16 नवंबर 2025

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष: क्या हर आदमी बेईमान है...?

 राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर विशेष: क्या हर आदमी बेईमान है...?

जैसे यह मान लिया गया है कि हर अधिकारी, कर्मचारी, बेईमान है। हर आदमी बेईमान है। वैसे ही यह मान लिया गया है कि हर पत्रकार बेईमान है। 



सबसे पहले, यह सच नहीं है। सच यह है कि हम सब समाज का आईना है। तो जैसा समाज, वैसा हम..!

अब आते है। बड़ी बड़ी बातों के कुछ नहीं होता। हम सब एक दूसरे को चोर, बेईमान, भ्रष्ट बताने में लगे है। और हम सब चाहते है कि दूसरा आदमी ईमानदार हो..!

arun sathi

यह ठीक वैसा ही है, जैसा कि हर कोई चाहता है, दूसरे का बेटा भगत सिंह बने..!

यह ठीक उस कहानी की तरह है, जिसने राजा के कहने पर तालाब में एक एक लोटा दूध देने कोई यह सोच कर नहीं गया कि मेरे एक लोटा देने से क्या होगा। दूसरा तो देगा ही। और तालाब में किसी ने एक लोटा दूध नहीं दिया। 

और यह ठीक वैसा ही है जैसा आचार्य ओशो कहते है कि धार्मिक आयोजनों में प्रवचन कर्ता कभी यह नहीं कहते कि मैं संत हूं..! वे केवल यह कहते है कि तुम चोर हो। तुम बेईमान हो। तब हम स्वयं मान लेते है वे संत है।

यह बहुत साधारण सी बात। गांधी जी ने कहा है, जो बदलाव आप दूसरे में देखना चाहते है उसको शुरुआत स्वयं से करें....


पर हो क्या रहा है, हम बदलाव तो देखना चाहते है, पर दूसरे में। अपने लिए कोई मानक नहीं है। 

पंडित श्री राम शर्मा आचार्य ने कहा है, हम बदलेंगे, युग बदलेगा..! पर हम आज युग तो बदलना चाहते हैं पर हम नहीं बदल रहे।

पर क्या समाज इतना पतित है! हर कोई इतना पतित है! क्या यही सच है? क्योंकि आखिर में हमारा वास्तविक मूल्यांकन समाज ही करता है। समाज ही अंकेक्षक है। पर समाज...! यह तो विरोधाभाषी शब्द संरचना मात्र है। 

कई मामले में वास्तविक नायक को नायक मानता है...?

क्यों यह खलनायक को नायक मानने लगता है..?

क्योंकि समाज वाह्य चमक से प्रभावित होता है। और समाज चूंकि हमसे है तो समाज में भी दो धाराएं हमेशा रही है। सत्य और असत्य।

असत्य की धारा, असत्य के साथ। सत्य की धारा, सत्य के साथ बहती है। तब, यह कैसे तय हो की कौन सी धारा सत्य है, कौन सी असत्य..?

और सबसे बड़ी चुनौती, असत्य के धारा चीख चीख कर कहती है, मैं ही सत्य हूं...!

और सत्य की ताकत मौन प्रसार है। सत्य चीखता नहीं है। यह केवल आत्म स्वीकृति है। सत्य जिसके पास है वह, और सत्य से जो प्रभावित हुआ, वह। दोनों मौन है। 

तय हमे करना है। हमको इतना साहसी होना पड़ेगा..! यह बहुत छोटा प्रयास है। पहला प्रयास यह करें कि अच्छाई को प्रचारित करें। उसे फैलाएं..। वायरल करें। कहें कि वह, ईमानदार है। वह सत्य है। यह कैसे होगा। 

यह मानवीय बुद्धिमत्ता से संभव है। जब हम इससे प्रभावित हों तो यह संभव है। 

आज के समय में दुष्प्रचार भी यही हैं । हम आंख मूंद कर गंदगी को फैला देते है। वह चाहे फेक न्यूज हो अथवा फेक धारणा (मेरेटिव) । 

हमें चेक करना चाहिए। संतुष्ट होना चाहिए। और आज के समय में जब हमने हाथ में पूरी दुनिया है। हम आसानी से इसे चेक कर सकते है। थर्मामीटर लगा सकते है। 

और जब आप पाते है कि यह असत्य है। तो आप की जिम्मेवारी बड़ी हो जाती है। बड़ी इस लिए की अब आप उसका विरोध कर सकते है। पर यह सभी से संभव नहीं है। तब हम इतना जरूर करें कि असत्य के साथ खड़े नहीं हों...! 

यह तो सभी से संभव है। पर हम यह नहीं करते है। हम भीड़ का हिस्सा बन जाते है। और ओशो कहते है, भीड़ के पास अपना दिमाग नहीं होता। वह जुंबी है...! बस इतना ही। बाकी सब ठीक है।

05 नवंबर 2025

तो क्या देश के विरुद्ध साजिश कर रहे राहुल गांधी..?

तो क्या देश के विरुद्ध साजिश कर रहे राहुल गांधी

सेना में 10 प्रतिशत सवर्णों का दबदबा है। सारा धन उनको जाता है। सेना में उनका कंट्रोल है। नौकरशाही, न्यायपालिका सब जगह कब्जा है। राहुल गांधी का यह बौखलाहट में दिया गया बयान नहीं है। यह पढ़ाया हुआ, प्रायोजित बयान है। कहीं से डील जैसा लगता है। 

कांग्रेस देश को तोड़ने में लगी है। पहले बीजेपी यह आरोप लगाती है। अब इसको आम आदमी भी सही समझने लगा है। राहुल गांधी अक्सर यही करते है। 

मतदाता सूची पुनरीक्षण से लेकर, वोट चोरी, ईवीएम घोटाला, नागरिकता कानून, राम मंदिर, कश्मीर में 370,  किसान बिल, चीन से झड़प, पाक आतंकी अड्डे पर भारत का स्ट्राइक ऑपरेशन सिंदूर  सरीखे कई मुद्दे पर राहुल  अक्सर ऐसे बयान देते है जिससे आग भड़के। 

इतना ही नहीं राहुल ने नेपाल में जेन जी के आंदोलन के बाद। भारत के जेन जी को भी भड़काया। साफ तौर पर गृह युद्ध के लिए उकसाया। वह तो भला है देश का, सब समझता है। 

तब भी, राहुल गांधी का सेना का बयान ज्यादा खतरनाक है। यह तब है जब 60 साल तक कांग्रेस का शासन रहा। जो देना था दे देते। कौन रोके था। अब जब सत्ता नहीं है, तो भड़काऊ बयान देते रहना है। पर इसी का जबाव जनता देती है। बिहार चुनाव में भी  जनता जबाव देगी। देश प्रथम। 

31 अक्टूबर 2025

दुलारचंद यादव हत्याकांड और मोकामा में बाहुबलियों का वर्चस्व

दुलारचंद यादव हत्याकांड और मोकामा में बाहुबलियों का वर्चस्व 

चुनाव प्रचार के दौरान दुलारचंद यादव की हत्या से एक बारगी बिहार में सुकून की सांस ले रहे लोगों को डरा दिया। इस हत्याकांड में जदयू प्रत्याशी और बाहुबली अनंत सिंह सहित उनके समर्थक नामजद किए गए। यहां से बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी भी राजद से उम्मीदवार है।
टाल के बाहुबली राजद के नेता दुलारचंद यादव की दिन दहाड़े हत्या हो गई। 
वे कल तक राजद सरकार बनाने का संकल्प दुहरा रहे थे। अचानक जन सुराज के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के साथ आ गए। पीयूष बांका निवासी है। दिल्ली से पढ़ लिख कर राजनीति में बदलवा की मंशा से सक्रिय हुए। और इसके लिए राजनीति के वही सबसे घिनौने विकल्प में से एक , जातिवाद को ही चुना। उन्होंने मोकामा को इसीलिए चुना, क्योंकि यहां उनके स्वजातीय (धानुक) की बहुलता है। 

उधर, दुलारचंद यादव का दबदबा टाल में हमेशा रहा है। क्षेत्र में उनका नाम ही काफी था। वहीं यह हत्याकांड अब राजनीति रंग लेगा। इस बीच कई वीडियो सामने आए। पहला, घटना से तुरंत बाद पीयूष प्रियदर्शी लाइव आकर अनंत सिंह समर्थकों पर काफिले में तोड़फोड़ का आरोप लगाया। वहीं अनंत सिंह समर्थकों का भी वीडियो आया जिसमें पीयूष प्रियदर्शी के समर्थकों पर हमला का आरोप लगाया गया। 

अब इसमें कई कोन है। इसमें पुलिस का पहला बयान स्पष्ट है। कैसे, क्या हुआ। बताया है। वहीं मोकामा निवासी पूर्व डीजीपी के पुत्र अमृताश आनंद ने कई सवाल उठाए है। इशारा इसके राजनीतिक लाभ लेने का है। कहा है कि सोच कर देखिए, इससे किसे लाभ होगा..!

अब यह हत्याकांड बिहार चुनाव का मुद्दा बनेगा। और जनता इसमें उलझ कर जातीय सौहार्द को तोड़ेगी। 

पर इसमें सोचने वाली कुछ बातें है। पहला तो यह, कि कैसे जनसुराज का एक प्रत्याशी टाल के कुख्यात का साथ लेकर राजनीति में बदलाव के शंखनाद को झुठला दिया। दूसरा, यह कि वही अनंत सिंह कि पत्नी अभी राजद से विधायक है। उसी को जिताने के लिए दुलारचंद यादव ने पांच साल पहले परिश्रम किया। और तीसरा, वही सूरजभान सिंह है जो कल तक नीतीश कुमार और बीजेपी के समर्थक थे। गुणगान करते थे। लालू यादव के प्रबल विरोधी। आज हृदय परिवर्तन हो गया। 

मतलब यह कि नेताओं का स्वार्थ जहां साधेगा, उनका हृदय परिवर्तित हो ही जाएगा। और जनता, बेचारी। जातीय भावना में ऐसे बहती है, जैसे बाढ़ के पानी में दरख़्त। 

अब बिहार बदला है। परिस्थितियां भी बदली है। अब मोबाइल से साक्ष्य जुटाना आसान हुआ हैं । 

अब, बगैर राजनैतिक हस्तक्षेप के बिहार पुलिस को इसमें गंभीरता से अनुसंधान करके,  अपराधी को दबोचना चाहिए। त्वरित न्याय मिले, इसके लिए स्पीडी ट्रायल हो।  और यदि यह सब नहीं होता दिखता है तो फिर जंगलराज और सुशासन में फर्क करना संभव नहीं होगा..

25 अक्टूबर 2025

महिलाओं पर नीतीश कुमार को और नीतीश कुमार पर बिहार को भरोसा

महिलाओं पर नीतीश कुमार को और नीतीश कुमार पर बिहार को भरोसा

बिहार में सभी जगह नीतीश कुमार चुनाव लड़ रहे है। सभी विपक्षी नीतीश कुमार को हराने में लगे है। ऐसे एहसास सोशल मीडिया से अलग होकर बिहार को देखने वाले देख रहे है। कल बरबीघा के श्री कृष्ण रामरुचि कॉलेज के मैदान में जब अपने भविष्य के लिए दौड़ लगा रहे जेन जी से मिला तो और समझने का मौका मिला। 
मुंडे मुंडे मतिरभिन्ने। यही सिद्धांत है। और होना ही चाहिए। इसी मैदान में जब पहली बार वोट करने वाली  बेटियों में नीतीश कुमार के योगदान को गिनाया तो आश्चर्यचकित होना पड़ गया। एक, दो बेटियों ने दूसरे को मौका देने की बात रही पर उसने भी मिले सहयोग और संबल को याद किया।

यहां यह भी समझने का मौका मिला कि तेजस्वी के सभी परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने के वादे पर स्वयं उनके समर्थक को ही भरोसा नहीं है। कहा, यह चुनावी वादे है..!

उधर, जो प्रमुख चीज बिहार चुनाव में दिख रहा है वह देश की राजनीति में बड़े बदलाव के सशक्त संकेत है। इसका श्रेय भी नीतीश कुमार  को है। आज बिहार में नीतीश कुमार ने पुनः महिलाओं पर भरोसा किया है। यह भरोसा आजमाया हुआ है। यह टूटता नहीं है। यह उस समाज के लिए शुभ संकेत है जिसे लगता है कि भरोसा नहीं टूटना चाहिए। ऐसे में पितृसत्तात्मक समाज को चिंतन करना चाहिए। जिस तरह अपने लाभ के लिए वे समाज हित को ताखे पर रख राजनीति को छल, प्रपंच का पर्याय बना दिया उसे पुनः सुचिता के रूप में पुनर्स्थापित करना असंभव है। और इसका नुकसान पुरुष समाज को हो रहा। होना भी चाहिए। बिहार इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। 


अब, आधी आबादी की बात । पितृसत्ता द्वारा आज भी तिरस्कृत आधी आबादी मुखर हो रही। जनतंत्र में भरोसे का प्रतीक बनी है। 

 हालांकि सोशल मीडिया पर उनकी राजनीतिक उपस्थिति नगण्य है। राजनीतिक हिस्सेदारी भी किसी ने उतना नहीं दिया। तब, बिहार की राजनीति में सत्ता का निर्णय महिलाओं के लिए लिये जा रहे। कल नीतीश कुमार इसके लिए  युगपुरुष कहे जाएंगे, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।

बिहार में शराब बंदी आधी आबादी की मांग थी। उसे पूरा किया गया। महिलाएं आज भी शराब बंदी के साथ है। 

नीतीश सरकार ने पंचायत आरक्षण, सरकारी नौकरी में आरक्षण, बेटियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहन जैसे कई युगांतरकारी योजनाओं से बदलाव की नींव रखी। यह आज मजबूत महल के रूप में मुखर है। 

तब बिहार में विपक्ष आपसी नूराकुश्ती में सक्रिय है। और उधर नीतीश कुमार को सीएम बनाया जाएगा या नहीं, यह सवाल सभी में मन में तैर रहा है। बीजेपी किंतु, परंतु में जवाब दे रही। हालांकि बहुत कम सीट रहने पर बनाया तो था। यह भी अमित शाह ने कह दिया। अब कुछ दिन ही शेष है। 


परिणाम जनता तय करेगी पर नया बिहार सबकुछ बोल रहा है, गांव में एक मजदूर का यह तंज कि, "एतना सब कैला के बादो पुच्छो हो जी कि के जिततई.... तब तो खोबारी हो...!!!"

समझिए...बस इतना ही। बाकी सब ठीक है...

अंजीर के पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.....!!!

अंजीर के पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.....!!!


यह मैं नहीं कर रहा, नीचे जो तस्वीर में सूचना है, उसमें यही लिखा हुआ है। यह सूचना पटना के अति भव्य मेदांता अस्पताल में लगाया गया है । इसमें कई तरह की बातें लिखी गई है । यह भी लिखा गया है कि कल्पवृक्ष स्वास्थ प्रद होता है। और यह भी लिखा गया है कि रिसर्च में यह बात सामने आ गई है कि दवा से अधिक काम दुआ करता है...

पूंजीवाद के इस जकड़न में आम आदमी को अब मरना होगा। 

अब बड़े-बड़े अस्पतालों में लाखों रुपए खर्च होते हैं। 
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य का खर्च लाखों गुना बढ़ गया है। सरकारी अस्पतालों में भीड़ इतनी है कि आम आदमी भी इमरजेंसी में वहां तड़प तड़प कर मर जाएगा । और भव्य अस्पतालों में रुपए इतने खर्च होते हैं कि आम आदमी, यहां भी तड़प तड़प कर मर जाएगा...!

अब, इतने बड़े  अस्पताल में इसके संचालकों, बड़े-बड़े डिग्री धारकों को इतना भी ज्ञान नहीं है कि भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति पीपल के पेड़ के नीचे हुआ था....! बाकी सब ठीक है....

19 अक्टूबर 2025

बिहार: बाहुबल, जातिवाद, परिवारवाद, धनकुबेर सब कुछ सामान्य है...

बिहार: बाहुबल, जातिवाद, परिवारवाद, धनकुबेर सब कुछ सामान्य है...
आसन्न बिहार विधान सभा चुनाव गठबंधन की राजनीति में अपने सबसे निम्नतम स्तर पर है। दोनों गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर जो नौटंकी हुई, उसे पूरे देश ने देखा। बिहार के इस चुनाव में दोनों गठबंधनों में बाहुबली , परिवारवाद, जातिवाद और धनकुबेरों का बोलबाला हुआ। इस सब में, सबसे भारी जातिवाद का उभार अपने चरम पर दिखा। हम सोशल मीडिया पर भले जातिवाद से ऊपर विकास, रोजगार आदि को रखते है, पर वास्तविकता से इसका कोई सरोकार नहीं। सबसे पहले बाहुबल का। तो इससे किसी गठबंधन ने परहेज नहीं किया। जदयू ने अनंत सिंह, हुलास पाण्डेय को प्रश्रय दिया, तो बीजेपी ने अखिलेश सिंह की पत्नी अरुणा देवी को पुनः उतार,  छद्मवाद का सहारा लिया। राजद के तेजस्वी  अशोक महतो के साथ तस्वीर साझा कर उनकी पत्नी अनीता देवी को टिकट देकर बाहुबल पर भरोसा किया और यहां कांग्रेस के प्रत्याशी के विरुद्ध भी जाकर खड़े हुए। मुन्ना शुक्ला, राजबल्लभ यादव सहित, इसकी सूची लंबी है। 

इस बार परिवारवाद भी चरम पर रहा। परिवार की पार्टी होने का सबसे प्रबल आरोप लालू यादव पर लगता है। पर इस बार परिवार बाद की सबसे निम्न तस्वीरें देखने को मिली। जीतन राम मांझी ने अपनी बहु, समधन को, तो उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी को टिकट देते हुए तस्वीरें साझा करके परिवार को राजनीति का सबसे कड़वा सच बता कर इसे स्वीकार करने का संदेश दे दिया। 

इसी श्रेणी में प्रशांत किशोर भी रहे। उनके टिकट का वितरण करते हुए आर सी पी सिंह ने अपनी बेटी को टिकट दिया।  राजद में तो पिता, माता, पुत्र, पुत्री ही पार्टी है। इसके कई उदाहरण है। चिराग पासवान इसके सर्वश्रेष्ठ उदाहरण, सार्वकालिक है। 

अब जातिवाद।  इसके लिए बिहार बदनाम है। यह सही भी है।  अभी चौपाल और चौराहे जातिवादी विमर्श में है। विकास, नौकरी, रोजगार की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनती जा रही।  कम ज्यादा, इसमें सभी शामिल है। राष्ट्रीय पार्टी अप्रत्यक्ष तो क्षेत्रीय पार्टी प्रत्यक्ष रूप से जातिवाद का शंखनाद करती है। चिराग पासवान, मुकेश साहनी, जीतन राम, उपेंद्र कुशवाहा इसी की बानगी बने। चिराग और मुकेश ने को मोलभाव किया, वह चरम थी।  जातिवादी का खेल ऐसा की जो नेता अपनी जाति के लिए भी कुछ नहीं किया। पांच साल मस्ती की।  उसके प्रति भी जातिवादी लोग सहानुभूति रखने लगते हैं। 


यह जातिवाद का ही खेल है कि समाज के हित को किनारे कर, नेता अपना हित साधने के लिए जातिवाद का सहारा लेते हैं और आम जान उसमें फंस जाते है। 

इसका सबसे बढ़िया उदाहरण यही है कि गरीबों के आधार पर मिले आरक्षण का विरोध केवल और केवल राष्ट्रीय जनता दल ने सदन में किया। आज कुछ लोग अपना टिकट पा कर समाज के बड़े हित को किनारे रखने के लिए तैयार हो गए। 

अब इस सबके लिए, हम नेताओं को दोष देकर अपनी पीठ थपथपा लेंगे। पर यह झूठ है। सच यह है कि हम सब इस गुनाह में शामिल है। दरअसल, नेता, बाहुबली या कोई अपराधी अपने दोष को ढकने के जब जातिवादी छतरी लगता है तो हम सब इसके ओट से मोहित हो जाते है। जबकि, वे सब अपने हितार्थ यह सब करता है। सच यह भी है हर बाहुबली, अपने हित साधने में अपने स्वजातीय का लहू बहाया है। स्त्रियों को आबरू लूटी है। और, वह जाति के नाम पर नायक बन जाता है। खासकर, नई पीढ़ी, सोशल मीडिया संजाल में उलझ ऐसे जयकार करते है, जैसे वही ईश्वर हो। और इसका फायद बाहुबली उठाता है। धनबल की बात करें तो सभी पार्टियों में धन बल कैसे प्राथमिकता में रही, यह किसी से छुपा मुद्दा नहीं है।  बस, बाकी सब ठीक है।