04 जुलाई 2024

मजबूत विपक्ष प्रधानमंत्री की बड़ी चुनौती

 मजबूत विपक्ष प्रधानमंत्री की बड़ी चुनौती 


देश के सदन में संसद के मानसून सत्र में इस साल बिजली कुछ अधिक ही कड़क रही है। मतों की बारिश से जिस किसान को खुशी माननी चाहिए, वह चिंतित है। जैसे उम्मीद से बहुत ही कम बारिश हुई हो। वैसे में फसलों को बचाना अधिक परिश्रम का काम हो जाता है। खेत को जोतने, खर पतवार को निकोने। खाद देने और आरी (मेड़) में चूहे के द्वारा जगह-जगह किए गए छेद को दुरुस्त करने के बाद कम बारिश से निराशा होनी ही चाहिए। पर किसान तो प्रति वर्ष यही करता है। खेतों को स्वच्छ, सबल बनाने का काम गर्मी से ही शुरू करता है। 


उधर, जिनके यहां बूंदाबांदी हुई वे नितरा रहे। नितराना स्वाभाविक ही है। रेगिस्तान में बूंदाबादी भी खुशी देती है। देहात में एक कहावत है, 

एक लबनी धान होते ही मजदूर नितराने लगता है। 

यह अच्छा ही है। पर बहुत अच्छा नहीं है। इसी नितराने ने राहुल गांधी ने हिंदुओं को हिंसक और नफरत फ़ैलाने वाला बता दिया। बाद में सुधार कर कहा, बीजेपी हिंदू नहीं है। आरएसएस हिंदू नहीं है।

राहुल गांधी ने यह सब अकस्मात नहीं कहा है। उनको पढ़ाया, रटाया गया है। 

राहुल गांधी के इस कथन और प्रधानमंत्री के सदन में संबोधन में हंगामा। विपक्ष की राजनीति का हिस्सा है।

इस सब से विपक्षी खेमा आह्लाद से भर गया है। विपक्षी खेमा के क्रांतिकारी पत्रकार, बुद्धिजीवी, नेता, कार्यकर्ता, सभी की बांछे खिल गई है। प्रतिपक्ष के नेता राहुल के इस अक्रमकता से वे फूले नहीं समा रहे। 

राहुल गांधी ने जिनके लिए यह सब किया। उनके पास संदेश पहुंच गया। 


अब इसी बीच, अग्निवीर, नीट पर्चा लीक जैसे जनसरोकार की आवाज भी सदन में गूंजें। यह लोकतंत्र के लिए सुखद है। इस सबके बीच हिंदुओं को अपमानित करके अपने वोट बैंक को साधना, दुखद भी है। इसपर बहुत कुछ लिखने से फायदा नहीं है। अपने अपने खेमेबाजी के हिसाब से ही लोग पढ़ेंगे। पता है। तब भी। 

जब प्रतिपक्ष के नेता सदन में ऐसा कह रहे थे , उसी समय ब्रिटेन का प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से कहा की वे हिंदू है। यह धर्म हमें सेवा का भाव सीखता है।

अब, एक विचार तो कई के मन में उठा ही है। क्या 26/11 , 9/11, शर्ली हब्दो, कमलेश तिवारी, कन्हैया लाल जैसे हजारों उदाहरण के बाद भी उस समुदाय के लिए सदन में ऐसा बोलने का कोई साहस करेगा...?


सर तन से जुड़ा का फार्मूला आज विश्व की चुनौती है। पर जिस धरती से निकले हिंदुत्व को आज पूरी दुनिया में स्वीकारिता बढ़ी है। बासुधैब कुटुंबकम का मंत्र दुनिया ने स्वीकार किया है, वह अपने देश में तिरस्कार पा रहा। डेंगू, मलेरिया कहा जा रहा। यह सहिष्णुता भी इसी में है।

यह सब वोट बैंक की तुष्टिकरण के लिए हो रहा। यह सच है। ऐन केन प्रकारेन, सत्ता चाहिए। हलांकि हिन्दूओं में भी कुछ बददिमाग, कट्टरपंथी पनपने लगे है। पर समाज उसको तिरस्कृत कर रहा है। 

अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह कार्यकाल चुनौतीपूर्ण है। यह संकेत साफ है। जनसरोकार के मुद्दे को नजरंदाज करने की पुरानी आदत अब छोड़नी होगी। यह तो तय है। इसके संकेत भी मिल रहे।

वहीं सदन में प्रधानमंत्री का यह कहना कि हिंदुओं के अपमान को बाल हठ नहीं मन सकते, सही ही है। उन्होंने सभी बिंदुओं पर मजबूती से बातों को रखा। वे अपने वोट बैंक को साध रहे। पर एक बात है कि देश के युवाओं के लिए अग्निवीर, सरकारी नौकरी एवं बड़ी समस्या है। इस अवाज को सुनना चाहिए। तर्क गढ़ कर झूठ को सच नहीं बताना चाहिए।  

17 जून 2024

देवेश चंद्र ठाकुर का कड़वा सच

 देवेश चंद्र ठाकुर का कड़वा सच 


अलगू-मुझे बुला कर क्या करोगी? कई गाँव के आदमी तो आवेंगे ही।
खाला-अपनी विपद तो सबके आगे रो आयी। अब आने-न-आने का अख्तियार उनको है।
अलगू-यों आने को आ जाऊँगा; मगर पंचायत में मुँह न खोलूँगा।
खाला-क्यों बेटा ?
अलगू-अब इसका क्या जवाब दूँ? अपनी खुशी। जुम्मन मेरा पुराना मित्र है। उससे बिगाड़ नहीं कर सकता। खाला-बेटा, क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?
हमारे सोये हुए धर्म-ज्ञान की सारी सम्पत्ति लुट जाय, तो उसे खबर नहीं होती, परन्तु ललकार सुन कर वह सचेत हो जाता है। फिर उसे कोई जीत नहीं सकता। अलगू इस सवाल का कोई उत्तर न दे सका, पर उसके हृदय में ये शब्द गूँज रहे थे-क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?


मुंशी प्रेमचंद के पंच परमेश्वर के ये संवाद हर किसी के मन में रचा बसा है। यही संवाद आज सीतामढ़ी के सांसद देवेश चंद्र ठाकुर  ने कही तो बवाल हो गया। देवेश चंद्र ठाकुर एक घीर-गंभीर व्यक्तित्व के धनी नेता है। कभी विवादास्पद बयान नहीं देते। इसीलिए इसे मैं गंभीरता से लेते हुए  उनका समर्थन करता हूं। मैंने पहले भी अपने कई आलेखों में कई उदाहरण से यह बात रखी है। जाति-धर्म पर वोट  ने गरीब जनता का बड़ा नुकसान किया है। अब समर्पित राजनीतिज्ञ भी गरीब से गरीब जनता के हित में काम करना इसलिए नहीं चाहते। उनको पता है कि करेजा भी निकाल के रख दो तब भी वोट देने वक्त जाति ही देखेगें। 

देवेश ठाकुर ने कई नेताओं के मन की बात सार्वजनिक कर दी है। जब समाज के लिए समर्पित कोई भी नेता बुथ पर मिले वोट को समझेगा तो उसका दिल टूट ही जाएगा। केवल जाति-धर्म।  देवेश ठाकुर ने भी आहत मन से ही कहा कि यादव और मुस्लमान का काम नहीं करेगें। उनका आशय व्यक्तिगत कामों से है। बाद में भी उन्होने मजबूती से अपनी बात का समर्थन किया है। बताया कि कई सालों तक जाति धर्म से उपर उठकर जिन लोगों का व्यक्तिगत काम  किया। उनको लाभ दिया। वे लोग भी चुनाव में वोट नहीं दिए। तब व्यक्तिगत काम क्यों करेगें। सार्वजनिक काम अवश्य करेगें। मेरी नजर से यह सही कहा है। अपना काम लेने में जाति धर्म नहीं देखते। वोट में देखते है। तब दुख तो होगा ही। 

एक दृश्य मेरी आंखों के सामने आज आ गया। दस साल पहले बरबीघा में एनडीए प्रत्याशी शिवकुमार जी चुनाव हार गए। उनके घर पर मिर्जापुर से कोई गरीब बुढ़ा आदमी दवा के लिए मदद मांगने आए। उन्होंने कातर भाव से भावुक होकर हाथ जोड़ लिए और कहा कि उनके पास अब कुछ नहीं है। जनता ने जिसे चुना है, उसके पास जाइए।  इसको समझिए। नई पीढ़ी के नेता बनने वाले अथवा बन चुके नेता अब जनता से जुड़ना पसंद नहीं करते। वे आलाकमान से जुड़ना, सोशल मीडिया पर चमकना, रुपये बनाना अधिक पसंद करता है। सो, देवेश ठाकुर ने कड़वा सच कहा है। सबका मन तो खराब होगा ही। 


13 जून 2024

एडमिन, मोडी जी और किमज़ोम

 एडमिन, मोडी जी और किमज़ोम 


अरुण साथी 


व्हाट्सएप ग्रुप का एडमिन होना कोई हंसी ठठ्ठा का काम नहीं है। यह उतना ही कठिन है जितना काला कोट अधिक-वक्ता, चोंगाधारी पत-कार, झोलाछाप समाझ-सेवी, बिना नारा के पायजामा वाला नेटा होना।  


ग्रुप के आदरणीय एडमिन स्वयं को मोडी जी से कम नहीं बुझते! बुझे भी क्यों ? जैसे देश के भांति-भांति के प्राणी को संभालना मोडी जी के लिए मुश्किल है, वैसे ही ग्रुप में भांति-भांति के प्राणी को संभालना मुश्किल होता है।

इतना ही नहीं, जैसे मोडी जी को ध्रुत लाठी, रबिश कुंभार, अमित उलज्जुम, सच्च्छी जैसे का कोपभाजन होना पड़ता है, वैसे ही ग्रुप एडमिन को भी तानाशाह का प्रमाण पत्र अक्सर मिलता रहता है।

जैसे अमित भारतीय जैसे मोडी जी के भक्त होते है वैसे एडमिन के भी होते है। एडमिन ने ग्रुप में छींक क्या दिया, जय जय शुरू।


जैसे मोडी जी अपने विरुद्ध आवाज सुनना पसंद नहीं करते वैसे ही एडमिन भी।

जैसे मोडी जी अपने विरुद्ध आवाज उठाने वाले को पार्टी निकाल बाहर करते है वैसे ग्रुप एडमिन भी ।

हां, एक बात में मोडी जी से एडमिन अभी उतना ही दूर है जितना मंगल ग्रह। वह बात है विरोध की आवाज उठाने वाले को जेल भेजना। जैसे केजरी बवाल, हेलमंत छोडेन आदि, इत्यादि। कौआ को बगुला बनाने की कला में भी एडमिन मोडी जी से बहुत पीछे है।

मोडी जी की ही तरह एडमिन की शक्ति को कम आंकते है उनको सबक सिखाने का कई तरीका है। मोडी जी के पास ईबी, सीडीआई है। एडमिन के पास ग्रुप में भेजे गए किसी के भी संदेश को गायब करने की शक्ति। ग्रुप को केवल एडमिन के लिए करने की शक्ति सबसे शक्तिशाली है। अच्छा! यह शक्ति तो बहुत शक्तिशाली है। मतलब की किमजोम जितना। अभिव्यक्ति की आबादी यहां कड़ुआ तेल बेचने चला जाता है। चूं चां बंद। केवल एडमिन संदेश भेजेगा। बाकी मूकदर्शक। सच पूछिए तो इतनी शक्ती तो अपने मोडी जी के पास भी नहीं है। होता तो रबिश, उलज्जिम, लाठी कैसे रहते।  

अच्छा ऐसा नहीं है कि ग्रुप एडमिन मोडी जी और लाडू प्रसाद जादभ जी जैसा लोकप्रिय नहीं हो सकता। इसके लिए अपने अपने जाति धर्म का ग्रुप बना कर लोगों को उसके मन के अनुसार धर्म और जाति का नशा कराते रहे। चुपचाप, सब नाश। फिर सब खुश रहेगा। 

07 जून 2024

धन्य धन्य पतिदेव, धन्य धन्य धनिया, धन्य मोदी जी

 धन्य धन्य पतिदेव, धन्य धन्य धनिया, धन्य मोदी जी 


अरुण साथी

आजकल धरम बढ़ और करम घट गया है। कोई पूजा-पाठ हो। सोशल मीडिया पर रिल्स, सेल्फी, चित्र का ऐसा ज्वारभाटा आता है की उसमे बड़े बड़े अधार्मिक जहाज डूब जाते है। अब भला डिजिटल युग में धर्म को आचरण में उतारने की जरूरत क्या है? फेसबुक पर उतार रहे, यही क्या कम है!


नवरात्र में कन्या पूजन, कड़वा चौथ, तीज, वट सावित्री में पति पूजन। वट सावित्री में पति पूजन की तस्वीर देख कर जिनकी पत्नियों ने वट सावित्री पूजन नहीं की, उनका करेजा फट जाता है। कई तरह का जेवर पहन, सोलह शृंगार कर धनिया सुबह सुबह हाथ का पंखा लेकर बरगद के पेड़ की पूजा करने निकली। पूजा की थाली लेकर जैसे ही दरवाजे से धनिया निकली तो वह जोर से रंभाई। मेरा मोबाइल छूट गया है, दे दो। 

अब पतिदेव को पूजन का महत्व समझ आ गया। रील्स और सेल्फी का सर्वोत्तम प्रसाद वितरण जो करना है।

खैर, कई दंभी पति पूजन के बाद पंखा झला कर, पांव छुआ कर, फेसबुक पर फोटो लगा कर, दूसरे पतियों को हीनता से भर देते हैं। वे अपने दुर्भाग्य को कोसते है। उनको ऐसी गुणी पत्नी क्यों न मिली?

खैर, अब किसी भी पूजा में मोबाइल उतना ही अनिवार्य हो गया है जितना पान, फूल, कसेली । धार्मिक उत्थान के इस महायज्ञ में मोबाइल की अनिवार्यता को सुनिश्चित करने में मोदी जी की महत्ती भूमिका रही है। उन्होंने सारे पूजा-ध्यान में मोबाइल की उपयोगिता को प्रोत्साहित करने के लिए ही  गालियां सुनकर भी ध्यान की अपनी तस्वीर वायरल की है। 

उनका मानना है की पूजा ध्यान में मोबाइल की अनिवार्यता का अपना सांस्कृतिक और पौराणिक महत्व है। पाश्चात्य संस्कृति वालों ने आर्यावर्त, भरतखण्ड , जम्बूदीप की संस्कृति, सभ्यता और विकास को नीचा दिखाने में इतिहास को तोड़ मरोड़ दिया है। अभी मोहनजोदड़ो की खोदाई में मोबाइल उपयोग का प्रमाण मिला है। मिला है कि नहीं। महाभारत में संजय तो दूरदर्शन का सीधा प्रसारण ही करते थे । सो उन्होंने मोबाइल को अपने पूजा ध्यान में स्थान दिया तो उनपे इतना क्यों बिगड़ते है।

जब बात मोबाइल की अनिवार्यता की हो रही है तो फिर यह शोधार्थी के शोध का विषय है कि मोबाइल की वजह से हमारी धार्मिक आस्था में अपार वृद्धि हुई है। धर्म स्थलों पर अपार भीड़ में मोबाइल का सबसे बड़ा योगदान है। घरों में भी एकासी, बेरसी जैसें विलुप्त होते धार्मिक अनुष्ठानों को बढ़ावा मिला है।

05 जून 2024

मोदी को चेतावनी और लोकतंत्र की ताकत वाला जनादेश

मोदी को चेतावनी और लोकतंत्र की ताकत वाला जनादेश

एक पुरानी कहानी है। एक राजा ने अपनी प्रजा को महल के बाहर तालाब में अगले दिन एक एक लोटा दूध डालने का आदेश दिया। अगले दिन लोग यह सोचकर की दूसरा तो दूध डाल ही देगा। एक उसके न डालने से बड़े तालाब में क्या फर्क करेगा, किसी ने तालाब में दूध नहीं डाला। तालाब सूखी रह गई। बस।
आगे बढ़िए। इस चुनाव में मेरी समझ से सोशल मीडिया कंपनियों ने मोदी सरकार के विरोध में काम किया और विरोधी पोस्ट को अधिक जगह दी है। यह बड़े जांच का विषय है।

अब और आगे। राजनीति की चाल शतरंज की टेढ़ी चाल है। समझना मुश्किल है। बीजेपी की हार के कई कारण है। कुछ महत्वपूर्ण है। समझिए। बीजेपी और एनडीए की हार को इंडिया गठबंधन वाले अयोध्या की हार से जोड़ कर रेखांकित कर रहे है। समझिए। राहुल गांधी की पूरी मोहब्बत यात्रा मुस्लिम क्षेत्रों को प्रभावित करने का प्रयास था। प्रभाव रहा। समझना तो यह भी चाहिए। यदि राम मंदिर, 370, सीएए जैसे मुद्दे पर बीजेपी को जीत का भरोसा होता तो चुनाव से पहले इतना शाम, दाम, दंड , भेद नहीं करती। अंतिम समय में जेडीयू और टीडीपी से गठबंधन नहीं करती। यही काम भी किया। वरना सरकार नहीं बनती।

बीजेपी के लिए निराशा वाला चुनाव नहीं रहा। दस साल सत्ता में रहने का अपना नुकसान होता है। यूपी, महाराष्ट्र ने जरूर निराश किया। एमपी ने उत्साह वर्धन। उड़ीसा ने अति उत्साहित।


कांग्रेस अति उत्साह में है। उसके नेताओं के बोल बिगड़ गए है। यह इसलिए है कि उसे उम्मीद नहीं थी, परिणाम ऐसा होगा।

खैर, बीजेपी के हार तो हुई है। कारक कई है। 

मूल कारक में से पहला। इस चुनाव में देश भर में अकेले मोदी चुनाव लड़ रहे थे। उनके एमपी, प्रत्याशी मोदी के नाम को जीत का मंत्र मन कर जन को त्याग दिया। अड़ियल स्वभाव रहा। जनता, कार्यकर्ता और नेता। सबको दरकिनार किया। बिहार में आरके सिंह जैसे मंत्री पार्टी ने नेताओं से भर मुंह बात तक नहीं करते थे। कई ऐसे ही थे। बीजेपी भी अंतिम समय नामांकन के दिन तक , जिसको मन हुआ टिकट दिया। मनमर्जी।

एक जबर कारक वोट जिहाद का नया फार्मूला रहा। मुस्लिम समुदाय के वोटर आगे बढ़कर वोट किया। माहौल बनाया। इस्लाम खतरे में है। उसे हवा दी। एक जुट मतदान किया। यह काम किया। बीजेपी के वोटर फील गुड में रहे। 

तब भी। यह परिणाम शक्ति के संतुलन वाला है। भारतीय जनता ने साफ कह दिया। होश में रहो। ऑल, बॉल , फुटबॉल मत हो। 

एक बड़ा कारक यह भी समझिए। 400 पार के नारे को ही विपक्ष ने हथियार बना लिया।इसे संविधान बदलने, लोकतंत्र को खतरा , तानाशाह, आरक्षण खत्म करने के रूप में प्रचारित किया। यह काम कर गया। सबसे बड़ा मुद्दा यही बना। सोशल मीडिया पर मोदी विरोधी मीडिया ने इसे हवा दी। कई बड़े बड़े जख्मी पत्रकार मैदान में मोदी को हराने में कसर नहीं छोड़ी। कुछ कारगर हुए।

लोकतंत्र के खतरे के आग में घी का काम झारखंड और दिल्ली के सीएम का जेल जाना भी रहा। इनके भ्रष्टाचार किए जाने का मुद्दा गौण हो रहा। ये मोदी के तानाशाह होने के बनावटी माहौल को पुष्ट किया। ईडी का चुनाव में लगातार विपक्ष पर धावा बोलना भी इस अफवाह को बल दिया। हालांकि नौटंकी के बाद भी दिल्ली में केजरीवाल की हार हुई।


बात राहुल गांधी की। चुनाव परिणाम से वैसे ही इतरा रहे जैसे गांव में कहावत है कि एक लबनी धान होते ही गरीब नितराने लगता है। थमो जरा। 

कम से कम अब तो मैं इन पार्टियों को सेकुलर नहीं मानता। पहले समझ नहीं थी। तो मानता था। बीजेपी हिंदू तो कांग्रेस और अन्य मुस्लिम परस्त पार्टियां है। तो इस चुनाव को सेकुलर से जोड़ना झूठ है। यूपी में मायावती का कमजोर होना अखिलेश को मजबूत किया। बिहार में बड़बोले तेजस्वी का दंभ भी टूटा। पूर्णिया इसका उदाहरण है। पप्पू यादव को मिट्टी में मिलाने चले। परिणाम उल्टा हुआ। बिहार में काराकाट, आरा, बक्सर। जहानाबाद। नीतीश कुमार के जिद्द में गया। बस इसी तरह खेल हुआ।


बिहार के लिहाज से यह चुनाव एक बार फिर लालू यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव के अपराधी, जातिवादी प्रयोगशाला को ध्वस्त करने वाला रहा। कई नरसंहार, नवादा जेल ब्रेक का दोषी अशोक महतो को हीरो बना के पेश कर समाज को बांटने और लहकाने का प्रयास किया। बिहार ने नकार दिया। नीतीश कुमार बिहार के फिर हीरो निकले। दुर्भाग्य यह नीतीश कुमार के पलटने की चर्चा भी कल से ही चर्चा होने लगी। इसका खंडन नहीं हुआ।








22 मई 2024

माटर साहब के लिए बनडमरु बाबा का मंत्र और उपर उपर पीने वाले

 माटर साहब के लिए बनडमरु बाबा का मंत्र और उपर उपर पीने वाले


(अरुण साथी की व्यंग रचना )

डिस्कलेमर- इसका किसी नेता, अधिकारी, कर्मचारी से कोई संबंध नहीं है। दिल पर हल्का हल्का लें।

आज एक मित्र उस समाचार से दुखी थे जिसमें एक वरीय पत्रकार ने लिखा कि बिहार के सर्वोच्च पदधारी महोदय ने बाबा से अनुरोध किया। अनुरोध शब्द से वे आहत थे। मैंने उनको समझाया। बिहार में जो हो रहा है, उस स्थिति को देखते हुए पत्रकार मित्र ने सही शब्द का प्रयोग किया है।

अब देखिए। गांव देहात में जब कोई सनक जाता है तो उसके लिए, एक ढकनी निकलल है हो, कहा जाता है।अब चूंकी बाबा भी एक ढकनी निकलल है, तो उनके लिए सर्वोच्च बेचारे क्या निर्देश देंगें। जिसको मुंह उपर करके थूकने की आदत हो उसके दूर से ही निकल जाना श्रेस्कर होता है।

अब सोंचिए, बाबा बिहार में सर्वोच्च है की नहीं। पिछला राज दरबार बाबा के नाम कुर्बान रहा। हंंगामा हुआ। जुत्तम, जुत्ती हुआ।

हमारे राजा ने भरी सभा में कहा, "मैं हूं न।"

बाबा बोले, "नहीं। मैं हूं।"

अच्छा, यह बात बिल्कुल झूठ है कि बाबा का हृदय टाटा स्टील से बना है।
कहिए कैसे।
अभी गुरुजी ने समय परिवर्तन की मांग की। सत्ता पक्ष के नेता भी चोंगाधारी को बुला कर खूब गरजे।
यह सब नहीं चलेगा।
बाबा ने सहृदयता दिखाई। समय परिवर्तन किया। पन्द्रह मिनट पहले कर दिया।

बाबा से पूछ ही लिया।

"बाबा, आप एतना बनडमरु काहे है।"

बाबा ने समझाया।

"मैंने बहुत पहले ही सीख लिया है। काम करने वाले मजदूर को शू शू करने का भी मौका नहीं दो। खैनी कैसे खा लेगा। एक दम पाई-पाई बसूल करना है। इ मास्टर सब से भी वही कर रहे। पैसा देते हैं, तो बसूल करेगें ही। पाई-पाई।और यह सब मास्टर के हित में ही है। चार बजे सुबह उठने की आदत इसी बहाने लग जाएगी। सुबह में मार्निंग वाक भी निशुल्क। खाना-बाना क्यों खाना है। एक माह दिन में खाना नहीं खाएगें तो सभी का रोजा हो जाएगा। सेहत सुधर जाएगा। मास्टरों के सेहत का ख्याल करके ही यह सब किया गया। सबको डायबटिज है। सब ठीक होगा। "

पूछा,
"बाबा, पता हैं न जिस संस्था को आपने जांच करने का जिम्मा दिया है। वह संस्था बेरोजगार युवक को बहाल करने में तीन-तीन लाख बसूल रहा। अब वह बेचारा मास्टर सब से बसूल कर रहा। और बेंच से लेकर पोशाक तक, सब उपर से ही दिया जाएगा।"

बाबा बोले,
"इसमें कौन सी नई बात है। नहीं सुना है। उपर उपर पी जाते है, जो पीने वाले होते है। जय बिहार.."