02 सितंबर 2016

अब किसी केजरीवाल पे देश जाने कब और क्यों विश्वास करेगा..

अब किसी केजरीवाल पे देश जाने कब और क्यों विश्वास करेगा..

#अरुण #साथी

झुकी हुई आँखें, चेहरे पर शर्मिंदगी लिए आप पार्टी के प्रवक्ता दिलीप पांडेय एनडीटीवी के पत्रकार अभिज्ञान के सवालों को सुनकर तिलमिला गए। अभिज्ञान आक्रामक थे। आप पार्टी बचाव में है। बचाव का वही घटिया तरीका, विरोधी पे आरोप; काँग्रेस, बीजेपी के नेताओं ने भी सेक्स स्कैंडल किये...!

सबकुछ वही पुरानी और बकौल अरबिन्द केजरीवाल पापी पार्टियों की दलीलों जैसा। केजरीवाल जाने कितनी बार विपक्ष पे प्रेस के सवालों का जबाब नहीं देने का आरोप लगाएं, आज खुद वही किया। प्रेस से सामना के बजाय एक वीडियो जारी कर सफाई दी। सफाई भी ढिठाई जैसा। और हद तो यह कि केजरीवाल सफाई कम और विरोधियों पे आरोप अधिक लगाये।

यह सबकुछ उनके लिए ज्यादा तकलीफदेह है जिन्होंने (मैंने भी) भारत के परंपरागत राजनीति में एक बदलाव की उम्मीद देखी थी, एक चिंगारी देखी थी और वह चिंगरी राख की ढेर ही निकली!

बदला कुछ भी नहीं। हाँ राजनीति का वही घिनौना चेहरा सामने आया जिन्हें देखने की आदि भारतीय हो चुकें है। बल्कि स्थापित चेहरों से इतर केजरीवाल ने मासूम फरेब से जनता को छल लिया।

यह सबकुछ सहज नहीं है। तर्क से हर तर्क के काट दिया जा सकता है। केजरीवाल और उनके समर्थक यही कर रहे है। पर इन सब चीजों ने देश को बड़ा नुकसान किया है।

कई वैचारिक बहस के दौरान जब मंजे हुए सामाजिक और राजनीतिज्ञ लोग यह तर्क रखते थे कि देश के लोग मुर्दा है। उनकी प्रतिरोधक क्षमता मर गयी है। अन्ना आंदोलन से लगी आग के एक चिंगारी के रूप में केजरीवाल निकले तो यह मिथ टूटा। अब बहस में देश के जागरूक, आंदोलनकारी होने का तर्क जुड़ गया। यथास्थितिवाद को बदलने के लिए युवा आगे आये, युवा के माथे के कलंक मिटा कि वे भौतिकवादी युग में टीवी, मोबाइल, सिनेमा, इश्कबाजी और लफुआगिरी में मस्त रहते है। युवाओं ने हाथों में तिरंगा थाम भारत माँ का जयकार किया! वंदे मातरम के नारे लगाते हुए जाति धर्म के बंधन तोड़े।

यह सबकुछ सहज नहीं है। केजरीवाल की असफलता ने दशकों तक संभावित आंदोलनों की भ्रूण हत्या कर दी है। नेता कहते है जनता मरी हुई है और जनता कहती है नेता...यह खेल चलता रहेगा...तब तक , जबतक कोई अन्ना फिर से उम्मीद लेकर न आ जाये..

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-09-2016) को "आदमी बना रहा है मिसाइल" (चर्चा अंक-2455) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. केजरीवाल ने पहले अन्ना के साथ धोखा कियातो फिर जनता के साथ , खुद को व अपनी पार्टी को सदाचारी कहने वाले केजरी व मनीष सिसोदिया एक बार भी जनता के सामने आ कर अपनी बात कहने का साहस नहीं कर सके अब कोई कैसे उन पर विश्वास करेगा , अब केजरी कह रहे हैं कि किसी के सर पर लिखा नहीं होता तो फिर वे दूसरी पार्टियों से यह अपेक्षा क्यों करते हैं , अभी तो उन्होंने मोदी पर आरोप नहीं लगाया कि उन्होंने उनके मंत्री का स्टिंग आपरेशन करवाया है , वे उनको सदाचारी का प्रमाणपत्र देने में चूक गए , अंगुली उन पर इसलिए भी उठती है कि 15 दिन तक वे उस वीडियो को ड्राइंग रूम में बैठे देखते रहे उस पर विवेचना करते रहे कि इसमें मोदी आर एस एस का कोई नाम कैसे लगाया जाये , कैसे संदीप को बचाया जाये , लेकिन वीडियो भेंटकर्ता ने जब प्रेस में यह सब दे दिया व चैनल पर आ गया तब अपने को सदाचारी कहते हुए उन्हें बर्खास्त किया
    लगता है केजरी संदीप को बचने की ही जुगत में थे , उनकी यही हरकते अब भविष्य में किसी भी नेता पर जनता को विश्वास न करने के लिए प्रेरित करेंगी

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    1. जी बस इसी बात से सच सामने आ गया..बचाव क्यूँ..

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  3. राष्ट्रीय चरित्र भी कोई चीज है । सब का एक ही तो होना चाहिये ।

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  4. विश्वास तो जनता को अंतत: अपनी ताकत पर करना होगा. ये सारे नेताओं और पार्टियों के नाम अंत में एक ही लक्ष्य तक पहुंचते हैं. Power corrupts, absolute power corrupts absolutely!!

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