एक पुरानी कहानी है। एक राजा ने अपनी प्रजा को महल के बाहर तालाब में अगले दिन एक एक लोटा दूध डालने का आदेश दिया। अगले दिन लोग यह सोचकर की दूसरा तो दूध डाल ही देगा। एक उसके न डालने से बड़े तालाब में क्या फर्क करेगा, किसी ने तालाब में दूध नहीं डाला। तालाब सूखी रह गई। बस।
आगे बढ़िए। इस चुनाव में मेरी समझ से सोशल मीडिया कंपनियों ने मोदी सरकार के विरोध में काम किया और विरोधी पोस्ट को अधिक जगह दी है। यह बड़े जांच का विषय है।
अब और आगे। राजनीति की चाल शतरंज की टेढ़ी चाल है। समझना मुश्किल है। बीजेपी की हार के कई कारण है। कुछ महत्वपूर्ण है। समझिए। बीजेपी और एनडीए की हार को इंडिया गठबंधन वाले अयोध्या की हार से जोड़ कर रेखांकित कर रहे है। समझिए। राहुल गांधी की पूरी मोहब्बत यात्रा मुस्लिम क्षेत्रों को प्रभावित करने का प्रयास था। प्रभाव रहा। समझना तो यह भी चाहिए। यदि राम मंदिर, 370, सीएए जैसे मुद्दे पर बीजेपी को जीत का भरोसा होता तो चुनाव से पहले इतना शाम, दाम, दंड , भेद नहीं करती। अंतिम समय में जेडीयू और टीडीपी से गठबंधन नहीं करती। यही काम भी किया। वरना सरकार नहीं बनती।
बीजेपी के लिए निराशा वाला चुनाव नहीं रहा। दस साल सत्ता में रहने का अपना नुकसान होता है। यूपी, महाराष्ट्र ने जरूर निराश किया। एमपी ने उत्साह वर्धन। उड़ीसा ने अति उत्साहित।
कांग्रेस अति उत्साह में है। उसके नेताओं के बोल बिगड़ गए है। यह इसलिए है कि उसे उम्मीद नहीं थी, परिणाम ऐसा होगा।
खैर, बीजेपी के हार तो हुई है। कारक कई है।
मूल कारक में से पहला। इस चुनाव में देश भर में अकेले मोदी चुनाव लड़ रहे थे। उनके एमपी, प्रत्याशी मोदी के नाम को जीत का मंत्र मन कर जन को त्याग दिया। अड़ियल स्वभाव रहा। जनता, कार्यकर्ता और नेता। सबको दरकिनार किया। बिहार में आरके सिंह जैसे मंत्री पार्टी ने नेताओं से भर मुंह बात तक नहीं करते थे। कई ऐसे ही थे। बीजेपी भी अंतिम समय नामांकन के दिन तक , जिसको मन हुआ टिकट दिया। मनमर्जी।
एक जबर कारक वोट जिहाद का नया फार्मूला रहा। मुस्लिम समुदाय के वोटर आगे बढ़कर वोट किया। माहौल बनाया। इस्लाम खतरे में है। उसे हवा दी। एक जुट मतदान किया। यह काम किया। बीजेपी के वोटर फील गुड में रहे।
तब भी। यह परिणाम शक्ति के संतुलन वाला है। भारतीय जनता ने साफ कह दिया। होश में रहो। ऑल, बॉल , फुटबॉल मत हो।
एक बड़ा कारक यह भी समझिए। 400 पार के नारे को ही विपक्ष ने हथियार बना लिया।इसे संविधान बदलने, लोकतंत्र को खतरा , तानाशाह, आरक्षण खत्म करने के रूप में प्रचारित किया। यह काम कर गया। सबसे बड़ा मुद्दा यही बना। सोशल मीडिया पर मोदी विरोधी मीडिया ने इसे हवा दी। कई बड़े बड़े जख्मी पत्रकार मैदान में मोदी को हराने में कसर नहीं छोड़ी। कुछ कारगर हुए।
लोकतंत्र के खतरे के आग में घी का काम झारखंड और दिल्ली के सीएम का जेल जाना भी रहा। इनके भ्रष्टाचार किए जाने का मुद्दा गौण हो रहा। ये मोदी के तानाशाह होने के बनावटी माहौल को पुष्ट किया। ईडी का चुनाव में लगातार विपक्ष पर धावा बोलना भी इस अफवाह को बल दिया। हालांकि नौटंकी के बाद भी दिल्ली में केजरीवाल की हार हुई।
बात राहुल गांधी की। चुनाव परिणाम से वैसे ही इतरा रहे जैसे गांव में कहावत है कि एक लबनी धान होते ही गरीब नितराने लगता है। थमो जरा।
कम से कम अब तो मैं इन पार्टियों को सेकुलर नहीं मानता। पहले समझ नहीं थी। तो मानता था। बीजेपी हिंदू तो कांग्रेस और अन्य मुस्लिम परस्त पार्टियां है। तो इस चुनाव को सेकुलर से जोड़ना झूठ है। यूपी में मायावती का कमजोर होना अखिलेश को मजबूत किया। बिहार में बड़बोले तेजस्वी का दंभ भी टूटा। पूर्णिया इसका उदाहरण है। पप्पू यादव को मिट्टी में मिलाने चले। परिणाम उल्टा हुआ। बिहार में काराकाट, आरा, बक्सर। जहानाबाद। नीतीश कुमार के जिद्द में गया। बस इसी तरह खेल हुआ।
बिहार के लिहाज से यह चुनाव एक बार फिर लालू यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव के अपराधी, जातिवादी प्रयोगशाला को ध्वस्त करने वाला रहा। कई नरसंहार, नवादा जेल ब्रेक का दोषी अशोक महतो को हीरो बना के पेश कर समाज को बांटने और लहकाने का प्रयास किया। बिहार ने नकार दिया। नीतीश कुमार बिहार के फिर हीरो निकले। दुर्भाग्य यह नीतीश कुमार के पलटने की चर्चा भी कल से ही चर्चा होने लगी। इसका खंडन नहीं हुआ।
चिकनी मिट्टी के घड़े
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