मैंने अपने दस साल के बेटे टुन्नालाल से कुछ मुहावरे को समझाने के लिए कहा और उसने उसी तरह से झटका दिया जैसे रूपया आजकल दे रहा है। उसने दो दुनी दो बराबर दो निकाल कर यह समझा दिया कि निराशा राम और मौन मोहन सिंह जी दोनों एक दूसरे के पूरक है। पहले जो बहस हुई जरा देखिए, मैने सवाल पूछा, एक तो चोरी उपर से सीना जोरी? तो जबाब मिला मौन मोहन सिंह ने कहा कि दूसरे देश का विपक्ष पीएम को चोर नहीं कहता। फिर सवाल किया, उल्टे चोर कोतवाल को डांटे? जबाब मिला, सुप्रिम कोर्ट के निर्णय पर खांग्रेसी नेताओं ने कहा कि न्यायालय को भी अपनी सीमा में रहना चाहिए।
अजब गजब जबाब दे रहे हो यार, मैंने डांट लगाई तो उल्टा वही भड़क गया जैसे आजकल निराशा राम भड़के हुए है। खैर मैंने फिर सवाल दागा, चोर चोर मैसेरे भाई? जबाब दिया, राजनीतिक दल को आरटीआई के दायरे में लाने पर सभी दलों ने विरोध किया।
लो कल लो बात!
खैर, अबकी बार एक देहाती कहावत दाग दिया, अच्छा बताओ, चलनी दूसे बढ़नी को? जबाब फिर वहीं झटका बाला, भ्रष्टाचार के मुददे पर विपक्ष ने सदन नहीं चलने दिया। सवाल, खेत खाये गदहा, मार खाए जोल्हा? जबाब मिला? जबाब, बेचारे मौन मोहन सिंह। अच्छा बंदर के हाथ में नारियल? जबाब दिया आजकल न्यूज चैनल वालों कों नहीं देख रहें है.....।
अच्छा बताओ जले पर नमक छिड़कना? जबाब दिया, एंटोनी जी ने सदन में कहा कि पाक सेना के भेष में कुछ आतंकी ने सेना के जवान की हत्या की। फिर सवाल किया, दूध के दांत न टूटना? जबाब मिला, राहुल बाबा के अभी दूध के दांत नहीं टूटे है।
और अन्त में कुछ और कठिन सवाल करते हुए कबीर दास जी के दोहे को समझाने के लिए कहा..
साधू ऐसा चाहिए, दुखै दुखावै नाहिं।
पान फूल छेड़े नहीं, बसै बगीचा माहिं।।
जबाब मिला, तब तो एक भी साधू अपने यहां नहीं मिलेगें। यहां तो निराशा राम जी पान फूल को छेड़ने की जगह तोड़ रहे है। और फिर उसने भी कुछ कबीर बानी सुना दी...और कहा कि आप ही फैसला कर लो, निराशा राम संत है कि हमारे मौन मोहन बाबा....जय हो जय हो....
साधु सोई जानिये, चलै साधु की चाल।
परमारथ राता रहै, बोलै बचन रसाल।।
मान नहीं अपमान नहीं, ऐसे शीतल संत।
भव सागर से पार हैं, तोरे जम के दंत।।
सन्त मता गजराज का, चालै बन्धन छोड़।
जग कुत्ता पीछे फिरैं, सुनै न वाको सोर।।
बोली ठोली मस्खरी, हंसी खेल हराम।
मद माया और इस्तरी, नहीं सन्तन के काम।।
और कबीरवाणी को सुन मैं तो असमंजस में पड़ गया संत के ये सारे गुण निराशा राम में है या मौन मोहन बाबा में समझ नहीं आ रहा, आपही फैसला कर दिजिए....
आशा तजि माया तजै, मोह तजै अरू मान।
हरष शोक निंदा तजै, कहै कबीर संत जान।।
.जय हो जय हो....
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,,,अरुण जी,,
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