आज सोशल मीडिया के डिजिटल युग में, जब हम सब मोबाइल के गुलाम है, तब हम सब बेहोश हैं
अरुण साथी
आज सोशल मीडिया के डिजिटल युग में, जब हम सब मोबाइल के गुलाम है, तब हम सब बेहोश हैं। और इसी बेहोशी की वजह से अब बहुत कुछ बदल गया है। यह बेहोशी तथाकथित जेन जी में भी है। जो अपने देश को जला देता है। यही लद्दाख में भी दिखा। यही बेहोशी धार्मिक कट्टरपंथियों में दिखता है। और यही बेहोशी, तथाकथित मोदी विरोधी, और समर्थकों में भी दिखता है। और यही बेहोशी, धार्मिक , सामाजिक , राजनैतिक और छद्म हीरो को देखने के आयोजनों में दिखता है।
बेहोशी का आलम , अभी दक्षिण के हीरो विजय के राजनैतिक समारोह में दिखा। कई जाने चली गई। पटना में भी प्रभास के समारोह में यही हुआ। कुंभ में यही हुआ। स्थानीय आयोजनों में यही होता है। हम बेहोशी में जी रहे। ओशो कहते है, होशपूर्ण रहो।
ओशो कहते है, भीड़ को अपना दिमाग नहीं होता। भीड़ बेहोशी है। और यही भीड़ हम सब जगह देखते है। अभी जेन जी यही भीड़ है। बेहोश। मुझे याद है, बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद एक युवक अपनी दादी की उम्र की प्रधानमंत्री का घर लूटने के बाद उनकी ब्रा का सार्वजनिक प्रदर्शन कर रहा है। यही बेहोशी है।
अभी, बेहोशी को तेजी से बनाए रखने में सोशल मीडिया का अल्गोरिदम काम कर रहा है। जो अच्छा लगे, वही देखो। पर यह गहरी साजिश है। वैसे ही जैसे जोंबी।
यह अब अक्सर हो रहा। बेहोशी में अच्छा, खराब हम तय नहीं करते, हमें कोई भी, किसी को भी अच्छा, खराब बना देगा।
अभी बिहार में चुनाव है। संदर्भ समझिए। पटना से लेकर, जिला तक। बेहोशी को हवा दी जा रही। मोबाइल पर माया फैलाने वाले हम, प्रायोजित तरीके से यह करते है। जैसे कि, हम मोबाइल वाले, प्रायोजित रूप से धूम धूम कर मनपसंद रूप से वीडियो बना कर किसी को भी , किसी पार्टी का उम्मीदवार बना दे रहे। किसी को विधायक, किसी को खलनायक, किसी सीएम, किसी को पीएम बना दे रहे।
ध्यान रहे, हम शब्द का प्रयोग है। मैं स्वयं को इससे अलग नहीं मानता।
अभी भागलपुर में 1 रुपए में हजार एकड़ जमीन देने, 10 लाख पेड़ काटने की बेहोशी हमने देखी। लद्दाख में यही दिखा। सच अगले अंक में बताऊंगा।
और समझिए, पिछले साल मेरे शेखपुरा में, 40 लाख में बिहार का सबसे ऊंचा दुर्गा पंडाल बनने का समाचार बेहोश लोगों ने वायरल किया। लाखों, करोड़ों दर्शक मिले। सच यह नहीं था। 5 लाख का पंडाल था। उससे ऊंचा कई बने।
तब, विकल्प क्या है। होशपूर्ण होना, सबसे बेहतर विकल्प है। शांत होकर, सोचना, धैर्य रखना विकल्प है।
और विकल्प है, किसी भी मुद्दे पर त्वरित विश्वास नहीं करते हुए होशपूर्ण होकर शोध करना। अब शोध मुश्किल नहीं हैं। बस गूगल करिए, चैट जीपीटी, ग्रोक से पूछिए। सब बता देगा। बस होश पूर्ण होकर मनन करिए। क्योंकि, अब जमाना ai का है। मतलब, सब झूठ। सच केवल अपनी अपनी बौद्धिकता है। हम जो कहें, उसे मत मानो..! होशपूर्ण होकर खोजो। सत्य है तो मिलेगा। बस, बाकी सब ठीक है।

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