28 सितंबर 2025

आज सोशल मीडिया के डिजिटल युग में, जब हम सब मोबाइल के गुलाम है, तब हम सब बेहोश हैं

 आज सोशल मीडिया के डिजिटल युग में, जब हम सब मोबाइल के गुलाम है, तब हम सब बेहोश हैं  

अरुण साथी 

आचार्य ओशो रजनीश ने एक बड़ी गहरी बात कही है। उन्होंने कहा, होशपूर्ण हो जाओ। बस, यही बहुत है। कहा, जब तुम किसी के प्रेम में होते हो तो तुम केवल अच्छाई देखते हो! और, जब तुम किसी से घृणा करते हो तो तुम केवल बुराई देखते हो। होशपूर्ण आदमी, ऐसा नहीं करता। प्रेम में होकर भी कमी देखता है। घृणा में होकर भी अच्छाई देखता है। सम्यक दृष्टि।
आज सोशल मीडिया के डिजिटल युग में, जब हम सब मोबाइल के गुलाम है, तब हम सब बेहोश हैं। और इसी बेहोशी की वजह से अब बहुत कुछ बदल गया है। यह बेहोशी तथाकथित जेन जी में भी है। जो अपने देश को जला देता है। यही लद्दाख में भी दिखा। यही बेहोशी धार्मिक कट्टरपंथियों में दिखता है। और यही बेहोशी, तथाकथित मोदी विरोधी, और समर्थकों में भी दिखता है। और यही बेहोशी, धार्मिक , सामाजिक , राजनैतिक और छद्म हीरो को देखने के आयोजनों में दिखता है।



बेहोशी का आलम , अभी दक्षिण के हीरो विजय के राजनैतिक समारोह में दिखा। कई जाने चली गई। पटना में भी प्रभास के समारोह में यही हुआ। कुंभ में यही हुआ। स्थानीय आयोजनों में यही होता है। हम बेहोशी में जी रहे। ओशो कहते है, होशपूर्ण रहो।
ओशो कहते है, भीड़ को अपना दिमाग नहीं होता। भीड़ बेहोशी है। और यही भीड़ हम सब जगह देखते है। अभी जेन जी यही भीड़ है। बेहोश। मुझे याद है, बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद एक युवक अपनी दादी की उम्र की प्रधानमंत्री का घर लूटने के बाद उनकी ब्रा का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहा है। यही बेहोशी है।
अभी, बेहोशी को तेजी से बनाए रखने में सोशल मीडिया का अल्गोरिदम काम कर रहा है। जो अच्छा लगे, वही देखो। पर यह गहरी साजिश है। वैसे ही जैसे जोंबी।

यह अब अक्सर हो रहा। बेहोशी में अच्छा, खराब हम तय नहीं करते, हमें कोई भी, किसी को भी अच्छा, खराब बना देगा।
अभी बिहार में चुनाव है। संदर्भ समझिए। पटना से लेकर, जिला तक। बेहोशी को हवा दी जा रही। मोबाइल पर माया फैलाने वाले हम, प्रायोजित तरीके से यह करते है। जैसे कि, हम मोबाइल वाले, प्रायोजित रूप से धूम धूम कर मनपसंद रूप से वीडियो बना कर किसी को भी , किसी पार्टी का उम्मीदवार बना दे रहे। किसी को विधायक, किसी को खलनायक, किसी सीएम, किसी को पीएम बना दे रहे। 

ध्यान रहे, हम शब्द का प्रयोग है। मैं स्वयं को इससे अलग नहीं मानता।
अभी भागलपुर में 1 रुपए में हजार एकड़ जमीन देने, 10 लाख पेड़ काटने की बेहोशी हमने देखी। लद्दाख में यही दिखा। सच अगले अंक में बताऊंगा।
और समझिए, पिछले साल मेरे शेखपुरा में, 40 लाख में बिहार का सबसे ऊंचा दुर्गा पंडाल बनने का समाचार बेहोश लोगों ने वायरल किया। लाखों, करोड़ों दर्शक मिले। सच यह नहीं था। 5 लाख का पंडाल था। उससे ऊंचा कई बने।

 तब, विकल्प क्या है। होशपूर्ण होना, सबसे बेहतर विकल्प है। शांत होकर, सोचना, धैर्य रखना विकल्प है।
और विकल्प है, किसी भी मुद्दे पर त्वरित विश्वास नहीं करते हुए होशपूर्ण होकर शोध करना। अब शोध मुश्किल नहीं हैं। बस गूगल करिए, चैट जीपीटी, ग्रोक से पूछिए। सब बता देगा। बस होश पूर्ण होकर मनन करिए। क्योंकि, अब जमाना ai का है। मतलब, सब झूठ। सच केवल अपनी अपनी बौद्धिकता है। हम जो कहें, उसे मत मानो..! होशपूर्ण होकर खोजो। सत्य है तो मिलेगा। बस, बाकी सब ठीक है।

26 सितंबर 2025

राजनीति, भाया केजरीवाल टू प्रशांत किशोर

 राजनीति, भाया केजरीवाल टू प्रशांत किशोर 



बिहार की राजनीति में अभी फॉग चल रहा है। जिससे भी पूछिए, वही कहेगा, अभी फॉग चल रहा है। दरअसल फॉग अल्पायु होता है। पर गंध खूब मचाता है। सोशल मीडिया का चरित्र फॉग का चरित्र है। और इसी फॉग चरित्र के नायक केजरीवाल हुए और अभी बिहार में प्रशांत किशोर है। बिहार में कई साल पहले, आनंद मोहन और लवली आनंद भी इस फॉग को चलाने में लगे थे।


बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर ने कई महीने पहले ही बड़ी कंपनी की ताकत लगाते हुए पूंजीपति वाद की राजनीति शुरू की। एक एक विधान सभा में कई कई वेतनभोगी कर्मचारी, वोटरों का मन टटोलने, बदलने में लगे हैं। पैसे को पानी की तरह बहाया जा रहा। और निश्चित रूप में इसमें प्रदर्शित नहीं है। होती तो पार्टी के वेबसाइट पर आमदनी और खर्च सही-सही हिसाब दिया हुआ होता। इसमें भेद है। इसमें कई-कई छद्म विद्या है। एक  परिवार लाभ कार्ड यही है। 

अब चूंकि इसमें बीजेपी जैसी शक्तिशाली पार्टी प्रतिद्वंदी है, इसलिए इसपर बहुत कुछ कहना जल्दबाजी होगी। फिर भी, जब प्रशांत किशोर ने गांधी जयंती के दिन पटना में हाथ उठा कर पार्टी अध्यक्ष की घोषणा की, उसी दिन समझने वाले समझ गए कि ये कॉर्पोरेट राजनीति का चरमवाद के सिद्धांत का जयघोष हुआ है। और हुआ भी। और तो और, कुतर्क भी था। गांधी जयंती पर शराब बंदी को खत्म करने की घोषणा ने नैतिक मूल्यों को ताक पर रखने की भी घोषणा कर दी।

फिर हाईटेक पदयात्रा से शुरू हुआ सफर, गांधी मैदान से होकर आरोप लगाने तक पहुंच गया। और इस सबके साथ, मीडिया मैनेजमेंट की मास्टरी से सबको साधा गया। कई धुरंधर खुल कर पक्ष में बैटिंग करने लगे। और, प्रतिद्वंदी दलों के मुकाबले के लिए उपर्युक्त युक्ति राजनैतिक दृष्टिकोण से सही भी है। आंदोलन में विश्वास नहीं रखने वाले प्रशांत, आरोप का खेल खेलने लगे। आरोप को समझिए। अशोक चौधरी पर बेटी शांभवी के लिए टिकट खरीदने का अरोप प्रशांत ने लगाया। वही जब चिराग द्वारा टिकट बेचने की बात पत्रकार ने पूछा तो प्रशांत मुकर गए। बोले वे ऐसा नहीं करेगें। कोई बिचौलिया होगा। यही कुटिलता, राजनीति कौशल माना जाता है। 


राजनीति में जो सामने से दिखता है, वही सच हो, ऐसा बिल्कुल नहीं होता। अब थोड़ी सी बात अरविंद केजरीवाल की।
जिनको याद है। वे याद करें। सोनिया गांधी, राहुल गांधी, शिला दीक्षित सहित भ्रष्टाचार की उनकी सूची लंबी थी। सभी को सत्ता में आने से पहले वे ऐसा कर रहे थे जैसे सत्ता में आते ही सभी को लटका देंगे। पर हुआ क्या..? अंततः, वे उन्हीं लोगों से साथ खड़े हो गए। और आंदोलन में उनके साथ खड़े होने वाले को, बारी-बारी से किनारे लगा दिया।

अब, उसी तरह का प्रयोग प्रशांत किशोर बिहार में कर रहे। आरोप लगाओ। इसमें बहुत सारा किंतु, परंतु है। पर बिहार में वबाल तो मच गया है। बहुत सारी बातें तो नहीं, पर मंत्री अशोक चौधरी को लेकर जो बेनामी संपत्ति का आरोप लगाया उसकी जद में आचार्य किशोर कुणाल को भी नहीं छोड़ा। आचार्य कुणाल जी, जीवन भर जिन मूल्यों को प्राप्त करने के लिए सामाजिक हवनकुंड में अपनी आहुति दी, उन्हीं पर सवाल उठा दिया। खैर, यह तो जांच का विषय है। बड़े बड़े ज्ञानवान लोग है। वे तय करेंगे। पर एक बात तो जो सहज समझ में आती है, वह है बेनामी संपत्ति होने का आरोप। बेनामी संपत्ति वह है, जिसका कोई मालिक सामने नहीं हो। पर अशोक चौधरी के मामले में ऐसा नहीं है। उनके अनुसार, बिहार के हर मंत्री को मुख्यमंत्री के पास अपनी संपति का विवरण देना पड़ता है। और उस विवरण में शामिल जमीन को ही प्रशांत उठा रहे, तो वह बेनामी कैसे हुआ। और तो और चुनावी घोषण पत्र में भी जिसका जिक्र हो, वह बेनामी कैसे हुआ। 

 अब, 200 करोड़ का आरोप फेंक दिया। विपक्ष, और पक्ष के विपक्ष, जो तेजी से आगे बढ़ने से खार खाए बैठे थे। आरोप को लोक लिया। वबाल मच गया। पर ठोस तथ्य सामने नहीं आया। जो तथ्य आए, वे सार्वजनिक होते है। अब बिहार में जमीन रजिस्ट्री का केवाल इंटरनेट पर उपलब्ध है। तब, इसमें कौन का अनुसंधान हुआ..! हां, राजनीति सध गई। क्षणिक। अब भर चुनाव यह खेल चलेगा। राजनीति में फॉग चलेगा। इसमें तत्काल कुछ लोग चपेट में आ जाएंगे, कुछ बच जाएगें। बाकी सब ठीक है। 

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10 सितंबर 2025

कसाई के श्राप देने के गाय नहीं मारती...!

कसाई के श्राप देने के गाय नहीं मारती...!


भ्रष्टाचार, वंशवाद के विरुद्ध उठे आवाज को कथित तौर पर सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबन्ध ने नेपाल में अराजकतावाद का नंगा नाच किया। यह अतिवाद है। इस चरमपंथ को जेन जी कहा जा रहा।
सब मान भी लें तो संसद को जलाना, होटल जलाना। विपक्षी पूर्व पीएम का घर फूंक देना । उनकी पत्नी की मौत। देश की सार्वजनिक संपत्ति को फूंक देना..! यह राष्ट्रवाद नहीं, चरमपंथ है। अतिवाद है। जेन जी नहीं।


हिटलर ने अपने आत्मकथा में कहा है कि
"30 वर्ष के कम उम्र के युवाओं के हाथ ताकत नहीं होनी चाहिए। वह नुकसान करेगा।"
इसी लिए आचार्य ओशो ने कहा है,
"क्रांति अक्सर असफल रही है। क्यों कि क्रांति भीड़ करती है। और भीड़ के पास अपना दिमाग नहीं होता।"

मैं मानता हूं, किसी देश का तानाशाही सरकार से लाख गुणा बढ़िया भ्रष्ट लोकतांत्रिक सरकार है। आज बांग्लादेश देख लीजिए।

ये उन्मादी , चरमपंथी युवाओं ने नेपाल (अपना देश) जला दिया। अब भारत में दोनों तरह के लोग खुश है। एक इसलिए खुश हैं कि चीनी परस्त वामपंथी सरकार का खत्मा हुआ। दूसरा खेमा इसलिए खुश है कि उसे भ्रम है कि यह आग भारत तक पहुंचेगी...! भारत में इस आग को भड़काने में वे लोग लगे हुए है। तरह तरह के ताने दिए जा रहे। रविश जैसा आदमी, कहता है वोट चोर वाला नारा से नेपाल ने बवाल हुआ है।

पर भारत में यह कभी नहीं होगा। भारत का मानस लोकतांत्रिक है। भारत ने विदेशी ताकतों के इशारे पर किसान आंदोलन में लाल किले पर ट्रैक्टर का विकराल प्रदर्शन देखा है। शाहीन बाग देखा। संविधान खतरे से लेकर वोट चोरी तक देख लिया है।

जेन जी की हवा भारत में चलाने की असफल कोशिश हो चुकी है।

यह पूरा खेल सोशल मीडिया का भी है। किस आग को भड़काना है, उसी को हवा दे दो। चाबी तो उसी के पास है। नेपाल में वही हुआ। इसकी चाबी अमेरिका के पास है। जॉर्ज सोरेस भी अमेरिका का है। हर देश में तख्तापलट के हालिया मामले में उसका हाथ सामने आया। नेपाल में भी आएगा।

इसलिए बंधु, छाती पीटते रहो,
कसाई के श्राप देने के गाय नहीं मारती...! बाकी तो जो है, सो हैइए है...

08 सितंबर 2025

नया बिहार 4.0 – नीतीश कुमार

 नया बिहार 4.0 – नीतीश कुमार  

जिसने 2005 से पहले का बिहार देखा है, उनके लिए यह अचंभो है! यह नया बिहार है। इस नए बिहार की नई तस्वीरें सोशल मीडिया पर चमक रही हैं। जगमग, जगमग। चकाचक। चमाचम! और इस नए बिहार को नीतीश कुमार ने नया बनाया है। जो कोई पूर्वाग्रह में नहीं होगा, वे सभी इसे स्वीकार करेंगे।
इस नए बिहार में क्या-क्या नया है? तो, राजगीर का खेल मैदान। जब एक बार कोई तस्वीर देखे तो निश्चित भरोसा नहीं होगा। पर सच है।


सच यह भी कि जिस बिहार की सड़कों पर गड्ढे होते थे, वहां अब मेट्रो दौड़ रही है। जिस बिहार में शाम होते ही माता-पिता बच्चों को घर में नहीं देखते तो व्याकुल हो जाते थे, उस बिहार में बिहार के प्रतिपक्ष के नेता शहर के लड़कों के साथ रात में अकल्पनीय जे.पी. पथ (मरीन ड्राइव) पर डिस्को करते हैं। उसी बिहार में देश के विपक्ष के नेता बिहार भर में बुलेट से घूम लेते हैं।



नया बिहार 4.0 में नया बहुत कुछ है। एक धारणा बना दी गई है – बस पहले पाँच साल ही काम हुआ..! यह झूठ है। सच अपने आसपास देखिए। बदलाव को महसूस करिए। दिखेगा। यह कि आपके घरों के आगे से गुजरने वाले बिजली के तार कवर तार में बदल गए। आपके गाँव-घर से पौ फटते ही साइकिल की ट्रिन की आवाज के साथ बेटी शहर पढ़ने जाती है। आपके गाँव-घर की वह बेटी, जो कभी साइकिल से शहर पढ़ने जाती थी, आज स्कूटी से स्कूल पढ़ाने जाती है।

आपके गाँव-घर में बेटी स्नातक पास कर गई और उसके खाते में सरकार ने हौसला बढ़ाने के लिए बिना किसी जाति को देखे 50,000 रुपए भेज दिए। मैट्रिक, इंटर करने पर भी दिए हैं।

आपको दिखेगा कि सरकारी स्कूल में पर्याप्त शिक्षक हैं। सरकारी अस्पताल में प्रतिदिन 200 से 400 बीमार पहुँच रहे हैं और उन्हें बाहर से दवा नहीं लेनी पड़ती। आपको दिखेगा कि जो गरीब, वृद्ध दवा के अभाव में मरने के लिए छोड़ दिए जाते थे, वे भटकते-भटकते अस्पताल पहुँच कर जीवन पा रहे हैं। आपको दिखेगा कि निजी डॉक्टर से इलाज कराने वाले भी पैसा बचाने के लिए सरकारी अस्पताल में एक्स-रे, अल्ट्रा साउंड, सीटी स्कैन, खून जांच इत्यादि करा रहे हैं। आपको दिखेगा कि सरकारी अस्पताल में मौत के मुंह पर खड़े किडनी बेकार हो चुके मरीज का निःशुल्क डायलिसिस से जीवन मिल रहा है।

आपको दिखेगा कि कहीं यदि अपराध हो तो अब लोग थाना नहीं जाते, थाना उनके पास आता है। 112 नंबर सभी की ज़ुबान पर है। 20 मिनट में पुलिस हाजिर। आपको दिखेगा कि आपके जिले में मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज हैं।

आपको दिखेगा कि अस्तित्व खो चुका नालंदा विश्वविद्यालय पुनर्स्थापित हो चुका है। दुनिया भर से लोग यहाँ फिर पढ़ने आ रहे हैं। आपको दिखेगा कि पटना में इतना फ्लाई ओवर बन गया कि भूल भुलैया जैसा हर कोई भटक जाता है। सचिवालय का फ्लाईओवर तो आज तक किसी को समझ नहीं आया है। और अटल पथ – जैसे बिहार का है ही नहीं।
गया जी में गंगा जी का पानी आ गया। भागीरथी प्रयास हुआ। पुनपुन नदी पर लक्ष्मण झूला बन गया। सिमरिया धाम बना है। और नया पुल तो जैसे बिहार का है ही नहीं। अचंभो..! पहले गंगा पार जाने को एक-दो पुल, आज आधा दर्जन… अब कितना लिखें? 

05 सितंबर 2025

ओणम : केरल के पारंपरिक त्योहार में सहभागी होने का अनुभव

ओणम : केरल के पारंपरिक त्योहार में सहभागी होने का अनुभव

ओणम : राजा बलि को जब भगवान विष्णु ने वमन का रूप धर कर तीन पग दान में मांगे तो पहले पग में धरती, दूसरे में आकाश और तीसरे पग कुछ नहीं बचा तो राजा बलि में दान से पीछे नहीं हटते हुए अपना सिर आगे कर दिया। भगवान विष्णु ने उसी समय उनको सदा सर्वदा धरती पर आकर अपनी प्रजा को देखने का वरदान दिया। 
उन्हीं राजा बलि के स्वागत में ओणम का त्योहार मनाया जाता है। इसी दिन राजा बलि के धरती पर आने की मान्यता है। 

आज केरल के इसी परंपरागत लोक आस्था का पर्व में करीब से सहभागी बना। आयोजन बरबीघा के संत मेरिस इंग्लिश स्कूल में हुआ। जिले के कई आदरणीय उपस्थित हुए।
सनातनी परंपरा की पहली झलक तभी मिली जब छोटी सी बच्ची ने सभी आगंतुक को तिलक लगाया। दरवाजे पर रंगोली सजाई गई थी।

फिर, केरल की शिक्षिकाओं ने केरल की पारंपरिक लोक गीत पर पारंपरिक नृत्य की प्रस्तुति दी। इसमें संत मेरिस इंग्लिश स्कूल की निदेशक दीप्ति के.एस. के साथ साथ आर्य,स्वाति जूना इत्यादि भी शामिल थी।
फिर उसके बाद सह भोज का आयोजन हुआ। मेरे लिए पहला अनुभव रहा! अनूठा और अप्रतिम! अहोभाव!
केला के पत्ता पर केरल की शिक्षिकाओं के द्वारा बनाए गए ओणम में पारंपरिक रूप से खाए जाने वाले व्यंजन परोसे गए। एक पर एक, लगातार व्यंजन आते गए। मैं नाम पूछता गया। उसमें नारियल, नींबू, केला, आदि की चटनी। पापड़ इत्यादि। 
फिर चावल आया। मोटा, लाल चावल। पूछने पर पता चल यह ब्राउन रईस जैसा कुछ कुछ केरल का ही है। आज यही बनता है। फिर सांभर। दही से बना कढ़ी। फिर पेय के रूप में सवाई, साथ में तीन चार पेय पदार्थ। 
मन अघा गया। यह एक अच्छा प्रयास रहा। बिहार की धरती पर केरल के लोग, केरल की सभ्यता और संस्कृति से हमे मिला रहे थे।

 बिहार में हजारों केरलवासी अभी शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुके हैं। उसी में है मित्र प्रिंस पी. जे. । आज उनके द्वारा एक सफल आयोजन रहा।

01 सितंबर 2025

राम नाम सत्य है, (संस्मरण का अगला भाग)

  राम नाम सत्य है, (संस्मरण का अगला भाग)


पटना जिले के बाढ़ स्थित उमानाथ मंदिर के बगल में गंगा किनारे प्रसिद्ध श्मशान घाट है। मगधवासियों के लिए मृत्यु के बाद मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का यह सबसे श्रेष्ठ स्थान माना जाता है। इसे दक्षिणायन गंगा घाट कहा जाता है।
नमामि गंगे योजना यहां बदहाल है। गंगा किनारे का दृश्य “राम तेरी गंगा मैली हो गई” जैसा प्रतीत होता है। गंगा तट पर स्थित यह श्मशान घाट कई मायनों में मुक्ति-बोध कराता है।


यहीं मुर्ती पूजा के विरोधी संत रैदास का मंदिर भी है। किसी ने बहुत साहस के साथ इसे बनाया होगा। वरना, गंगा किनारे संत रैदास का मंदिर, सोचना भी कठिन है। 

मंदिर के बाहर लिखा है – “मन चंगा तो कठौती में गंगा”। यह कहावत गांवों में कभी-कभी सुनने को मिलती है।
मंदिर के बगल में एक आंगनबाड़ी केंद्र भी है, जहां इतनी गंदगी है कि मन खिन्न हो जाए। लगता है अधिकारी कभी जांच करने पहुंचे ही नहीं। आएं भी क्यों? यहां तो बस डोम राजा के बच्चे ही पढ़ते हैं।


इसी क्षेत्र में सति माता का मंदिर भी है। न जाने कितनी स्त्रियों की अतृप्त आत्माएं, जिन्हें अपने पति की चिता पर जिंदा जला दिया गया था, आज भी वहां विलाप कर रही होंगी। विडंबना यह है कि उसी सति मंदिर में महिलाएं श्रद्धा से पूजा करती दिखाई देती हैं—हत्या के बाद अमरत्व और पूजा!

इस घाट पर लोग सांसारिक बंधनों से अलग होकर मुक्ति और मोक्ष की बातें करते हैं। कभी-कभी इन चर्चाओं से गहरे रहस्य भी उद्घाटित हो जाते हैं। लेकिन प्रायः यह बातें केवल ज्ञान बांटने तक ही सीमित रहती हैं। वरना ऐसा क्यों होता कि डोम राजा को 500 या 1000 रुपये में मान जाने के लिए घंटों चिरौरी करनी पड़ती? कभी खीझ होती, कभी गुस्सा। लेकिन डोम राजा जानता है—जब देने की बारी आती है तो यहां सब गरीब हो जाते हैं। आखिरकार वह कह ही देता है—
“सहिए कहो हो मालिक, घर जा के पांच थान मिठाय और बारह गांव भोज करभो, पर हमरा ले कुछ नै हो।”


खैर, हर गांव में डोम राजा को मनाने वाले एक-दो एक्सपर्ट जरूर होते हैं। वही लोग आगे बढ़ाए जाते हैं।
उधर, घाट के ऊपर बैठकी जमती है। गपशप शुरू होती है। रामायण की चौपाइयों से लेकर गीता का ज्ञान बांटा जाने लगता है।

बीहट वाले मित्र के जीजाजी पेशे से ठेकेदार हैं, पर गूढ़ता की कमी उनमें नहीं है। वैसे तो आम इंसान ही हैं, लेकिन बात-बात पर हंसा देने में निपुण। उनसे पहली मुलाकात 20-25 साल पहले हुई थी। उस समय उन्होंने जब रश्मिरथी का सस्वर गायन शुरू किया, तो रोंगटे खड़े हो गए थे। यही है दिनकर की धरती का ओज। घाट पर भी वे रश्मिरथी के माध्यम से जीवन, मृत्यु, मोक्ष और बैकुंठ का ज्ञान बांटने लगे। लोग जुटते गए, और सब हां में हां मिलाने लगे।

उसी चौकड़ी में दूसरे स्थानों से आए लोग भी चर्चा में शामिल हो गए। एक बुजुर्ग ने बहुत सहजता से कहा—
“सोचहो, ऐजा के राजा-रंक, ब्राह्मण-शूद्र—सभ्भे एक्के घाट पर। सब जल के राख बन जईता। तभियो कतना गुमान—जाति के, जाल-जत्था के, ज्ञान के, ताकत के। ई देखहो, एगो जल के खत्म होलाे, त दोसर जले ले तैयार हो। पर गंगा जल छिट के इहो जगह के पवितर कर देला। बोलऽ त?”*

तभी एक दूसरे व्यक्ति ने ज्ञान बघारा—“अब आम के लकड़ी दहो कि देवदार के—सबसे जरबे करत, बस...”