03 मार्च 2016

देश पे हजारों कन्हैया कुर्बान

देश पे हजारों कन्हैया कुर्बान
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कन्हैया की जमानत पे जश्न मनाने वाले शायद जस्टिस की टिपण्णी से शर्मिंदा हों..

कन्हैया मामले में हाई कोर्ट की जस्टिस प्रतिभा रानी ने जो टिपण्णी की है उसमे कई गंभीर बातें है, उन्होंने कहा-

"यदि कोई अंग सड़ जाता है तो उसका इलाज किया जाता है। एंटीबायटिक दिया जाता है। यदि इससे भी ठीक नहीं होता तो सड़े हुए अंग को काट दिया जाता है।"

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साथ ही जस्टिस ने कहा-

"जेएनयू जैसे सुरक्षित कैंपस में अफज़ल गुरु और मक़बूल भट्ट के नाम पर नारे लगाने वाले ऐसा इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि हमारे देश के जवान सियाचिन और कच्छ के रण मुश्किल हालात में देश की रक्षा कर रहे हैं। नारे लगाने वाले उन जगहों पर 1 घंटा भी खड़े नहीं रह सकते। ऐसे नारे उन जवानों का अपमान हैं जो खुद शहीद होकर हमारी रक्षा करते हैं। ये अपमान है उन परिवारों का, जिनके अपने कफ़न में लिपटे घर वापस लौटते हैं।"

हाई कोर्ट ने ये भी लिखा है, "जेएनयू प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिए कि संसद हमले के दोषी अफज़ल गुरु की शहादत दिवस जैसे कार्यक्रम भविष्य में न हों। याचिकाकर्ता एक पढ़ने वाला छात्र है और हम उम्मीद करते है कि उसने जेल में बिताये वक़्त के दौरान जो कुछ जेएनयू में हुआ उस पर चिंतन किया होगा। कोर्ट ये भी उम्मीद करता है कि जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष होने के नाते कन्हैया ये सुनिश्चित करेगा की जेएनयू में दोबारा देश विरोधी गतिविधियां नहीं होंगी।"

एक जस्टिस की यह टिपण्णी उन नेताओं के मुंह पे तमाचा है परोक्ष रूप आतंक का समर्थन कर रहे है।

शर्म आनी चाहिए उन नेताओं को जो
"भारत तेरे टुकड़े होंगे कहने वालों के साथ वोट की खातिर या मोदी विरोध में नाम पे इंशाअल्लाह, इंशाहल्लाह कह रहे है।"

देश के बचेगा तो लाखों कन्हैया मिलेंगे।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (04-03-2016) को "अँधेरा बढ़ रहा है" (चर्चा अंक-2271) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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