यात्रा
यात्रा वृतांत:-1
एक, दो मित्र भी नहीं जाने का बहाना बना दिया। इस बीच 19 नवंबर को यात्रा का शुभारंभ था। मित्रों की उदासी, यात्रा का अनुभव, थोड़ा तनाव से मुक्ति, इन सब कारकों को जोड़कर यात्रा का मन मचलने लगा। किसी तरह से बीच राह में किशनगंज में रात के 2:00 बजे तक मच्छरों के बीच रहकर रेलगाड़ी पकड़ी।
इस यात्रा का कमांडर भाई शांति भूषण मुकेश हमेशा की ही तरह थे। खजांची के रूप में रितेश भाई। हम लोग हमेशा की तरह एक जगह राशि जमा कर अमेरिकन सिस्टम से यात्रा पर निकलते हैं। कम खर्च, कम परेशानी। सुखद संजोग रहा की यात्रा दोपहर बाद कामाख्या तक पहुंच गई। वहां मंदिर के पास एक होटल में डेरा डाल दिया। होटल की व्यवस्था अच्छी नहीं निकली। हम लोग स्नान करके मंदिर में जाने का मन बना लिया।
सभी शाम मंदिर गए। भादो का महीना होने की वजह से बहुत कम भीड़ थी । अंदर पूजा का समय नहीं था। पूजा सुबह होनी थी। हम सब घूम घूम कर मंदिर का अवलोकन करने लगे। दिव्य और भव्य। अप्रतिम मंदिर। मंदिर परिसर केअंदर एक आध्यात्मिक अनुभूति मिली। संयोग से माता का प्रसाद का वितरण हो रहा था। हम सब ने उसे ग्रहण किया। माता के दरबार के पास ही बैठकर कुछ पल ध्यान भी लगाया।
इधर-उधर बिचड़ते और ध्यान लगाते कई तांत्रिक और साधु संत भी दिखाई दिए। इसी बीच कुछ चीज कौतुक का कारण बना । मंदिर में कबूतर और बकरे के बिचड़ने की प्रचुरता थी। रेलगाड़ी पर गया निवासी बड़े भाई अधिवक्ता मदन तिवारी मिले थे । उन्होंने मंदिर में बलि प्रथा को लेकर नकारात्मक बातें कही थी। मैं स्वयं माता के नाम पर जीव हत्या का आलोचक रहा हूं। कई मंदिरों में इसीलिए नहीं जाता ।
खैर, इस मंदिर में बकरे के बिचड़ने की जानकारी जुटा तो एक सकारात्मक बात सामने आई । आठवीं सदी के इस मंदिर में बलि की प्रधानता है। मंदिर के सामने, बाहर की ओर एक बड़ हॉल है। यहां बलि पड़ता है। यहां से गुजने पर वैसा ही गंध मिला जैसा की कसाई खाने से ।
स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां बलि की प्रधानता तो है पर यदि जीव हत्या नहीं करना चाहते हैं तो यहां विधिवत पूजा कर, जीव के गले में माला पहनकर उसे यहां छोड़ दीजिए। वह इधर-उधर खाना खाकर अपना जीवन गुजार लेगा। इसी बीच मंदिर की दीवारों पर कई पौराणिक कलाकृतियां दिखाई दी। मोबाइल में इस युग में चीजों को कैद करने की दीवानगी रहती ही है। तो हम सब ने भी यही किया। सब ने अपनी अपनी सेल्फी भी ली। ग्रुप फोटोग्राफी भी हुआ।
लौटने के बाद पेट पूजा की तैयारी में लग गए। मंदिर से निकलते ही दो साफ सुथरा शाकाहारी होटल दिखा। हम सब शाकाहारी थे। वहां 70 से लेकर 135 रुपए की थाली भोजन मिला रहा था। हम सब ने मन पसंद भोजन किया। फिर होटल में जाकर सो गए।
अगले दिन 4:00 बजे सुबह स्नान कर पूजा के लिए निकल गए। भीड़ अधिक नहीं थी। रजिस्ट्रेशन काउंटर पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया। एक पर्ची मिली। उसे लेकर लाइन में लग गए। हालांकि वीआईपी के लिए ₹500 देकर तत्काल पूजा की भी व्यवस्था थी परंतु हम लोग आम लोग थे, सो कतार में लग गए। इसी बीच लाइन वाले घेराबंदी में जगह-जगह कई कुत्ते प्रवेश कर गए। मंदिर परिसर में भी कुत्तों को विचारता देखा ही था।
पूजा करने आए स्थानीय लोग भी थे । किसी ने कुत्तों को नहीं दुत्तकारा । मेरे लिए अजीब सा था। आमतौर पर कुत्ता को हम अछूत मानते हैं। देवघर की यात्रा यदि कुत्ता छू दे तो यात्रा को समाप्त मान लिया जाता है। यहां वह नहीं था। हालांकि सनातन धर्म में कुत्ता भगवान भैरव का सवारी माना जाता है। पूजनीय है । फिर भी उसे अछूत कई जगह मानते हैं परंतु यहां वह बात नहीं दिखा ।
कामरूप की लूना चमारिन की कथा भी यहां सुनने को मिली । वह इस्माइल योगी की शष्या थी। कहा जाता है कि शक्तिपीठ में वह योगिनी थी और तंत्र विद्या में सिद्धि प्राप्त था । यहां तंत्र विद्या के साधकों के द्वारा लोना चमारिन के द्वारा स्थापित मंत्र का ही उच्चारण किया जाता है।
गर्भ गृह में प्रवेश किया। गर्भ गृह मंदिर के निचले भाग मेंहै। एक गुफा जैसा । बिल्कुल अंधेरे में । कांसा के एक बड़े दीपक में लौ जल रही थी। गर्भ गृह में एक अजीब सी अनुभूति हुई। जैसे कि मां ने सिर पर आंचल रख दिया हो। गर्भ गृह की दीवारों पर भी कई पौराणिक चित्र बने हुए थे। हालांकि अंदर में मोबाइल का प्रयोग वर्जित था, सो तस्वीर कोई नहीं ले सका।
गर्भ गृह में माता की प्रतिमा नहीं थी। पौराणिक कथा अनुसार यहां सती के शव के साथ तांडव कर रहे शिव को शांत करने के लिए जब विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती के शव को टुकड़े-टुकड़े में खंडित किया तो यहां योनि का हिस्सा गिरने की बात कही जाती है।
मान्यता है कि ब्रह्मा के मानस पुत्र प्रजापति दक्ष का दर्प जब चरम पर था तो उसने माता शक्ति के शिव से विवाह को उपेक्षित किया। वहीं प्रजापति के द्वारा आयोजित यज्ञ में उसने देव, दानव सभी को आमंत्रित किया पर दर्प के चरम पर उसने अपने जामाता महादेव शिव और अपनी पुत्री को नहीं बुलाया। वे सती के शिव से विवाह करने से नाराज थे। इसपर भी माता शक्ति सती अपने पिता के इसे आयोजन में चली गई। जहां शिव का अपमान किया गया। सती से पति का अपमान सहा नहीं गया। वही यज्ञ स्थल पर ही अपने को भस्म करना चाही। शिव क्रोधित हुए। दक्ष का शीश काट दिया गाय। वही दक्ष जो अमर था। ब्रह्मा पुत्र। वही शिव का तांडव शुरू हुआ। सती का शव कंधे पर रखे। फिर विष्णु ने शिव का क्रोध शांत करने सती के शव का खण्डन किया। 52 टुकड़ों में सती का शव धरती पर गिरा जहां आज शक्तिपीठ है।
बाद में देवताओं के अनुनय विनय के बाद दक्ष के शरीर को शिव ने एक बकरे का सिर लगा दिया। दक्ष के बकरे का सिर लगी तस्वीर भी कामाख्या मंदिर के अंदर भाग में दीवारों पर लगी है। यह शायद हमारे अहंकार को चेतावनी ही है।
कामाख्या में सती के योनी का हिस्सा गिरा। उसी की प्रतिकृति कि यहां पूजा होती है। जहां पर प्रतिकृति है वहां एक जलधारा बहती है। यह प्रवाह निरंतर है। साल में एक बार तीन दिनों के लिए यहां अंबुबाचि मेला लगता है । मंदिर के बगल में ही ब्रह्मपुत्र नदी है। कहा जाता है कि उस दौरान साल में एक बार जून में तीन दिनों के लिए मंदिर में पूजा बंद कर दिया जाता है। इस दिन कहा जाता है की माता रजस्वला होती हैं और मंदिर की जलधारा सहित ब्रह्मपुत्र नदी का जल भी लाल हो जाता है।
इस दौरान उपयोग किया गया कपड़ा यहां विशेष मंगलकारी माना जाता है और उसे श्रद्धालुओं को यहां के पंडा के द्वारा शुल्क लेकर दिया जाता है। कुल मिलाकर यहां के पांडा का भी व्यवहार काफी मानवीय रहा । अन्य जगहों पर पैसे छीन लेने या पैसे लेकर ही दर्शन और पूजन करने देने की अनुमति जैसी बात यहां नहीं देखी । गर्भ गृह में बहता जल को छूकर मैं भी आशीर्वाद लिया, आठ बजे बाहर आ गए।
जय मां कामाख्या आपका यात्रा वर्णन सुनकर अच्छा लगा बहुत ही सुंदर एवं अच्छी जगह है माता का दर्शन का हो भाग्य मिला आपका कल्याण हो मैं भी मां कामाख्या के दर्शन के लिए गया था दोबारा जाने की इच्छा प्रबल है जब मन का बुलावा आ जाए मगर जाना है जय मां कामाख्या
जवाब देंहटाएंसुंदर यात्रा वृतांत सर।
जवाब देंहटाएंसादर...
----
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २६ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
aabhar apka ji
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
हटाएंबहुत सुन्दर यात्रा वृतांत ...
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
हटाएंसुन्दर जानकारी जय मां कामाख्या देवी
जवाब देंहटाएंसाधुवाद
जवाब देंहटाएं