जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
संत तुलसीदास जी ने कभी यह कल्पना नहीं की होगी कि कलिकाल में उनकी इस चौपाई को यथार्थ रूप में देखा जा सकेगा परंतु इस कलिकाल में सोशल मीडिया नामक संयंत्र पर हो रहे षड्यंत्र के रूप में तुलसीदास जी के इस चौपाई को चरितार्थ होते हुए देखा जा रहा है।
पहले तो सीएए और एनआरसी पर इसे देखा गया फिर उससे भी पूर्व कश्मीर में धारा 370 और कश्मीरी पंडित बनाम आतंकवादी हिंसा में देखा गया। फिर मॉब लॉन्चिंग, असहिष्णुता आदि इत्यादि पे देखा गया। और अधिक पीछे जाने के वनस्पति वर्तमान में ही रहना चाहिए। सो देश की राजधानी इंद्रप्रस्थ में स्थित एक विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में इसे चरितार्थ होते हुए देखा जा रहा है।
अब कहते हैं कि कई दिनों से नक्सली गुंडों के द्वारा यूनिवर्सिटी में रजिस्ट्रेशन नहीं होने देने के लिए कमर कस ली गई थी। वाईफाई बंद कर दिया गया था और जबरदस्ती रजिस्ट्रेशन कराने वालों को जमकर धो दिया जा रहा था। नतीजा दो दिन पूर्व कुछ और निकला और फिर दनादन धोने का काम शुरू हो गया। नतीजा कुछ और निकला तो फिर नकाब लगाकर धोने वालों बौरो प्लेयर को बाहर से बुला लिया गया। अब उनके द्वारा धोने का काम जबरदस्त ढंग से कर दिया गया। दे दनादन दे दनादन।
नतीजा यह निकला की नकाबपोश होते हुए भी संघी गुंडे के रूप में चिन्हित कर दिए गए पर दूसरे पक्ष वाले भी कहां खामोश रहने वाले थे । उनके द्वारा नक्सली गुंडे का नक्सलवादी हमला कह दिया जा रहा।
कई फोटो और वीडियो वायरल है जिसमें एक नकाबपोश श्रीमती जी के जींस और शर्ट को चिन्हित कर तीर लगा लगा कर नक्सलवादी बताया जा रहा है।
पर अपने जीतो दा को गंभीरता पूर्वक सुनिए। वह कहते हैं कि बिहार के पटना यूनिवर्सिटी में गोली और बम भी चले तो चर्चा नहीं होती और जेएनयू में पाद भी निकले तो हंगामा खड़ा हो जाता है। यह किसी साजिश का हिस्सा नहीं तो और क्या है। जीतो दा कहते हैं कि देश को अस्थिर करने के लिए यह सब हो रहा है। मैंने पूछा देश को अस्थिर करने में कौन लोग शामिल है। तब जाकी रही भावना जैसी, वे दूसरी तरफ उंगली उठा देते हैं! चार उंगली उनकी तरफ चली गयी। कुल मिलाकर बात इतनी। दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुई। दोनों जलाने में मजे ले रहे हैं। यह एक ऐसा गेम है जिसमें दोनों की जीत हो रही है। मजे लीजिए। बाकी जो है सो सब ठीक है..
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