भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है परंतु पिछले दशकों में इसे परिभाषित करने की प्रक्रिया में तुष्टिकरण की राजनीति ने इसकी परिभाषा बदली और परिणामत: देश में धर्मनिरपेक्ष होना गाली जैसा बन गया। देश में दोनों तरफ से कट्टरपंथी ऐसे हावी हैं जैसे कबीलाई युग में मारकाट करने को हावी होते थे। बेंगलुरु की घटना निंदनीय और दुखद कह देने भर से खत्म नहीं होने वाली घटना नहीं है। इसमें सबसे निराशजनक पक्ष दलित विधायक के होते हुए तुष्टिकरण को लेकर छद्म धर्मनिरपेक्षवादी कांग्रेस सहित अन्य दलों के साथ साथ धर्मनिरपेक्ष की दुहाई देना वाला वर्ग खामोश है।
यह देश को अपमानित करने, तोड़ने और कानून व्यवस्था को चुनौती देने की घटना है। इस घटना में ईश्वर के नाम पर एक पोस्ट किए जाने और नियोजित तरीके से कांग्रेस के विधायक के घर पर हमला करना, कई लोगों की जानें ले लेना, लाखों करोड़ों की संपत्ति को आग के हवाले कर देना बगैर सुनियोजित ढंग से नहीं हो सकता। दिल्ली का दंगा इसी सुनियोजित राजनीति का हिस्सा था। युपी के कमलेश तिवारी के इसी तरह के पोस्ट पर देश में उपद्रव किया गया था। अंतत: उनकी हत्या ही कर दी गई। कुछ दशक पूर्व हम शार्ली हब्दो, मलाला आदि को लेकर आलोचना करते थे। आज हम उस स्थिति में नहीं है। सोशल मीडिया ब्रेन वास से हमारा समाज रोबोटिक हो गया है। एक इसारे पर मानवता का कत्ल आम है।
दरअसल कट्टरपंथी तबका सोशल मीडिया का गलत उपयोग करके देश को तहस-नहस करने में लगे हुए। एक पंथ के कट्टरपंथी को हवा देने में जहां उसी पंथ के बड़ा वर्ग लगा हुआ है वहीं दूसरे पक्ष के लोग भी उसी राह पर चलने का डंका बजाते हुए सीना ठोक रहे। राहत इंदौरी के निधन पर जश्न की बात हो अथवा अमित शाह के पॉजिटिव होने पर जश्न की बात। यह हमारी संकीर्णता और मानवीयता का परिचायक है। राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखे जाने पर जहां एक पक्ष ने जश्न के बहाने दूसरे पक्ष की खिल्ली उड़ाई तो दूसरे पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए घोषित रूप से वहां मस्जिद होने का ही एलान करते रहे। निश्चित रूप से मंदिर निर्माण देश की लोकतंत्रिक प्रक्रिया का हिस्स है। धर्मनिरपेक्ष हमे दूसरे धर्म से समानता की बात सिखाता है न कि अपने धर्म से दूरी की। वैसे में पीएम का जाना गलत नहीं है।
कुल मिलाकर देश की धर्मनिरपेक्ष छवि खतरे में है। या यूं कहें कि आज यह ध्वस्त हो चुकी है। गंगा जमुनी तहजीब की बातें अब बेमानी लगती है। चंद लोग इसे बरकरार रखने में लगे हुए हैं। एक बड़ा वर्ग इसे तहस-नहस करने में लगा हुआ है। भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। इस को लेकर भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा जब यह लिखते हैं कि क्यों है, तो इस सवाल का जवाब सीधा और सपाट आता है कि हमारे पड़ोस के सभी राष्ट्र इस्लामिक कंट्री हैं। बहुसंख्यक वर्ग भारत का धर्म निरपेक्ष विचार का है। वैसे में उसकी विचारधारा को आहत कर इस छवि को नष्ट करने का प्रयास दोनों तरफ से किया जा रहा है और बहुत हद तक इसमें सफलता भी मिल रही है। आगे आगे देखिए होता है क्या।
सत्ता के नशे में आंखें ब न्द ।
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