#शराबबंदी_होली
जो लोग शराबबंदी के विरोध कर रहे है उनको कुछ नहीं दिखता पर होली पे बिहार में शराबबंदी का असर साफ दिखता है। फागुन आते ही शराबी का आतंक शुरू हो जाता था। गलियों में गंदी गंदी गालियां देते दबंग गुजरते थे। गरीब-गुरबे सहम के भगवान-भगवान करते थे। किसी तरह होली कट जाए। रात्री में घरों के दरवाजे खटखटाया जाते थे। होली के दिन सड़कों पर और गलियों में शराबियों का कब्जा रहता था। गांव के दलाल पर बजने वाले होली और होलैया की टीम इन्हीं शराबियों की वजह से विलुप्त हो गई। अब गांव के चौपाल में होलैया की टीम नहीं सजती। होली के दिन लोग घरों में दुबके रहते है।
"नकबेसर कागा ले भागा, मोर सैंया अभागा न जागा"
"अंखिया भईल लाल इक नींद सोबे दे बलमुआ"
"काली चुंदरी में जोबना लहर मारे, काली चुनरी में"
इस तरह के परंपरागत होली गीत अब सुनने को नहीं मिलते हैं। अब तो बस फूहड़ गीतों का ही चलन है। गांव के कुछ पुराने लोग इस गीत को अभी गाते हैं।
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