संत रैदास का तिरंगा और भारत का लोकतंत्र
अरुण साथी के विचार
देशभक्त कौन है? इसपर लगातार प्रश्न उठते है। और भारत का लोकतंत्र क्यों सशक्त है, इस प्रश्न का उत्तर भी मांगा जाता है। दोनों प्रश्नों का उत्तर यह एक तस्वीर है। गहरी पैठ के साथ देखिए।
दरअसल, 15 अगस्त को जिला के शेखोपुरसराय के महेश स्थान चौक से बीच दोपहर गुजर रहा था। भीषण गर्मी थी। चिलचिलाती धूप देह जला रहीं थी। ऐसे में अचानक सड़क के किनारे जूता मरम्मत करने वाले एक बुजुर्ग के छाता पर ध्यान चला गया। आश्चर्य हुआ। तस्वीर खींची। बुजुर्ग ने अपने छाता के ऊपर तिरंगा बांध रखे थे। अक्सर, 15 अगस्त , 26 जनवरी को देखता हूं। रिक्शा चालक, ठेला वाला अपने रिक्शा, ठेला को तिरंगा से सजा के रखते है।
लोकतंत्र ने पूरी दुनिया में जो बदलाव किया उसमें से सबसे बड़ा बदलाव उस आदमी के लिए ही था जिसका जीवन सामंतों, कथित सर्वश्रेष्ठ जातियों, धनिकों के लिए दो कौड़ी का था।
हमें चीजों को गहराई से देखना चाहिए। लोकतंत्र में टाटा, बिरला, राजा, जमींदार, अदानी, अंबानी, मोदी, राहुल, सफाई कर्मी, चर्मकार, मुसहर, डोम, आदिवासी, सभी के वोट को कीमत एक है। मतलब सभी समान है। और आजादी के 79 वर्ष में अनुभव बताता है कि अब निचले पायदान के लोगों ने अपनी इसी ताकत को पहचान लिया है।
हां, यह बात है कि अब नव सामंतवाद आ गया है। इस ताकत को पहचान कर लालू प्रसाद यादव, मायावती, मुलायम सिंह यादव, चंद्रशेखर रावण सरीखे लोग अपनी राजशाही बना, सजा लेते है। इनके लिए सिर्फ बोल वचन होता है। आज जय भीम के नाम पर इन लोगों में मस्तिष्क में जहर भरा जा रहा। इनको सामंतों का शोषण तो बताया जा रहा, पर किसी जमींदार के बेटे का इनके लिए विद्रोह, संघर्ष नहीं बताया जा रहा। लोकतंत्र के इस हवन कुंड में बहुतों ने आहुति दी है। इसमें अगड़ी जातियों का योगदान सर्वाधिक है। संविधान में केवल बाबा साहब का ही योगदान नहीं है, और भी मनीषी थे। पर नव सामंतवाद ने अपनी राह पकड़ ली है। सोशल मीडिया हथियार बना है। समाज को जोड़ने के मनीषियों के प्रयास को इसी हथियार से काटा जा रहा। और इसी से नव सामंतवाद का सामंतवादी साम्राज्य स्थापित हो रहा।
आज दो ध्रुवों में बंटे देश में वोट चोरी का कृत्रिम मुद्दा बड़ी चालाकी से उछाल दिया गया। जन सरोकार के वास्तविक मुद्दे गौण हो गए। उसपर बहस , आंदोलन नहीं होता। आज जाति और धर्म का अफीम चटाया जा रहा। आज नीचे से ऊपर उठ चुके लोग, नीचे रहने वाले का हक लूट रहे, और उनको इसका भान नहीं? इसपर सब चुप।
आज नव सामंतवाद के युवराज को अपने राजशाही जीवन, धन संचय के लिए लोकतंत्र और देश की कीमत पर भी सत्ता चाहिए। और इस खेल में सभी माहिर शामिल है।
समाज के निचले पायदान से ऊपर जाकर सामंतवादी घरों में बेटी के ब्याह करने के बाद भी जिस तरह से निचले पायदान का हक लूटा जा रहा है वह भी सामंतवादी होने का और लूटेरा होने का परिचायक है। क्योंकि जब आपकी पहचान ब्याह के बाद बदल गई हो तो आपको निचले पायदान का हक लेना कतई उचित नहीं है। और इसका सबसे बड़ा वजह यह है कि समाज के उसे निचले तबके को आज भी इनमें भगवान नजर आता है।
जवाब देंहटाएंखेल जारी रहेगा 2047 तक कम से कम
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