01 सितंबर 2025

राम नाम सत्य है, (संस्मरण का अगला भाग)

  राम नाम सत्य है, (संस्मरण का अगला भाग)


पटना जिले के बाढ़ स्थित उमानाथ मंदिर के बगल में गंगा किनारे प्रसिद्ध श्मशान घाट है। मगधवासियों के लिए मृत्यु के बाद मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का यह सबसे श्रेष्ठ स्थान माना जाता है। इसे दक्षिणायन गंगा घाट कहा जाता है।
नमामि गंगे योजना यहां बदहाल है। गंगा किनारे का दृश्य “राम तेरी गंगा मैली हो गई” जैसा प्रतीत होता है। गंगा तट पर स्थित यह श्मशान घाट कई मायनों में मुक्ति-बोध कराता है।


यहीं मुर्ती पूजा के विरोधी संत रैदास का मंदिर भी है। किसी ने बहुत साहस के साथ इसे बनाया होगा। वरना, गंगा किनारे संत रैदास का मंदिर, सोचना भी कठिन है। 

मंदिर के बाहर लिखा है – “मन चंगा तो कठौती में गंगा”। यह कहावत गांवों में कभी-कभी सुनने को मिलती है।
मंदिर के बगल में एक आंगनबाड़ी केंद्र भी है, जहां इतनी गंदगी है कि मन खिन्न हो जाए। लगता है अधिकारी कभी जांच करने पहुंचे ही नहीं। आएं भी क्यों? यहां तो बस डोम राजा के बच्चे ही पढ़ते हैं।


इसी क्षेत्र में सति माता का मंदिर भी है। न जाने कितनी स्त्रियों की अतृप्त आत्माएं, जिन्हें अपने पति की चिता पर जिंदा जला दिया गया था, आज भी वहां विलाप कर रही होंगी। विडंबना यह है कि उसी सति मंदिर में महिलाएं श्रद्धा से पूजा करती दिखाई देती हैं—हत्या के बाद अमरत्व और पूजा!

इस घाट पर लोग सांसारिक बंधनों से अलग होकर मुक्ति और मोक्ष की बातें करते हैं। कभी-कभी इन चर्चाओं से गहरे रहस्य भी उद्घाटित हो जाते हैं। लेकिन प्रायः यह बातें केवल ज्ञान बांटने तक ही सीमित रहती हैं। वरना ऐसा क्यों होता कि डोम राजा को 500 या 1000 रुपये में मान जाने के लिए घंटों चिरौरी करनी पड़ती? कभी खीझ होती, कभी गुस्सा। लेकिन डोम राजा जानता है—जब देने की बारी आती है तो यहां सब गरीब हो जाते हैं। आखिरकार वह कह ही देता है—
“सहिए कहो हो मालिक, घर जा के पांच थान मिठाय और बारह गांव भोज करभो, पर हमरा ले कुछ नै हो।”


खैर, हर गांव में डोम राजा को मनाने वाले एक-दो एक्सपर्ट जरूर होते हैं। वही लोग आगे बढ़ाए जाते हैं।
उधर, घाट के ऊपर बैठकी जमती है। गपशप शुरू होती है। रामायण की चौपाइयों से लेकर गीता का ज्ञान बांटा जाने लगता है।

बीहट वाले मित्र के जीजाजी पेशे से ठेकेदार हैं, पर गूढ़ता की कमी उनमें नहीं है। वैसे तो आम इंसान ही हैं, लेकिन बात-बात पर हंसा देने में निपुण। उनसे पहली मुलाकात 20-25 साल पहले हुई थी। उस समय उन्होंने जब रश्मिरथी का सस्वर गायन शुरू किया, तो रोंगटे खड़े हो गए थे। यही है दिनकर की धरती का ओज। घाट पर भी वे रश्मिरथी के माध्यम से जीवन, मृत्यु, मोक्ष और बैकुंठ का ज्ञान बांटने लगे। लोग जुटते गए, और सब हां में हां मिलाने लगे।

उसी चौकड़ी में दूसरे स्थानों से आए लोग भी चर्चा में शामिल हो गए। एक बुजुर्ग ने बहुत सहजता से कहा—
“सोचहो, ऐजा के राजा-रंक, ब्राह्मण-शूद्र—सभ्भे एक्के घाट पर। सब जल के राख बन जईता। तभियो कतना गुमान—जाति के, जाल-जत्था के, ज्ञान के, ताकत के। ई देखहो, एगो जल के खत्म होलाे, त दोसर जले ले तैयार हो। पर गंगा जल छिट के इहो जगह के पवितर कर देला। बोलऽ त?”*

तभी एक दूसरे व्यक्ति ने ज्ञान बघारा—“अब आम के लकड़ी दहो कि देवदार के—सबसे जरबे करत, बस...” 

1 टिप्पणी:

  1. विहंगम का संगम है श्मशान घाट कभो आपके बोध को सजग तो कभी शून्य कर जाता है।
    अगर आपकी आत्मीयता को शब्द मे परिभाषित करू तो आत्मीयता केवल शब्द रह जायेगा।
    मौन सजता ही मुक्ति है।

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