14 फ़रवरी 2018

ब्रेकिंग न्यूज़: वेलेंटाइन डे पर भगवा बुर्का लॉन्च..

(व्यंग्य बाय अरुण साथी)
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मघ्घड़ चाचा परेशान हैं। पूछ रहे हैं कि वैलेंटाइन क्या होता है मरदे! बहुत लोगों से पूछा, किसी ने कुछ, किसी ने कुछ जवाब दिया। तभी रास्ते में खिलावन सिंह के कुपुत्र मिल गया। लफूव्वा। हाथ में डंडा के ऊपर झंडा लगा हुआ था। पूछ लिए
"वैलेंटाइन के दिन झंडा लगा डंडा लेकर कहां जा रहे हो बेटा।"

बोला "बाबा आप नहीं ना समझ पाइयेगा। आज हम उसको सोंटने जा रहे हैं जिसने मेरी गर्लफ्रेंड को पटा लिया है। कहीं भी मिलेगा आज उसको सोंट देंगे।"
फिर रास्ते में फुलझड़ी मिल गई। फुलझड़ी काकी को मघ्घड़ चाचा खूब चाहते थे। आंखों ही आंखों में इशारे हो गए परंतु जुबान आज तक नहीं खुली। अब अंतिम पड़ाव पर उन्होंने पूछ लिया।
"फुलझड़ी यह वैलेंटाइन क्या होता है।"

काकी शरमा गई, बोली
"जवानी में तो पूछ ना सके, पूछते तो आज हम आपके और आप हमारे होते। इस उम्र में पूछने से क्या फायदा। खैर पूछे हैं तो बता देती हूँ।  इसको प्रेम दिवस भी कहते हैं और एक गुलाब देकर किसी को अपना बना सकते हैं।"
फिर क्या था चाचा भड़क गए, बोले 'इतने साल तक अपना दिल देकर तुमको अपना नहीं बना सके फिर एक गुलाब से कोई अपना कैसे बन जाएगा।"
काकी भड़क गई बोली
"बुद्धू का बुद्धू ही रह गए। अब अपने जमाने की बात नहीं है। आजकल गुलाब देकर किसी को अपना बनाने का मतलब वैसा ही है जैसे दस का नोट देकर कोका कोला खरीदे, ढक्कन उड़ाया और गटक गए। समझ में आया। स्प्राइट जैसा सब क्लियर है और आजकल के नौजवान यही सब करते हैं। वही ठंडा पीते हैं जिसमें कहा जाता है डर के आगे जीत है।
खैर, मघ्घड़ चाचा भी रास्ते में एक गुलाब का फूल तोड़ लिए, सोचे इतने दिन तक तो चाची को कुछ दिया नहीं आज गुलाब दे देते हैं। गुलाब हाथ में लेकर मंद मंद मुस्कुराते हुए वह जा रहे थे तभी रास्ते में बजरंग सेना मिल गई। लाठी और झंडा साथ-साथ। चाचा के हाथ में गुलाब देखकर फुलझड़ी का भतीजा भड़क गया। वह सोच लिया कि जरूर इसमें उनकी काकी को ही प्रपोज किया होगा। खैर फिर क्या था। बजरंग सेना आपस में बातचीत किया और चाचा को ही धो दिया। चाचा पूछते रहे कि क्यों धो रहे हो पर जवाब किसको पता था। लाल गुलाब देखकर भगवा झंडा वाले वैसे ही भड़कते हैं जैसे लाल कपड़ा देखकर सांढ़!
मार कुटाई के बाद चाचा जा रहे थे तभी रास्ते में मौलाना फैजुल मिल गए। पूछ लिया,
"क्या हुआ चाचा, हाथ मे लाल गुलाब, माथे पर लाल लाल लहू, किस से भिड़ गए। इस उम्र में रोज दीजिएगा तो पिटाई तो होगी।"
चाचा क्या कहते, बस इतना कहें,  "कई दशक के बाद रोज देने की हिम्मत की और डंडा धारी फौज ने पीट दिया।"
"ओह, अच्छा बजरंग सेना वाले थे। ठीक ही किया। हम तो कहते ही हैं कि औरतों को बुर्का में रहना चाहिए। भला औरतें नुमाइश की चीज है। घर के चारदीवारी के अंदर ही वो रहने की चीज़ है और नहीं तो फिर बुर्का में रखिए। यह सब बखेड़ा ही नहीं होगा पर आप लोग विरोध करते हैं। स्वतंत्रता, स्वाभिमान, स्वावलंबन! आप ही लोग के डिक्शनरी में यह सब होता है। हमारे डिक्शनरी में तो बुर्का, तीन तलाक, हलाला यही सब है।"
तभी उधर से परमेश्वर पंडा आ रहे थे। मौलाना की बात सुनकर वैसे तो भड़क जाते थे परंतु आज समर्थन कर दिया।
"ठीक कहते हैं मौलाना साहब। स्त्री कैदखाने में ही रहनी चाहिए। हम लोग भी अब मांग करेंगे भगवा बुर्का की। आप लोगों के बुर्का में आंख के आगे थोड़ी सी जगह भी रहती है हम तो कहेंगे कि वहां भी जगह नहीं रहनी चाहिए। स्त्री भला कैसे किसी को देख सकती हैं। पूरी तरह से आंखों पर पट्टी होगी। अरे किस घर में दो चार मर्द नहीं होते हैं। जहां उसको जाना होगा, उंगली पकड़कर ले जाएगा तभी इस संसार में कल्याण होगा। अभी तो सब जगह अपनी सरकार है। इस मुद्दे को लागू करा कर ही दम लूंगा। और फिर भगवा बुर्का के लिए देशभर में जबरदस्त आंदोलन हुआ। देश और राज्य की सरकारें आंदोलनकारियों के आगे घुटने टेक दिए। आखिर वोट बैंक का सवाल था। अगले दिन न्यूज चैनलों और अखबारों की हेडलाइन थी भगवा बुर्का कानून पास। नहीं पहनने पर आजीवन कारावास की सजा।
तथास्तु, हरि ओम, हरि ओम, हरि ओम..

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