मोदी विरोध का एजेंडा और आम आदमी की समझ
देश में तेजी से बदल रही है। देश में संसद का यह सत्र मणिपुर हिंसा और स्त्री के वायरल वीडियो की भेंट चढ़ गया। चढ़ना चाहिए। लोकतंत्र तभी मजबूत है जब विपक्ष मजबूत होगा।
पर सवाल आम आदमी के मन में उठते है। मणिपुर में मोदी विरोधी खेमा की सक्रियता रही । पोर्टल, यूट्यूब और सोशल मीडिया के सूरमा खूब बहादुरी दिखाए। परंतु यह कम बताया गया कि मणिपुर इंफाल उच्च न्यायालय के द्वारा मैतेई को जनजाति का आरक्षण देने के आदेश से कैसे यह हिंसा भड़की । यह भी कम बताया गया कि जंगलों में कैसे बर्मा से भागे लोगों ने कब्जा किया है। कैसे वहां अफीम की खेती करके देश को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। यह भी नहीं बताया गया कि कैसे वहां नागा, मैतेई, कुकी, सभी संगठनों के पास अपना अपना सेना जैसे गिरोह है।
एक मैतेई महिला के साथ दुराचार की खबर भी उस स्तर से नहीं दिखाई गई जैसे कूकी महिला के नग्न कर घुमाने की खबर। किसी भी हिंसा, महिला अत्याचार को सही नहीं ठहराया जा सकता । सभ्य समाज में तो कतई नहीं होना चाहिए। परंतु केवल चयनित हिंसा, अपराध, महिला दुराचार के मामले को प्रचारित करना हम समझते हैं कि उन अपराधियों से भी ज्यादा नीचतापूर्ण कार्य करने जैसा है।
इतना ही नहीं इस सब के बीच हरियाणा के नुंह में शोभायात्रा के दौरान नियोजित तरीके से घेराबंदी और रास्ता रोककर युद्ध जैसी रणनीति अपनाते हुए हमला किया जाना, पुलिस और लोगों की मौत की खबर को भी औपचारिकता भर इन गिरोह के लोगों के द्वारा दिखाया गया।
सबके बीच राजस्थान में स्त्री के निर्वस्त्र करने की ताजा खबर भी गिरोह के लोगों ने कम नहीं दिखाया और सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश नहीं की। और ये वही लोग है जो गोदी मीडिया चिल्लाते है।
उधर, लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कुछ ऐसा करने की बात कही कि 1000 साल तक लोग याद रखें। इधर, संविधान और लोकतंत्र को खतरे में बताया जाने लगा। इस बीच अचानक पर संसद का विशेष सत्र को बुला लिया गया है। एक देश, एक चुनाव की सक्रियता बढ़ी है। चर्चा यह भी है कि एक देश, एक कानून का मुद्दा भी लाया जाएगा।
इस सबके बीच युवाओं की बेरोजगारी, सरकारी नौकरी में अवसर का कम होना, महंगाई, गरीब का और गरीब होना, अमीर का और अमीर होना ऐसे मुद्दे दबा दिए गए। ले-दे कर अडानी को घेरने की पूरी कोशिश हुई । ठीक वैसे ही फिर हो रही है, जैसे एक निजी कंपनी के द्वारा अमेरिका में यह कह दिया गया कि अडानी कंपनी ने बड़ी गड़बड़ी की और उस पर मोदी सरकार को घेर लिया गया। जबकि उस निजी कंपनी की विश्वसनीयता हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है। सामान्य तौर पर वैश्विक स्थिति में कभी कोई भारत जैसे विकासशील देश की कंपनियों को अपने यहां सरवाइव करने नहीं देगा चाहेगा।
मुद्दे कई हैं। खैर ऐसे मुद्दे पर सरकार को नहीं न घेर कर टमाटर के लाल होने की खबर ऐसे चलाई गई जैसे अमृत की बूंद हो। देश का किसान और गांव का आदमी टीवी और नेताओं का बयान देख कर चौक रहा था। अभी टमाटर की खेती का समय नहीं है। ऐसे में आम आदमी टमाटर खाने की नहीं सोचता। विशेष आदमी की बात अलग है। ऐसे में 2000 किलोमीटर से फ्रीज वाहन से टमाटर लाकर ₹2 किलो की बिक्री भला कौन करता। इस सबमें चौंकाने वाली बात यह रही कि मोदी विरोध में किसान और किसान पुत्र भी टमाटर के मंंहगे होने पर रुदाली बन गए। कमाल की बात है कि जिस गोदी मीडिया को नेताओं के द्वारा गाली दिया जा रहा था और कहा जा रहा था कि उनकी खबरों को नहीं दिखाया जाता वही गोदी मीडिया ने मुंबई सहित गठबंधन के सभी बैठकों को लगातार कवर किया। कमाल की बात यह भी है कि युट्युब, पोर्टल वाले सूरमा मोदी को पानी पी पीकर गाली देते हैं और यह भी कहते हैं कि भारत में बोलने की आजादी नहीं है।
सवाल सत्तापक्ष से भी है। ₹700 रसोई गैस मंहगा कर के चुनाव के समय में ₹200 सस्ता करना ठीक वैसे ही लग रहा जैसे किसी स्त्री को निर्वस्त्र करके उसे एक गमछी उपहार में देना। युवाओं को नौकरी देने में पीछे होनाद्ध अग्निवीर के रूप में सैनिक भर्ती में अपना कैरियर तलाशने वाले युवाओं को अवसर हीन करना । ऐसे कई सवाल हैं।
इन सवालों का जवाब बिहार सरकार ने हाल ही में केंद्र सरकार को दिया भी है। उन्हें पौने दो लाख शिक्षकों की बहाली सहित कई बहाली को तेजी से निष्पादित करना, केंद्र के लिए चुनौती दिया गया है।
इस सब के बीच विपक्ष की एकता का फलाफल जो भी निकले। आम आदमी में विभिन्न राजनीतिक बयानों, गतिविधियों से देश का एक बड़ा वर्ग यह तो सोच ही रहा है कि यह सब एक वर्ग के तुष्टीकरण के लिए किया जा रहा है। इसके अनेकों कारण है। ताजा मामला बिहार में हिंदुओं की छुट्टी में कटौती, स्टालिन का बयान, हिंदू धर्म ग्रंथों को जलाने की तत्परता इत्यादि है। ऐसे में गठबंधन कहां तक मोदी सरकार को गिराने में सफल होती है यह समय के गर्त में है परंतु आम आदमी की सोच में महागठबंधन की यही छवि बनी है।
आदमी होना भी प्रश्नवाचक हो गया है | आम और ख़ास तो बाद की बातें हैं |
जवाब देंहटाएंyahi sahi he
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