उस लड़की की छाती को कपड़े से कस कर बांध दिया गया है ताकि उसका स्तन सपाट दिखे। बड़े से बेरंग लबादानुमा कपड़ा उसे पहनाया जाता है। कभी उसका श्रृंगार नहीं किया जाता। उसका स्कूल जाना बंद हो गया और उसके पिता लज्जा से उसकी शादी की बात करने कहीं नहीं जाते। कभी उसको मुस्कुराते हुए नहीं देखा जाता। उसका घर से निकलना बंद हो गया और लोग उसे अजीब सी भूखी निगाह से देखते है।
यह भारत की बेटी से हुए बलात्कार के पांच साल बाद का दृश्य है जिसे मैं रोज देखता हूं। उसके साथ बलात्कार करने वाले को दस साल की सजा हो गई पर यह अब भी सजा भोग रही है।
दिल्ली गैंग रेप पर हाय तौबा के बाद से ही मैं लगातार सोंच रह हूं कि आखिर बलात्कार का समाधान क्या है तब सबसे पहले अपनी तरह ही उंगली उठती है।
यही तो वह देश है जहां पॉर्न स्टार सन्नी लियोन को हमने आत्मसात कर लिया। नेट पर इतना खोजा कि वह दुनिया में सबसे अधिक खोजे जाने वाली बन गई। सन्नी लियोन को इतनी शिद्दत के साथ किसने किसने और क्यों खोजा? सन्नी लियोन वही है जो नेट पर ओपने सेक्स करती देखी जाती है और हमारे भारतीय मानस ने उसे स्वीकार कर कौन सा संकेत दिया?
सिर्फ यही क्यों घरों में दिखने वाले घारावाहिक पर अवैध संबंधों की भरमार। कौन देखता है इसे? और इससे भी बढ़ कर कामुक बॉडी स्प्रे का जमाना। पुरूषों के चडडी से लेकर स्प्रे पर सबकुछ अर्धनग्न महिलाऐं ही बेचती है, क्यो?
और हमारे घरों में आने न्युज पेपर से लेकर मैगजीन तक में अर्धनग्न और कभी कभी पुर्ण नग्न महिलाओं की तस्वीर क्यों होती है? और फिल्मों के आइटम सॉंग पर कौन झुमता?
और एक बड़ी ही खतरनाक बात यह कि आज चाइनिज मोबाइल के दौर में बच्चे बच्चे के हाथ में पॉर्न फिल्म है। झुग्गी से लेकर स्कूलों तक छुप छुप कर बच्चो ब्लू फिल्म देख रहे। महज दस रूपयें में चार जीबी मेमोरी भर दिया जाता है।
कामुकता हमारे अंदर है। हम यही सब देखना चाहते है तो बाजार में बैठा बनिया वही दिखाता है। यह हमारे अंदर की कामुकता है जिसका प्रकटीकरण सिनेमा, टीवी, अखबार और सन्नी के रूप मे सामने आता रहता है।
बात साफ है कि हम ज्वलनशील सामान तो जुटा रहे और उसमें चिंगारी भी लगा रहे और चिल्ला रहे है कि आग क्यों लग गई।
अब बलात्कार की बात यहीं से शुरू होती है। पुरूषवादी इस समाज में हम हमेशा से स्त्री को उपभोग की वस्तु समझते रहे है। उसके माथे पर पुरूस्त्व के टीका के रूप में कभी सिंदूर, कहीं चुड़ी, कहीं मंगलसुत्र तो कहीं नाम के साथ ही पुरूषों का नाम। आश्चर्य तो यह कि जिंस और टॉप पहने महिलाओं के हाथों की चुड़ियां भी उसके अधुनिक होने पर सवाल उठाती रहती है।
मतलब कि स्त्री हमेशा से एक तुच्छ और कमजोर प्राणी के रूप में पेश किया गया। उपभोगतावादी समाज में उसे और तेज से बाजार में बैठाया गया और इसी तरह पेश किया जैसे वह कोई वस्तु हो।
और यह पुरूषवादी समाज की ही देन है कि बलात्कार को एक अपराध की तरह ने देखकर हमारा प्रगतीशील समाज इज्जत के साथ देखता है। स्त्री के साथ हुए बलात्कार के बाद ऐसे हो हल्ला किया जाता है कि जैसे उसका सबकुछ लुट गया। और फिर दंभी समाज बलात्कारी से अधिक अपराधी उसे ठहरा देता है जिसके साथ बलात्कार हुआ। इसमें महिलाऐं सर्वथा आगे रहती है। नतीजा बलात्कार से पीड़ित के लिए जिंदगी मौत से बदत्तर हो जाती है।
कैंडल लाइट रोमांटिक मार्च करने वालों में से कोई एक भी आगे आकर यह नहीं कहता कि मैं बलात्कार पीड़ित से विवाह करूंगा। कई लड़कियों के साथ सेक्स का आनंद लूट चुके युवा भी यही चाहता की उसकी होने वाली बीबी का कौमार्य भंग न हो?
इन सब बातों को मैं बलात्कार का मूल अपने गंदे समाज को ही ज्यादा जिम्मेवार मानता हंू। गंदगी को ढांक पोंत कर रखने के आदि इस समाज को सुधारे बिना हम बलात्कार को कम नहीं कर सकते। बिडम्बना यह कि अभी फेसबुक पर ही देखने को मिला जब एक लड़की ने लिखा कि मेरे स्कर्ट प्रतिबंधित मत करो बल्कि बलात्कार तो पुरूष करते है इसलिए शाम से उसके घर से निकलने पर प्रतिबंध लगे।
बात यह कि सबसे पहले बलात्कार की घटना को हमारा समाज सहजता से देखे। संपुर्णता देखे। इज्जत से जोड़कर नहीं। दोष बलात्कारी को दे पीड़िता को नहीं। और इसी सहजता से उसे हमारा समाज अपना ले और फिर कानून अपना काम ईमानदारी से करे और एक निश्चित समय में सजा हो।
और हम अपनी कामुकता को भी संपुर्णता से देखें और इसका परिष्कार करें। हमे अपनी तरफ देखने की आदत डालनी होगी। बात बात पर दूसरों की तरफ उंगली उठा कर हम सबसे बड़ा गुनाहगार बन जाते है।
awesome written by you brother..
जवाब देंहटाएंपहले अपने को सुधारना होगा,,,
जवाब देंहटाएंबुरा जो देखन मै चला बुरा न मिलिए कोय
जो दिल खोजहु आपना मुझसे बुरा न कोय,,,,
recent post: वह सुनयना थी,
पहले खुद को बदलना होगा,,,,
जवाब देंहटाएंबुरा जो देखन मै चला बुरा न मिलिया कोय
जो दिल खोजहु आपना मुझसा बुरा न कोय,,,
recent post: वह सुनयना थी,