हे केजरीवाल तुम गधा से आदमी कब बनोगो..
(डिस्क्लेमर:- यह एक व्यंग रचना है और यह पूरी तरह से काल्पनिक, मनगढ़ंत और एक गधा के द्वारा ही लिखा गया है। इसका किसी भी राजनीतिक व्यक्ति, पार्टी अथवा समर्थक से कोई सरोकार नहीं है। यदि किसी भक्तिभाव में डूबे व्यक्ति को इस पर आपत्ति हो तो हमें सूचित करें इसे तुरंत डिलीट कर दिया जाएगा)
सुनो केजरीवाल, तुम अभी भी गधा के गधा ही हो! पता नहीं आदमी कब बनोगे? जब तक आदमी नहीं बनोगे तब तक तुम को आदमी बनाने के लिए भरपूर कोशिश होती रहेगी। यदि तुम आदमी होते तो यह बात समझ में आ जाती कि आदमी होने के बहुत सारे फायदे हैं और गधा होना बहुत ही हानिकारक। तुम इतनी भी बात क्यों नहीं समझते कि आदमी होकर ही आदमी के साथ जिया जा सकता है।
अब तुम देख लो कि एक ब्यूरोक्रेट के साथ लप्पड़-थप्पड़ करने पर एक मुख्यमंत्री के घर को पुलिस ने खंगाल दिया। ऐसा इसलिए हुआ कि तुम गधा हो। अब देखो, यदि तुम गधा नहीं होते और आदमी होते तो एक मुख्यमंत्री होकर भी तुम को कई बार थप्पड़ पड़े परंतु थप्पड़ मारने वाले आजतक जय जय कर रहे हैं। कई आदमी तो उसको जाकर फूलमाला और बधाई भी दे दी। वाह! तुमने गधे को थप्पड़ मारी।
यदि तुम आदमी होते तो तुमको यह बात समझ में आ जाती कि आदमियों में ब्यूरोक्रेट को थप्पड़ मारने का चलन बिल्कुल नहीं है। थप्पड़ मारना ही था तो आम आदमी को मारते। आम आदमी के साथ तो कुछ भी किया जा सकता है। उसे जान से मार दो। फिर भी पुलिस कुछ नहीं करेंगी।
ब्यूरोक्रेट आदमियों में सर्वश्रेष्ठ होता है। ब्यूरोक्रेट्स को सुर्खाब के पर लगे हुए होते हैं और वह सुर्खाब के पर लगाकर और भी उड़ने लगता है जब उसको आदमियों में प्रधान कहे जाने वाले तथाकथित आदमी का भरपूर समर्थन मिल जाता है।
तुम गधा हो इसीलिए तो तुमको अपनी औकात का भी ज्ञान नहीं है। गधा भी ऐसे जैसे सावन में अंधे। सभी जगह हरा हरा तुमको दिखता है। अगर तुम आदमी होते तो यह बात समझ जाते कि सचिव रखने के मामले पर तुम्हारे बीस गधे चले गए और यहां अरबों-खरबों डकार कर भी लोग चले जाते हैं। परंतु तुम्हारे गधों के जाने और खरबों डकार कर जाने वाले आदमियों में आसमान जमीन का अंतर है। तुम खुद सोच कर देखो...! तुम गधा हो इसीलिए तो यह बात समझ में नहीं आती तुमको कि खरबों रुपए लेकर मालिया-मोदी सरीखे लोग विदेश में मौज कर रहे हैं और भक्ति भाव में डूबा देश ओम शांति, ओम विकास, ओम भक्ति, हरि ओम, हरि ओम, हर हर, हर हर, घर घर, घर घर का मंत्र जाप कर रहा है!
और एक बात यह भी समझ लो कि तुम अगर गधा नहीं होते तो यह बात तुमको समझ में आ जाती कि आदमी खूबसूरत गहने को पसंद करता है। अच्छे-अच्छे जेवरात को पसंद करता है और वह जेवरात चौबीस कैरेट गोल्ड का कभी नहीं बनता। उसमें कुछ मिलावट करना पड़ता है।
तुम गधा अगर नहीं होते तो हमेशाढें चू ढेंचू भी नहीं करते। आदमी वही होता है जो समयानुकूल अपने लाभ हानि का जोड़, घटाव, गुणा, भाग करके ही बोलता है पर गधा हमेशा ढेंचू ढेंचू करता है।
और एक कहानी जो हमारे देहात में फेमस है वह सुन लो। एक कुत्ते का बच्चा बीमार हो गया, उसकी मां बहुत परेशान थी। एक दिन पिता पे मां बरस पड़ी। कैसे बाप हो! बेटा तुम्हारा मरा जा रहा है और तुम कुछ कर नहीं रहे हो! बाप को भी गुस्सा आ गया। कहा, क्या करें? डॉक्टर तो सभी फेल हो गए और किसी पिंडी-मूर्ति के पास इसके ठीक होने की दुआ भी कैसे माँगे। कोई भी पिंडी-मूर्ति नहीं बचा जिस पर इसने टांग उठाकर मूत ना दिया हो!
वह तो कुत्ता था उसके पास इतनी समझ थी पर तुम तो गधा हो। एकदम नहीं समझते। हालांकि जो आदमी होता है वह इस बात को समझता है कि कहां मूतना है और कहां नहीं मूतना है! अपना लाभ हानि सीख लो तभी तुम आदमी बनोगे। वरना गधा के गधा ही रहोगे और राजनीति में गधों के लिए कोई जगह नहीं है। मारपीट के तुमको सब खदेड़ देगा।
अरुण साथी/24/02/18
अरुण साथी/24/02/18
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