साधुता, संत्तत्व और पद्मश्री जैन साध्वी माता चंदना जी का सानिध्य
साहित्यकारों ने अक्सर साहित्यिक अलंकारों में किसी संत , साधु का वर्णन करते हुए कई अलंकरण जोड़े हैं। इन अलंकारों में कई बार पढ़ा है कि उनके चेहरे का आभामंडल दिव्या था। वहां से दिव्य प्रकाश निकल रहे थे । उनके व्यक्तित्व से ऊर्जा का प्रवाह हो रहा था। ऐसा महसूस किया जैसे ईश्वरीय अलौकिकता आभामंडल से प्रवाहमान है। आदि, इत्यादि।
कुछ इसी तरह के अलंकारों और ईश्वरीय अलौकिकता से मेरा साक्षात्कार मंगलवार को नालंदा जिले के राजगृह के वीरायतन में हुआ । यहां पद्मश्री माता चंदना जी का आशीर्वाद मिला। अलौकिक!
शरणागत होकर आशीष लिया। स्वयं को उनके चरणों में अर्पित किया तो माताजी ने अपने देवत्व वचनों से मुझे उपकृत किया । साधु, संत, महात्मा, पंडित, मुल्ले , इन सब के प्रति शुरू से ही मेरे मन में आस्था नहीं है। यह मेरा अहंकार ही है। पर है। मैं जल्दी किसी को पैर छूकर प्रणाम नहीं करता। स्वतः प्रेरित होकर करता हूं।
माता चंदना जी की अलौकिक आभा ने मुझे खींच लिया । पैरों को छूकर उनके चरणों में जाकर बैठ गया । वे ईश्वरीय कृपा स्वरूप मुझपर ज्ञानामृत झिड़कने लगीं। जैसे माता का स्नेह बरस रहा हो।
उन्होंने भगवान महावीर के उपदेशों को उद्धृत किया । कहा, मनुष्य अलग-अलग जाति, धर्म में बंटा हुआ है। हिंसा कर रहा है, जबकि ईश्वर एक है।वह किसी को अलग नहीं किए हैं।
उन्होंने कहा, मैं आज तक किसी को यहां जैन धर्म अपनाने के लिए प्रेरित नहीं की। सब की सेवा करती हूं। इसी क्रम में उन्होंने मुझसे केवल एक अपेक्षा मांगी।कहा, मैं चाहूंगी कि आप मांसाहार ना करें। शाकाहारी रहे। मैंने उनको बताया कि मैं शाकाहारी हूं तो वे आह्लादित होकर दोनों हाथ उठाकर मुझे आशीष दी।
कहा, जाती और धर्म के झगड़े नेताओं और धर्म गुरुओं की देन है।
एक उदाहरण प्रस्तुत कर समझाया कि जब मैं वीरायतन में पंछियों को खाना देने के लिए जाती हूं तो वहां अलग-अलग प्रजाति के पंछी होते हैं। जिसमें तोता, मैना, कौवा, गोरैया इत्यादि शामिल है। गिलहरी और चूहा भी आते हैं । सभी एक साथ खाना खाते हैं । वे झगड़े नहीं करते हैं, पर मनुष्य एक समान होकर झगड़े करते रहते हैं।
उन्होंने पूरे विश्व में युद्ध और हिंसा को भी उद्धृत किया। कहा कि यूक्रेन और इजराइल में युद्ध की विभीषिका से मनुष्य जाति खतरे में है।
मैं बरबीघा रेफरल अस्पताल के प्रभारी डॉ फैसल अरशद के आग्रह पर उनके साथ वहां गया था। डॉ फैसल का माताजी से अतुल्य जुड़ाव है। माता जी ने वीरायतन को खड़ा करने में डॉ फैसल जी के पिता डॉक्टर आर इसरी के योगदान को याद किया। कहा कि वह नहीं रहते तो वीरायतन आज यहां नहीं रहता। वे लाखों लोगों की सेवा नहीं कर पाती।
इसी दौरान डॉ फैसल ने बाहर निकलने पर अपना एक संस्मरण सुनाया। कहा कि एक बार मैं शुक्रवार को माता जी के चरणों में आशीष ले रहा था। इसी दौरान जब एक बज गए तो माताजी ने मुझे नमाज पढ़ने के लिए जाने के लिए कहा। स्पष्ट कहा कि सामने मंदिर में जाकर नमाज पढ़ लो। अपने एक सहयोगी को मेरे साथ भेज दिया।
वहीं मैं सोच रहा था, आज की दुनिया में हम भले स्वयं को प्रगतिशील कहते हो, परंतु हम गिरावट की हो रही अग्रसर हैं। कुछ लोग आज भी इस धरती और मनुष्यता को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्हीं में से एक माता चंदना जी भी एक हैं। ईश्वर हमें कब, कहां, कैसे बुलाएंगे । कहां मिलें। कहां आशीष दें। यह मुझे पता नहीं होता। ईश्वर सर्वव्यापी हैं। यह पता है मुझे।
और लौटते समय, सिलाव का विश्व प्रसिद्ध खाजा का आनंद तो बनता ही है।
आपके कर्म आपके चहरे से झलकते ही हैं | सुन्दर |
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