशी करता तो माय कहती

" छौंड़ा एक दम कवाछ लगा दे छै। बिगड़ गेलई हैं।"

आज उस कवाछ का मतलब समझ में आया।

06 नवंबर 2024

मारबो रे सुगबा धनुख से...सुग्गा गिरे मूर्छाय...

मारबो रे सुगबा धनुख से...सुग्गा गिरे मूर्छाय... 

सुबह आंख खुली। छठ गीत बजाने के लिए निर्धारित समय से पहले मोबाइल ऑन किया। शारदा सिन्हा का गीत बजाया। 

"मारबो रे सुगबा धनुख से...सुग्गा गिरे मूर्छाय। आदित्य होई न सहाय...फिर मोबाइल में नोटिफिकेशन आया। छठी मईया ने शारदा सिंहा को अपने पास बुला लिया। कल अफवाह के बाद विश्वास नहीं हुआ। सोचा फिर खबर झूठ हो। पड़ताल किया। पता नहीं क्यों इस बार खबर झूठ नहीं निकली। 

छठ व्रत में शारदा सिंहा का गीत मंत्र है। यह न बजे तो उपासना अधूरी। माय की फिर याद आ गई। किशोरावस्था में जब कभी छठ पर किसी दूसरे का भोजपुरी गीत बजाता तो माय गुस्से में आ जाती। 

" नै सुनो छीं रे छौंडा, शारदा सिन्हा वाला बजो छौ तउ बजाउ, नै तो बंद कर। दोसर के गीत जरिको निमन नै लगो छै...!!"

छठ व्रत के दिन ही छठी मईया ने अपनी स्वर कोकिल उपासिका को अपने पास बुला कर उनकी साधना को सिद्धि में बदल दिया।


मंत्र घर में शारदा सिन्हा का छठ मंत्र गूंज रहा है

"झिल मिल पनिया में नैय्या फंसल बाटे, कैसे के होई नैय्या पार हो दीनानाथ।"

सदा सर्वदा गूंजता रहेगा। 


नमन...