वहीं, कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के बाद इसकी चर्चा जोड़ पकड़ी। बिहार की राजनीति जातिवादी है। यही सच भी है। इसी बिहार की राजनीति को धर्मवादी बनाने का प्रयास बीजेपी की है। इस सब के बीच बिहार कुछ चीजों में देश से आगे बढ़कर काम भी कर रहा है। पहली बात राम मंदिर के चरमोत्कर्ष धार्मिक राजनीति के अतिवाद से अलग, बिहार ने माता जानकी की जन्मभूमि में राम मंदिर से एक दिन पहले राम जानकी मेडिकल कॉलेज का शुभारंभ करके संदेश दे दिया ।
इससे पहले भी बिहार में 3 लाख शिक्षकों की सरकारी नौकरी देकर केंद्र सरकार को लजा दिया। वहीं केंद्र ने एक लाख रेलवे चालक की नौकरी की जगह मात्र 5000 की नौकरी का आवेदन मांग कर युवाओं का उपहास भी किया।
युवाओं का उपवास तो अग्नि वीर जैसे योजनाओं से भी किया गया। यह अलग बात है कि धार्मिक अतिवाद से युवाओं को मति भ्रम में डाल दिया गया। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जातिवाद के अतिवाद को आगे बढ़ा समाज को बांटने और मत पाने का माध्यम बना लिया। आरक्षण की सीमा बढ़ाकर सवर्ण को राज्य, देश निकाला जैसा संदेश भी दे दिया ।
अब बिहार में नीतीश कुमार आज पलटेंगे कि कल पलटेंगे, यही संदेश हवा में तैर रहा है। मीडिया माफिया के द्वारा प्रायोजित तरीके से इस तरह का संदेश फैलाया जाता है। जन-जन इसे सच भी मान लेता है। राजनीति भी यही है। कब क्या है, कहां नहीं जा सकता। तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने से पहले ए टू जेड का नारा बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री के गांव से दिया । यह बेमानी हो गया । बात इतना, बिहार दोराहे पर है। के के पाठक जैसा अधिकारी अति प्रशंसा से प्रफुल्लित हो अतिवाद का शिकार हो, मनमानी कर रहा। कोई टोकने वाला नहीं । इससे, बिहार सरकार के द्वारा दिए गए नौकरी के लाभ को हानि में बदल दिया गया।
उसे यह समझ नहीं की 24 कैरेट सोने से आभूषण नहीं बनता। पी के जनता को उसके घर में जाकर वंशवाद, जातिवाद का नुकसान उनकी भाषा में समझ रहे। अपेक्षित परिणाम यदि निकला तो बिहार फिर से एक संदेश देश को देगा। पर इसकी उम्मीद कम है।
बस।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें