सोशल मीडिया छोड़ो, सुख से जियो, एक अनुभव
अरुण साथी
पिछले कुछ महीनों से फेसबुक एडिक्शन (सोशल मीडिया एडिक्शन) से उबरने के लिए संघर्ष करना पड़ा पर बहुत हद तक सफलता पाई है। उपाय के तौर पे सबसे पहला काम मोबाइल एप्प को डिलीट किया। ब्राउज़र से कभी कभी उपयोग करता हूँ। गंभीर मामला है, समझें..
6 से 8 घंटे सोशल मीडिया पे.
Quality time, off time माध्यम से जब सोशल मीडिया पे खर्च किये जा रहे समय पे नजर रखी तो पता लगा कि प्रति दिन 6 से 8 घंटे सोशल मीडिया पे खर्च हो रहे है। यह जीवन महत्वपूर्ण और कीमती घंटे थे।
क्या क्या छीना
सोशल मीडिया ने साहित्य, कहानी, कविता पढ़ना-लिखना छीन लिया। ऊपरी तौर पर दो चार लाइनों को पढ़कर काम चलाना सिखा दिया। योग, ध्यान, एकाग्रता छीन ली। जरूरी काम का समय छीन लिया। सोशल समारोहों में धुलना-मिलना छीन लिया। आईये अपने अनुभव से जाने। सुबह उठकर क्या पोस्ट करें यही विचार आता था। कैसे लाइक्स और कमेंट मिले इसका जुगाड़ हमेशा मन मे घूमता रहे।
सकारात्मक सोशल मीडिया
सोशल मीडिया को हम दो भागों में बांट सकते है। सकारात्मक। नकारात्मक। सकारात्मकता की बात करें तो सोशल मीडिया ने एक ग्रामीण व्यक्ति को बड़ी पहचान दी। इसकी शुरुआत अपनी कहानी "एक छोटी सी लव स्टोरी" से हुई। पुराने दोस्त जानते है। इस कहानी में मैंने अपने जीवन का पन्ना पन्ना खोल दिया। अपनी गरीबी, प्रेम कहानी, पिता की स्तित्व..सब कुछ..!
धीरे धीरे बहुत से मित्र और अभिभावक मिले।
सीना उस दिन चौड़ा हो गया जब बरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार अरुण अशेष जी ने कॉल कर कहानी को रेणु जी के बाद उसी स्वाद में लिखी गयी रचना बताया। देश-विदेश में कई मित्र (अजीज) बने। सकारात्मक सोंच बना। नई पहचान बनी। नई ऊर्जा मिली।
नकारात्मक सोशल मीडिया
2014 के आसपास सोशल मीडिया का ट्रेंड बदला। धर्म के नाम पे आक्रामकता बढ़ी। जाति और समाज के रूप में सोशल मीडिया बंटा। मैं भी इसमें फंस गया। केजरीवाल और अन्ना आंदोलन में। केजरीवाल ने सोशल मीडिया के सहारे राजनीति की और सफलता स्वरुप दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। बंटते-बंटते देश स्तर पे सेकुलर और कॉम्युनल, हिन्दू, मुसलमान में बंट गया। कॉम्युनल हावी हुए। सेकुलर शब्द गाली हो गया। इतिहास बदले जाने लगे। अफवाह फैलाई जाने लगी। और फिर यही बदलाव स्थानीय स्तर पे पहुंच गई। #WhatsApp कूड़ेदान बना। इतिहास और धर्म को प्रोपगंडा बनाकर परोसा जाने लगा।
सोशल मीडिया पे गुंडे
पहले गांव-घर मे गुंडे होते थे। वही गुंडे अब सोशल मीडिया पे है। शराब कारोबारी, ठग, राहजनी करने वाले, बैंक लूटने वाले, बलात्कारी, अपहरणकर्ता, हत्यारे, सब है। इसके फ्लॉवर भी है। जैसा कि समाज में रहा है। नकारात्मक के समर्थक ज्यादा रहे है। यहां भी है। गांव में एक कहावत है। "तों छिनार तब तों तीन छिनार!" अर्थात यदि किसी गलत को गलत कहे तो वह आपको बड़ा गलत साबित करने के झूठे तर्क देगा।
जैसे कि एक ग्रुप से नकारात्मक लोगों को निकालना मुझे भारी पड़ा। वे इसे पर्सनल ईगो बना कर मेरे विरोधी बन बैठे। घरेलू विवाद पे एक गोतिया प्रोपगंडा करने लगा। फेसबुक पे बदनाम कर दबाब बनाने लगा। फेसबुक पे दुष्प्रचार। शराब बेचने, ठगी करने अथवा छात्राओं से छेड़छाड़ करने वाले कि खबर छापना मुसीबत मोल लेना हुआ। वे अब सोशल मीडिया पे गाली गलौज करने लगे। इसको सह राजनीतिक गुंडे भी देने लगे। उनके इशारों पे नहीं नाचना भारी पड़ा।
खैर, इन सबसे नकारात्मकता बढ़ी। तनाव बढ़ा। डिप्रेसन हुआ।
मिली धमकी
पिछले दिनों शराब के साथ गिरफ्तार एक युवक और गुंडा गिरोह के राहजनी, कोचिंग, स्कूल जाती लड़कियों से छेड़छाड़ की खबर बनाना भारी पड़ा। वे युवक गाली गलौज करने लगे। पहले इग्नोर किया। फिर प्रथमिकी दर्ज करा दी। उसीने कॉल कर के धमकी दी। खुद को आतंकवादी बताया। वह खुलेआम सुपारी लेने की बात फेसबुक पे लिखता है।
फिर जग्गा
जासूस ने एक पेज बनाया। शायद कोई दुश्मन दोस्त है। पनशाला खोलने को लेकर नकारात्मक बातें की। उसे समर्थन मिला। पत्रकारिता की आलोचना की। बाजिव लगा। पर नासमझी भी। उसे नहीं पता ही मैं एक रिपोर्टर हूँ। मेरा भेजा हर समाचार प्रकाशित नहीं होता। फिर उसने चरित्र हनन शरू की। कई लोगों का। उसके फ्लॉवर बढ़े। फ्लॉवर अपने मित्र मंडली से भी। समाज के बौद्धिक लोग भी। फिर देखा देखा पेज बना कर चरित्र हनन शुरू हुआ। राजनीतिक प्रतिद्वंदी एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में सोशल मीडिया को गंदा किया। यह सब स्थानीय स्तर पे हुआ।
सोशल मीडिया को मैनेज किया
फिर उपरोक्त समस्या से छुटकारे का उपाय खोजा। मिल भी गया। फेसबुक व्हाट्सएप का उपयोग बहुत कम किया। या एक निश्चित समय में कर दिया। राजनीतिक पोस्ट बंद किया। धार्मिक पोस्ट से जितना बच सकूं, बच रहा हूँ। परिणाम सकारात्मक आये। रिलैक्स हूँ। आप सब भी मैनेज कीजिये। सोशल मीडिया के उपयोग के घंटे तय कीजिए। 24 घंटे कितना खर्च करना है। दो से तीन बहुत है। उसका समय निर्धारित कीजिये।
मोबाइल एप्प सबसे बड़ा ग्रह
मोबाइल एप्प से बचिए। स्मार्ट मोबाइल को कम से कम अपने पास रखिए। कंप्यूटर है तो उसपे उपयोग करिये। नहीं तो मोबाइल ब्राउजर में। एप्प से नहीं। कठिनाई हो। तभी कम होगा। यूट्यूब से बचिए। एडिक्शन से छुटकारा लीजिये। यह जहर है। समाज को अनसोशल बना रहा है।
कुछ जरूरी पॉइंट्स
1- समय निर्धारित कीजिये।
2- शरीरिक रूप से मित्रों से मिलिए।
3- नकारात्मक बातों से बचिए।
4- नोटिफिकेशन बंद रखे।
5- off time , quality time एप्प का उपयोग कीजिये। यह आपको मोबाइल यूज़ करने से रोक देगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें