18 मई 2014

नीतीश बाबू के पाप और पुण्य

नीतीश बाबू के कार्यकाल बिहार के लिए स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाएगा। बिहारी होना अपने ही देश में कलंक की तरह थी। लालू प्रसाद के राज में बिहार को अन्य प्रदेशों के लोग आफगानिस्तान की तरह समझते थे। बात भी सच थी पर नीतीश कुमार ने बिहार को वहां से निकाल कर एक बार देश के अन्य राज्यों के साथ प्रतिस्पर्धा में लाकर खड़ा कर दिया। पर यह सब एक झटके में नहीं हो गया। इसके लिए नीतीश कुमार ने काफी मशक्त की पर एकबारगी आज वह खलनायकों के कठघरे में खड़े हो गए, ऐसा क्यों?

लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में नीतीश कुमार का आंकलन बिहारी मानस को नहीं समझ पाना ही है। चुनाव के दौरान जदयू के कई नेताओं को यह सुनने को मिला यह विधान सभा का चुनाव नहीं है, आप विधान सभा में वोट लिजिएगा अभी तो मोदी है। यह बड़े संकेत है पर नीतीश कुमार ने इस्तीफा देकर एकबारगी सबको सक्ते में डाल दिया। यही तो नीतीश कुमार की राजनीति है। 
नीतीश कुमार ने बिहार को जीरों से बनाकर आज यहां लाकर खड़ा किया है। सबसे पहले उन्होंने बिहार की उस सड़क को चकाचक किया जिसपर बरसात के दिनों में धान की रोपनी होती थी। कमर तक गडढे वाली सड़क आज सरपट दौड़ती है। फिर बिजली की हालत को उन्होने सुधारकर यहां तक लाया कि आज पर्याप्त बिजली रहती है और गर्मी के दिनों में बिजली कंपनी और राबड़ी सरकार की खिचखिच की बरबस याद आ जाती है। वहीं रोजगार के क्षेत्र में उन बेरोजगार युवकों को रोजगार दिया वे या तो बेरोजगारी की वजह से डिप्रेशन में जी रहे थे या हजार पांच सौ की नौकरी कर रहे थे। भले ही उनका नियोजन हुआ पर उनके घरों के खामोश चुल्हों में धुंआ उठने लगा, उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ने लगे और कई उच्चा डिग्री धारी हमारे भाई बंधू जो समाज और परिवार से नकार दिये गए थे  आज शान से चलते है।
कृषि के क्षेत्र में नितीश कुमार ने बिहार को गर्त से निकाला। मृतप्राय कृषि विभाग को जिवंत किया। हाइब्रीड बीज, श्रीविधि से खेती के लिए बीज और खाद देकर किसानों को सरकार के होने का एहसास कराया। आज बिहारी किसान के घरों में धान की परंपरात मोरी (बीज) नहीं होती बल्कि वे हाइब्रीड बीज अपने खेतों में लगाते है और प्रखण्डों में कई कई राइस मीलों का खुलना इस बात का उद्घोष है।
अस्पतालों में जहां कुत्ते और जानवर होते थे आज मरीजों का तांता लगा रहता है। अकेले में प्रखण्ड अस्पताल में एक दिन में 300 तक मरीज देखे जाते है और सिजेरियन ऑपरेशन होता है। 
स्कूली शिक्षा में अमूल चूल परिवर्तन आया और आज सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की भरमार है। खास कर छात्राआंे को घरों से निकाल कर नीतीश कुमार ने उसे साईकिल का पंख दिया और आने वाले दिनांे में बिहार नारी शक्ति के रूप में उभर जाएगा।
रंगबाजों का बिहार आज अपराधी को सलाखों के पिछे ढकेल रही है। अपहरण का उधोग बंद हुआ। अपराध होते है पर अपराधी पकड़े जाते है। सड़कों पर रात रात भर वाहन दौड़ते है।
कुर्तेवाजी बाले नेता जी की दलाली बंद हो गई। विधायक जी को कमीशनखोरी पर  अंकुश। बहुत कुछ बेहतर किया नीतीश कुमार ने पर उसके कुछ नकारात्मक पक्ष भी देखना होगा।
नीतीश कुमार ने गांव गांव गली गली शराब की दुकानें खोल दी परिणामतः गलियों में महिलाओं को निकलना दुभर हो गया। नियोजन के नाम पे शिक्षकों का नियोजन ऐसे किया गया कि एक एक को सौ सौ जगह आवेदन करना पड़ा और फिर बिना मोटी रकम के नियोजन ही नहीं हुआ। उसपे भी नकली प्रमाण पत्र को जांच तक नहीं हुई और उच्चके सब शिक्षक बन बैठे। इसका दुष्परिणाम नौनिहालों के शिक्षा पर पड़ा और लोगों में नाराजगी बढ़ी। ब्लॉक और थानांे में आम आदमी का कोई नहीं सुनता। बिना चढ़ावे एफआईआर नहीं होती। किसी को निदोर्ष को पकड़ कर जेल भेज दो और फिर किसी की पैरवी नहीं चलती।
सेवा यात्रा हो या कार्यकत्ताओं का गुस्सा उन्होने डांट कर दबा दी। उनके आस पास कोई उचित सलाहकार भी डर से सच नहीं कह सके और अन्त में परिणाम इसी रूप में सामने आया।
और आखिरकर नीतीश बाबू भी लालू की राह पकड़ते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण की गोटी खेली और भाजपा से गठबंधन तोड़ कर उसे दूध में मख्खी की तरह निकाल फेंका। इससे वोटरों को निराशा हुई। इसी तुष्टीकरण के खिलाफ उनको वोट मिला और वे भी वही करने लगे। लालू जी की राह पकड़ते हुए उन्होने भी उटपुटांग वयान देना शुरू कर दिया।
अन्ततोगत्वा इस चुनाव में जहां देश ने छद्म सेकुलरिज्म को नकार कर यह मैसेज दिया कि सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण ठीक नहीं, वहीं इसकी जद मंे नीतीश कुमार भी आ गए। मेरे एक युवा मित्र की इस कथन पे गौर करें ‘‘बार बार मुस्लिम मुस्लिम कह कर हमे हिन्दू बनने पर मजबूर मत करिये... हमें धर्मनिरपेक्ष रहने दिजिए.. प्लीज।’’ इसलिए विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ जनता यही सलूक करती कहा नहीं जा सकता? और अपनी गलतियों को सुधारने का नीतीश कुमार के पास पूरा पूरा मौका है पर लालू के साथ जाकर वे इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने वाले अपने नाम पे कालिख पोत लेगें...

5 टिप्‍पणियां:

  1. आप पत्रकार कम और बीजेपी के पैरवीकार ज्यादा है...इसलिए बीजेपी को कोई नुकसान न हो ...ऊपर नितीश की तारीफ करके निचे नसिहत भी दे दिया है ....राजनीती में कौन अछूत है और कौन नहीं आपलोग अपने हिसाब से तय करते है ....ऐसे भी आपकी फेसबुक स्टेटस देखकर यही लगता है ...आप बीजेपी के लिए batting ज्यादा करते है पत्रकारिता कम्....पत्रकारिता अभिसाप हो गया है

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    1. बंधू... आपके प्रमाणपत्र के बाद ही मुझे ज्ञात हुआ की पत्रकार कम और बीजेपी के पैरवीकार ज्यादा है... आभार आपने... प्रमाणित किया... शायद बहुत सरे मोदी समर्थक मित्र मुझे गाली देना बंद कर दें..

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अपना अपना नज़रिया - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. केंद्र और राज्य के चुनाव अलग 2 मुद्दों होते है ...! उसी का परिणाम है ,नितीश की हार ....

    RECENT POST - प्यारी सजनी

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  4. सत्ता के लिए कुछ भी करेंगे नीतीश बाबू नीतीश बाबू का कार्यकाल केवल उनके बूते ही अच्छा नहीं रहा यह भी नहीं भूलना चाहिए यह तो भा ज पा का साथ उनके लिए कार्यकाल को प्रभावी बना गया पिछले एक साल में भा ज पा से अलग हो उन्होंने क्या हासिल किया?यह भी मूलयांकन करने योग्य बात है

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